गज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।
दे गयी थी राहत मेरे सोजे दिल को कितने सुहाने थे तेरे साथ जो बीते वोह मंज़र।
तेरे शहर की मस्त बहती नदियां मुझे आज भी तेरे अहसास की गहराईया दे जाती है।
कच्चे धागों का यह बन्धन , मेरी रूहे जान भी तेरी गली की हवा में मदहोश रहती है।
Nice.. tumhe q bataye.. hame apne baware ka kya nam rakha h...
जवाब देंहटाएंभावनाए बोलती हैं ...
जवाब देंहटाएंअक्सर लोग पूछते है मुझसे , ऐ बावरी, अपनी मुहब्बत का क्या नाम रखा है।
जवाब देंहटाएंगज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।
वाह!!!!
सुंदर एवम् भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंमैं ऐसा गीत बनाना चाहता हूं...
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमोबाइल के लिए एक बेहतरीन वेबसाइट!!
वाह लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरचना.
बहुत सुंदर लाजबाब रचना साझा करने के लिए आभार,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
सशक्त अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंकौन देता है मुहब्बए को भला कोई नाम,कतरा ए दिल से जो कतरा मिल जाये वो ही तो मुहब्बत है.
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर प्रस्तुति