याद आते है वे गुरुजन

Gyan Darpan
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आज शिक्षक दिवस है ज्यादातर लोगों का कहना है कि इस एक दिन हर कोई रस्म निभाने को अपने शिक्षकों को याद कर लेता है फिर भूल जाता है| पर मैं ऐसा नहीं मानता, शिक्षक दिवस हो या आम दिवस अपने उन शिक्षकों, गुरुजनों को कोई व्यक्ति भूल ही नहीं सकता जिन्होंने शिक्षक, गुरु होने का अपना स्वधर्म ईमानदारी से निभाया हो|

सामान्य जीवन दिनचर्या में अक्सर ऐसे बहुत से क्षण आते है जब गुरुजन अनायास ही याद आ जाते है फिर भले ही वे अपने स्वधर्म निभाने के चलते याद आयें हों या अपने कर्तव्यहीनता के चलते याद आते हों, पर इतना जरुर है बचपन से मानस पटल पर बैठे गुरुजनों को कतई नहीं भुलाया जा सकता है| अपने गुरुजनों की लम्बी श्रंखला में श्री इंद्रसिंह जी शेखावत, सोहन लाल जी काला(मेघवाल), अतरसिंह जी डागर, जीवणराम जी चौधरी, सज्जन कुमार जी, गोपालजी गोस्वामी, नन्दलाल जी माथुर ऐसे नाम है जो दैनिक दिनचर्या में कभी भी याद आ जाते है, कभी भी किसी उनका अक्स चेहरे के सामने आ ही जाता है आखिर आये भी क्यों नहीं, ये ही वे गुरुजन थे जिन्होंने सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं दिया बल्कि साथ ही जीवन में और भी बहुत कुछ सिखाया जो आज दैनिक दिनचर्या में काम आता है|

ऐसा नहीं कि सिर्फ अच्छा पढ़ाने वाले गुरुजन ही याद आते है बल्कि संस्कृत पढ़ाने वाले हंसमुख और चुलबुली मजाकिया हरकते करते रहने वाले रामकिशन जी को आज तक मैं ही क्यों, कोई भी छात्र कभी नहीं भूल पायेगा| तो प्राइमरी स्कूल में पढ़ते समय रात को खेतों में काम कर आने वाले गुरुदेव हनुमाना राम जी द्वारा कक्षा में पढ़ाते समय नींद ले लेने के दृश्य आज भी उतने ही तरोताजा है जितने बचपन में थे|

आज भी जब किसी स्कूल का खेल मैदान देखता हूँ तो विज्ञान पढ़ाने वाले गुरुदेव गोपाल जी गोस्वामी की अनायास ही याद आ जाती है कि उनकी ड्यूटी हमें विज्ञान पढ़ाने की ही थी पर उन्होंने छात्रों के स्वास्थ्य के लिए खेल की अनिवार्यता समझ स्कूल समय के बाद फूटबाल खेलना सिखाया और स्कूल की फूटबाल टीम को प्रतिस्पर्धाओं में जीतने लायक भी बना दिया|

प्राइमरी स्कूल में जब हम जानते भी नहीं थे कि संसदीय प्रणाली क्या होती है तब हमें समझाने के लिए सोहनलाल जी काला ने हमारी स्कूल में छात्र संघ चुनाव करा कर व छात्र संघ पर कई तरह की जिम्मेदारियां दे कार्य करवा हमें संसदीय प्रणाली को प्रत्यक्ष समझने का मौका दिया| उनके द्वारा गांव में की गयी सामाजिक गतिविधियों की यादें आज भी ताजा है, कई बार सोचता हूँ काश सोहनलाल जी जैसे अध्यापक गांवों में हो तो वे श्रमदान से ही गांवों में वो कार्य करवा सकते है जो सरकारें अच्छा भला बजट खर्च करने के बाद भी नहीं कर सकती| रात्री में लालटेन की रौशनी में गांवों वालों से श्रमदान कर रास्तों से घास कटवाना, रास्तों का लेवल बराबर कर उन्हें साफ़ सुथरा रखवाने के काम में तो कोई नगर पालिका भी उनका मुकाबला नहीं कर सकती, छात्रों के खेलने का सामान नहीं था तो सोहनलाल जी ने सरकारी बजट का इंतजार नहीं किया, हम छात्रों से एक नाटक का मंचन कराया, नाटक देखने के बाद नाटक मण्डली को जैसे गांव के लोग नोट देते है वैसे हमारी मण्डली को भी कुछ नोट मिले और उसी धन से सोहनलाल जी ने छात्रों के खेल सामान के साथ स्कूल की रंगाई पुताई का भी जुगाड़ कर स्कूल चमका दिया|

छटी कक्षा में पढने पास के ही कस्बे में बड़ी स्कूल में गए तो स्कूल की हालत देख हम सन्न रह गये, गांव की छोटी सी स्कूल में हमने गुरुजनों के सानिध्य में छोटा सा बगीचा लगा स्कूल को हराभरा बना रखा था, उसके उलट यहाँ बड़ी स्कूल में ईमारत टूटी फूटी पड़ी थी, रंग रोगन तो लग रहा था ईमारत बनने के बाद कभी हुआ ही ना था, स्कूल में रेत ही रेत उड़ रही थी, कुछ ही माह में नए प्रधानाध्यापक श्री नंदलाल जी माथुर आये और छात्रों के श्रमदान से उसी स्कूल को इतना बढ़िया हराभरा बना दिया कि रविवार को कस्बे के लोग उस हरियाली में फोटो खिंचवाने आने लगे| उस वक्त स्कूल में किया जाने वाला श्रमदान याद करता हूँ तो सहज ही नन्दलाल जी की हाफ-पेंट पहने हाथ में फावड़ा लिए छात्रों के साथ श्रमदान में मेहनत करते छवि आँखों में तैर जाती है| कोई चाहकर भी उन जैसे गुरु को कैसे भूला सकता है?

सज्जन कुमार जी हमारे वाणिज्य संकाय के अध्यापक थे उनकी बनाई वाणिज्य क्लब आज भी जेहन में वैसे ही याद है जैसे शनिवार को उस क्लब में हम कॉमर्स की तैयारी कर भाग लेने जाते थे, इस कॉमर्स क्लब में नवीं व दसवीं के कॉमर्स के छात्र भाग लेते, दो छात्र पढ़ाते बाकि उनसे प्रश्न पूछते, नवीं कक्षा में जब मैंने व मित्र श्रवण सिंह ने उस क्लब में दसवीं कक्षा वालों को पढाया और उनके प्रश्नों का सही सही जबाब दिया तो हमारा आत्म-विश्वास कितना बढ़ा वह हम ही महसूस कर सकते है | (उस वक्त 10+2 नहीं था, नवीं कक्षा में ही विषय चुनने पड़ते थे)

आज जब कभी बाबा रामदेव के योगासन टीवी पर देखता हूँ तो विज्ञान के अध्यापक जीवणराम चौधरी अनायास ही याद आ जाते है, उन्होंने उस वक्त कितने ही छात्रों को ठीक वैसे ही योगासन सीखा दिए थे जो आजकल बाबा रामदेव करते है| स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस पर योगासन करने वाले छात्रों का बाबा की तरह ही पेट को चिपकाते व आंते घुमाते दृश्य आज भी जीवंत हो उठते है|

संस्कृत शिक्षक रामकिशन की चुहलबाजियों को तो कोई भूल भी कैसे सकता है ? वे आज भी बुढापे में चौक पर बैठे चुहलबाजी करने से बाज नहीं आते, सातवीं कक्षा में रोशन अली को नई लागू की गयी प्रार्थना याद नहीं थी, वह उस दिन रामकिशन जी से वादा कर सजा से बच गया कि –“गुरूजी ! आज छोड़ दीजिये कल सुना दूंगा|” पर पट्ठे ने वह प्रार्थना आजतक याद नहीं की पर हमारे गुरूजी कौन से कम है आज भी रोशन अली मिलने पर प्रणाम करता है, तो गुरूजी चुहलबाजी करते हुए कहते है- “प्रणाम की ऐसी-तैसी पहले वह प्रार्थना सुना, नहीं तो मुर्गा बन जा” और रोशन हँसता हुआ हमेशा की तरह अगले दिन सुनाने का वादा कर खिसक लेता है|

काश ऐसे ही गुरुजन नई पीढ़ी को भी मिले इसी कामना के साथ गुरुजनों को शत शत प्रणाम

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9टिप्पणियाँ

  1. आप बिल्कुल सही फरमा रहे है, मै भी एक शिक्षक हु और सोचता हु अगर मै जरा भी अपने शिक्षको के जैसा बन पाया तो मै धन्य हो जाऊंगा | आपकी शिक्षक दिवस पर आपकी इस पोस्ट के बधाई |

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  2. वाकई पुराने जमाने की बात और ही थी वो मुर्गा बनना अब भी याद आता है. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. शिक्षा के व्यवसायीकरण के इस इस बूम ने वो शिक्षक वाली इज्जत छात्रो के मानसपटल से हटा दी है ।वरना गांवो की उन्ही स्कूलों से निकले छात्रों ने बड़े -बड़े पदों पर पहुच कर दिखाया था ।

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  4. "नादान परिंदे ब्लॉगर" - हिंदी का एक नया ब्लॉग संकलक" पर अपनी उपस्तिथि दर्ज कराकर हमे इसे सफल ब्लॉगर बनाने में हमारी मदद करें। अपने ब्लॉग को जोड़ें एवं अपने सुझाव हमे बताएं

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