एक श्रमिक हड़ताल

Gyan Darpan
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उस दिन यादव जी घर पहुंचे तो बहुत रोष में थे, पूछने पर बताने लगे कि- वे आज कारखाने में हड़ताल करने बैठे तो कारखाना प्रबंधन ने हड़ताली श्रमिकों को हमेशा के लिए कारखाने में घुसने पर प्रतिबंधित कर दिया|

हड़ताल का कारण पूछने पर यादव जी बताने लगे- पुरानी मशीनों पर एक मशीन पर एक श्रमिक नियुक्त था अब नई तकनीकि की मशीने आ गयी है, ऐसी तीन तीन मशीनों को एक अकुशल व अस्थाई श्रमिक चला लेता है, उसे लालच होता कि इस तरह मेहनत देख प्रबंधन उसे स्थाई कर देगा| अस्थाई श्रमिकों की कार्यकुशलता देख अब प्रबंधन चाहता है कि पुराने कुशल श्रमिक भी तीन तीन मशीनें संभालें जिससे कारखाने को फायदा हो| बस यही बात पुराने श्रमिकों को पसंद नहीं और उन्होंने हड़ताल कर दी|

हमने यादव जी से कहा- नई तकनीक की मशीनों पर उतनी मेहनत नहीं है यदि तीन मशीनें एक कुशल श्रमिक की देख रेख में चल सकती है तो उन्हें चलाने में पुराने स्थाई श्रमिकों को आपत्ति नहीं होनी चाहिये| इससे तो आपका कारखाना तरक्की ही करेगा|

हमारी बात पर यादव जी भड़कते हुए बोले- मुझे पता था शेखावत जी ! आप प्रबंधन का ही पक्ष लेंगे|

खैर...प्रबंधन द्वारा उन हड़ताली श्रमिकों के कारखाने में घुसने पर प्रतिबंध लगाते ही श्रमिक संगठन ने आंदोलन तो करना ही था सो हड़ताली श्रमिक कारखाने के आगे एक तंबू गाड़ धरने पर बैठ गये| यादव जी के घर अक्सर कई हड़ताली श्रमिक व श्रमिक नेता आते व अब तक हुई कार्यवाही व भावी रणनीति की चर्चा करते जिसे हम भी बिना उसमें दखल दिए चुपचाप सुनते रहते| यादव जी भी हड़ताल के दौरान चलने वाली कार्यवाही की चर्चा अक्सर मुझसे सांझा कर लिया किया करते थे|

एक दिन आते ही बताने लगे- आज श्रम निरीक्षक आया था हमें आश्वस्त करके गया है कि वह प्रबंधन को सबक सीखा देगा और श्रमिकों को न्याय दिलवाकर ही रहेगा| बहुत ईमानदार व्यक्ति है श्रम निरीक्षक|

हमने कहा- यादव जी! काहे का ईमानदार है ? हाँ ज्यादा जोर से इसलिए बोल रहा है ताकि कारखाना प्रबंधन से मिलने वाली नोटों की गड्डी का भार थोड़ा बढ़ जाये|

उस दिन तो यादव जी को हमारी बात बुरी लगी पर कुछ दिन बाद यादव जी ने हमें आकर बताया- शेखावत जी ! आप सही कह रहे थे, वो निरीक्षक तो बिक गया| खैर...हम भी कम नहीं श्रम आयुक्त के पास गए थे वह बहुत अच्छी महिला है उसनें हमें बड़े ध्यान सुना और वादा भी किया कि- मैं आपको आपका हक़ दिलवा दूंगी|

यादव जी की बात पर हमें हंसी आ गयी और हमने कहा- यादव जी ! न तो ये श्रम आयुक्त आपके काम आयेगी और ना ही वे यूनियन वाले कोमरेड आपके काम आयेंगे, यदि प्रबंधन से कोई समझौता हो सकता है तो प्रबंधन को थोड़ा हड़काकर समझौता कर लीजिये और अपनी रोजी-रोटी चलाईये, इसी में श्रमिकों का व कारखाने का भला है|

पर हमारी बात उनके कहाँ समझ आने वाली थी उल्टा हमें वे श्रमिक विरोधी समझने लगे| यूनियन वाले कोमरेडों के खिलाफ तो वे और उनके साथी सुनने को राजी ही नहीं थे|

खैर...एक दिन श्रम आयुक्त के बारे में भी उन्हें पता चल गया कि वह भी प्रबंधन के हाथों मैनेज हो चुकी है| श्रम आयुक्त के मैनेज होने के पता चलने पर हड़ताली श्रमिकों में एक ने जो श्रम मंत्री जी के संसदीय क्षेत्र के रहने वाला था, अपनी बाहें चढ़ा ली कि- अब मैं देखूंगा इस श्रम आयुक्त को| आज ही अपने क्षेत्र के सांसद जो श्रम मंत्री है के पास जाकर इसकी शिकायत कर इसे दण्डित कराऊंगा| मंत्री जी हमारे सांसद है और मेरी उन तक पहुँच है|

वह श्रमिक मंत्री जी के बंगले पहुँच मंत्री जी से मिला व श्रम आयुक्त की शिकायत की| मंत्री जी ने अपने पी.ए. को इसकी जाँच करने का जिम्मा दे दिया व उस श्रमिक को आगे से पी.ए. से सम्पर्क में रहने की हिदायत दे दी| दो चार रोज जब मंत्री जी के पी.ए. से उक्त श्रमिक ने सम्पर्क किया तो पी.ए. ने बताया कि उक्त श्रम आयुक्त महिला उसकी धर्म बहन है, अत: उस पर किसी कार्यवाही की बात वे भूल जाये मैं कुछ नहीं करने दूंगा और आगे से आपको मंत्री जी से मिलने भी नहीं दूंगा|

इस तरह कई महीने बीत गये, श्रमिकों को अब श्रम न्यायालय के निर्णय की ही आस थी कि एक दिन यादव जी मिले तो बड़े रोष में थे बोले- शेखावत जी ! आप सही कह रहे थे श्रम अधिकारी तो सारे भ्रष्ट निकले सिर्फ कोर्ट का आसरा था पर वहां भी हमारे नेता से कारखाना प्रबंधन से मोटे नोट झटकने के बाद यूनियन वाले कोमरेडों ने सलाहकार बन ऐसी ऐसी गलतियाँ करायी कि- अब ये केश हम कोर्ट में भी जीत ही नहीं सकते| ये कोमरेड भी बिकाऊ निकले|

हमने यादव जी को कहा- हमने तो आपको पहले ही कह दिया था सब बिकेंगे खैर...अब भी यदि प्रबंधन से कहीं कोई समझौता हो सकता है तो आप लोगों को कर लेना चाहिये|

आखिर प्रबंधन और हड़ताली कर्मचारियों के बीच आठ दस महीने की हड़ताल के बाद प्रबंधन की शर्तों पर समझौता हुआ और कुछ श्रमिकों को छोड़ बाकी को कारखाने में वापस काम पर रखा गया|

इस घटना के बाद मेरी यह धारणा और पुख्ता हुई कि- श्रमिकों का हितैषी कोई नहीं ना यूनियन नेता, ना श्रम अधिकारी, ना कारखाना मालिक|
हाँ श्रमिक व प्रबंधन आपसी समझ और विश्वास के साथ एक दुसरे की समस्याएँ समझ काम करते रहें तो दोनों पक्षों का ही भला है|

नोट :- यहाँ कहानी हड़ताली श्रमिकों से हुई बातें व उनके आपसी विचार-विमर्श व आपस में सूचनाएं सांझा करते हुए जो चर्चा अक्सर मुझे सुनने को मिलती थी उसी के आधार पर है|

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11टिप्पणियाँ

  1. अब बेचारे यादवजी भी क्या करें? जोश जोश में होश खो बैठे, उनको पता नही था कि आजकल ताऊ लोग चींटी से लेकर हाथी तक को मेनेज कर लेते हैं.:)

    रामराम.

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  2. अभी दिनेशराय द्विवेदी जी के ब्लाग पर भी श्रमिकों के बारे में पढा था, मुझे ऐसा लगता है कि भारत में श्रम कानूनों का जितना मखौल उडाया जाता है वैसा कहीं और नहीं.

    रामराम.

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    1. सही में श्रमिक कानून का जो मखौल भारत में उड़ाया गया और उड़ाया जा रहा है वह और कहीं नहीं|
      पहले श्रम कानूनों की आड़ में श्रमिक नेताओं ने मजे लूटे अब कारखाना मालिक लूट रहे है !!

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. श्रमिक व प्रबंधन आपसी समझ और विश्वास के साथ एक दुसरे की समस्याओं को समझकर काम करे तभी दोनों पक्षों का ही भला है|

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  5. जंगलराज है, कहीं भी कुछ हो जाए तो अपनी ही लाठी के भरोसे रहना कहीं बेहरत है आज

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  6. सच कहा आपने, तनिक तर्क और समझदारी के साथ सब कुछ सुलझाया जा सकता है।

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  7. आज सब मिले हूए हें .पैसा भगवान बन गया है,और इसलिए किसी को भी खरीद कर मैनेज किया जा सकता है.नैतिक मूल्यों के बारे में तो न सोचना ही उचित होगा.

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