आज तक कोई मामू बचा है भांजों से ?

Gyan Darpan
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जब से भांजे की करतूत से पूर्व रेलमंत्री पवन कुमार बंसल की लूटिया डूबी और उनकी दौड़ती रेल अचानक रुक गयी और वे रेलमंत्री से पूर्व रेलमंत्री हो गये तब से आज तक समाचार पत्रों, वेब साइट्स व सोशियल साइट्स पर मामा भांजे की केमिस्ट्री पर बहुत कुछ लिखा पढ़ा जा रहा है लोग मामा भांजे की इस नई जुगल जोड़ी द्वारा खिलाये गुल पर चट्खारे व चुटकियाँ लेकर सोशियल साइट्स पर मजे ले रहे है|

पूर्व रेलमंत्री बंसल ने अपने भांजे पर ऐतबार कर कमाई में हिस्सेदार बनाया पर भांजा विश्वास करने लायक नहीं निकला और बेचारे मामू फंस गये अब देखिये ना इस भांजे की जगह कोई और होता तो मामू मैडम के आगे साफ़ कह देते कि मैं तो इस सत्ता के दलाल को जनता तक नहीं पर बेचारे क्या करे मैडम के आगे बहुत कहा- “मेरे अपनों ने विश्वासघात कर पीठ पर वार किया दिया|” फिर भी मैडम ज्यादा दिन नहीं पसीजी रही और बेचारे मामू को रेल की जंजीर खिंच बीच रास्ते में उतार फैंका|

मामा भांजे के रिश्तों व उनके बीच हुई घटनाओं के उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है कंस-कृष्ण, दुर्योधन-शकुनी आदि आदि फिर भी पढ़े लिखे बंसल ने भांजे पर भरोसा किया| राजस्थान में तो भांजे को लेकर एक कहावत तक प्राचीन काल से चली आ रही है-

जाट, जवांई, भाणजा, रैबारी, सुनार |
कदै न हुसी आपणों, कर देखो व्यवहार ||

अब भांजे के अलावा अन्य लोगों को इस कहावत में किस सन्दर्भ के तहत शामिल किया है इस पर तो मैं चर्चा नहीं करूँगा लेकिन बंसल मामू व उसके भांजे के मामले को देखा जाय तो यह कहावत भांजों पर सटीक बैठती है| यदि पूर्व रेलमंत्री ने अपने जीवन में कभी यह कहावत सुनी होती या स्कूल में पढ़ी होती तो बेचारे आज रेल के इंजन में बैठे सीटी बजा रहे होते पर बुरा हो उन आधुनिक विद्यालयों का जहाँ ऐसी कहावतें पिछड़ों की निशानी समझ पढ़ाई नहीं जाती|

वैसे देश की राजधानी में भांजे की वजह से बंसल मामू ही परेशान नहीं हुए है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भांजों से कई किसान मामू भी दुखी हुए है या दुखी होने की संभावना से डरे सहमें आतंकित बैठे है| जब से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आस-पास की जमीनों के भाव बेतहासा बढ़ें और सरकार ने बेटी का पिता की जमीन में हक़ वाला कानून बनाया है तब से बेचारे यहाँ के मामू लोग भांजों से बहुत आशंकित व आतंकित रहते है| जब भी पिता की सम्पत्ति का बंटवारा होता है बहन तो अपने भाई भतीजों की खातिर अपने पिता की सम्पत्ति पर अपना हक़ उनके हक़ में त्यागने को तैयार रहती है पर भांजे अपनी माँ को ऐसा करने नहीं देते कहते है- करोड़ों का मुआवजा मिलते ही मामू तो साइकिल से सीधे टोयटा फोर्चुनर में आ जायेगा तब हम क्या बाइक पर ही धक्के खाते घूमते रहेंगे ?
और माँ को पिता की सम्पत्ति में हिस्सा लेने को मजबूर कर देते है जो सीधे मामू लोगों की जेब को ढीली कर देती है|

यही नहीं जहाँ ये सम्पत्ति वाला झमेला नहीं होता वहां भी मामू लोग भांजों से दुखी व डरे सहमे ही रहते है भांजा दूध पी पीकर जैसे जैसे बड़ा होता है उसकी उम्र व शरीर की बढ़त देख मामू भी उसकी शादी के मौके पर भात आदि पर होने वाले खर्च बारे सोच सोच कर दुबला हो सहमा सहमा दिखाई देता और भांजे की शादी पर होने वाले खर्च के लिए धन बचाने को बेचारा अपनी इच्छाएँ व खर्चों में कटौती कर मन ही मन दुखी रहता है|

इस तरह प्रचीनकाल से वर्तमान तक मामू लोग भांजों से दुखी है तो पूर्व मंत्री जी आप भी अपना दिल छोटा ना कीजिये और अपने आपको मत कोसिये कि- क्यों मैं भांजे के चक्कर में पड़ गया ?

जब हर मामू भांजों से नहीं बच सका और नहीं बच सकता तो आप कैसे बच सकते थे ?
मजे की बात है कि हर पीड़ित मामू खुद किसी मामू का भांजा है और हर भांजा खुद किसी का मामू |

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4टिप्पणियाँ

  1. यहाँ रोल कुछ उल्टा हो गया, भानजे ने मामू को निपटा दिया। :)

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    1. रोल ठीक ही हुआ है ललित जी
      हमेशा भांजे ही मामू को निपटाते आये है !

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  2. जाट, जवांई, भाणजा, रैबारी, सुनार |
    कदै न हुसी आपणों, कर देखो व्यवहार ||

    आपके शीर्षक को देखते ही मेरे दिमाग में यही कहावत आई थी.:)

    ताऊ तो सुरक्षित है क्योंकि उसके कोई भांजे नही है, बल्कि सारे भतीजे ही हैं. पर कहीं भतीजों ने खाट खडी कर दी तब इस कहावत को भी बदलना पडेगा.:)

    रामराम.

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  3. मामू तो खुद डूबा है , भांजा तो सूत्रधार मात्र था। अच्छा है ऐसी भांजागीरी से मामूओं की औकात पता चल जाती है ।

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