उतरप्रदेश के बिजनौर जनपद जिसे मुगलकाल में मधी क्षेत्र (जनपद) के नाम से जाना जाता था में बसे शेखावत राजपूतों के गांवों की नई पीढ़ी के लोग अपने बुजुर्गों से अक्सर सुनते थे कि- वे राजस्थान के सीकर- खेड़ी से आये महाराज मुकट सिंह शेखावत के वंशज है| महाराज मुकट सिंह ने राजस्थान से आकर मधी क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था, उनके पास दो चौरासी थी|
बुजुर्गों से अपने पूर्वजों का राजस्थान से आने की जब भी यहाँ की नई पीढ़ी बात सुनती तो उनके मन में अपने अतीत व अपनी उन जड़ों से वापस जुड़ने जो राजस्थान के सीकर-खेड़ी में थी की उत्सुकता जागृत होती| जो मानव मन में स्वाभाविक भी है| जनपद के शेखावतों के कई लोगों ने अपने अपने संपर्कों के जरिये सीकर खेड़ी के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश की पर कभी सफलता नहीं मिली| सीकर को तो हर कोई पहचानता है पर खेड़ी,खुडी आदि नाम से कई गांव है जिनमें यह तलाशना बहुत ही मुश्किल कार्य है पर कहते है ना कि गंगाजी को आना था, भागीरथ को यश मिलना था| ऐसे ही जब पूर्वजों की महान अनुकम्पाओं की कृपा अपने बिछुड़े हुए वंशजों को मिलाने की होती है तो ऐसे ही आश्चर्यजनक संयोग बन जाते है| और ये संयोग बने इस क्षेत्र के कुछ लोगों की अपनी जड़ों, अपने अतीत व अपने उन वंशज भाइयों जिन्हें उनके पूर्वज राजस्थान में छोड़ आये थे से वापस जुड़ने व मिलने की उत्सुकता व तमन्ना के लिए अथक श्रम व लगन से किये प्रयासों के चलते|
राजस्थान से आकर मधी क्षेत्र में कैसे राज्य स्थापित किया था महाराज मुकटसिंह शेखावत ने ?
उन दिनों फ़तेहउल्ला खां तुर्क ने नवल सिंह चौहान का कत्ल कर नीन्दडू में अपना थाना स्थापित कर लिया था| उसी के पास मधी गांव के क्षेत्र में एक श्रवण सिद्ध साधु का आश्रम हुआ करता था|
एक दिन तुर्क के सिपाहियों ने साधु के शिष्यों को भगा दिया और वहां गोश्त पकाया और खाया| इससे रुष्ट होकर सिद्ध साधु गंगाजी के तट पर पड़ने वाले गढ़मुक्तेश्वर के मेले में गया जहाँ राजस्थान के राजा लोग भी आया करते थे| वहां साधु ने राजस्थान के राजाओं के समक्ष अपनी व्यथा रखी व उनसे कहा- आप क्षत्रिय हो, उस तुर्क से मेरे अपमान का बदला लो, जीत आपकी ही होगी| मुकट सिंह ने उस साधु के अपमान का बदला लेने की प्रतिज्ञा की और साथ आये बारह राजाओं की सैनिक टुकडियां लेकर मधी क्षेत्र में आकर उस तुर्क से युद्ध किया जिसमें फ़तेहउल्ला खां मारा गया और युद्ध में विजय होने के बाद साधु के आशीर्वाद से राजस्थान से आये सभी लोग इस क्षेत्र में बस गए थे|
यह जानकारी रियासत हल्दौर के राजा हरिवंश सिंह ने सन १८४२ में राजस्थान के अलवर जिले के गांव खुखोटा निवासी जादोराय पुत्र श्री जीवनराय की पोथियों से संकलित कराई थी और जिसे एक छोटी पुस्तिका के रूप में पहले उर्दू में और बाद में हिंदी में प्रकाशित कराई थी| जिसका पूर्ण विषय ड़ा.हरस्वरूप सिंह शेखावत द्वारा लिखित पुस्तक “मुगलकालीन मधी जिले के शेखावत राजपूत” के पृष्ठ स.२३ से २७ तक उल्लिखित है |
मुकट सिंह के बारे में भाट ने लिखा है कि मुकट सिंह कछवाहे टिर सेखावत निवासी सीकर खेड़ी (राजस्थान) आला अफसर थे जिन्हें भटियाना से तेलीपुरा तक तथा रामगंगा पार सरकड़ा व रामुवाला शेखू आदि की दो चौरासी मिली थी|
कैसे सफलता मिली इस क्षेत्र के शेखावतों को अपनी जड़ो से जुड़ने में-
राजस्थान के मूर्धन्य साहित्यकार और राजस्थान के ऐतिहासिक मामलों के जानकर तत्कालीन साहित्य अकादमी दिल्ली के सदस्य सौभाग्य सिंह शेखावत, भगतपुरा से ६ जून १९९७ को डा.परमेन्द्र सिंह जी की राजस्थान भवन दिल्ली में दूसरी मुलाकात के समय डा.परमेन्द्र सिंह जी ने महाराज मुकट सिंह जी व उनके वंशज शेखावत राजपूतों के बिजनौर जनपद में कई गांव होने व उनकी अपनी जड़ो व इतिहास से जुड़ने की हसरत व तमन्ना के बारे में चर्चा की और जल्द ही इस बारे में ऐतिहासिक तथ्य लेकर मिलने का प्रस्ताव रखा और इस बीच उनका सौभाग्य सिंह जी से इस विषय पर पत्र व्यवहार चलता रहा| उसके बाद बिजनौर जनपद के डा.हरस्वरूप सिंह शेखावत व हरिसिंह शेखावत इस संबंध में पूरी जानकारी लेकर सौभाग्यसिंह जी से जनवरी १९९८ में दिल्ली में मिले| इस मुलाक़ात की वार्ता में सौभाग्य सिंह जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि- “आप लोग हमारे ही वंश से है और मैं भी जिनकी बहुत समय से खोज कर रहा हूँ वे आप ही है| आप जिन्हें मुकुट सिंह कहते है वे मुकंद सिंह है और जो जगह आप बता रहें है सीकर खेड़ी वह सीकर जिले का खुड ठिकाना है|” खुड को इतिहास में कई भाटों ने खेड़ी, कुहड़ आदि भी लिखा है जो एक इतिहासकार ही जान सकता है|
चूँकि सौभाग्यसिंह जी खुड के किले में सभी दस्तावेजों का पुर्व में अध्ययन कर चुके थे और वे खुड के स्वामी श्यामसिंह जी के एक पुत्र मुकंदसिंह के वंशजों के बारे में जानकारी जुटाने हेतु कई वर्षों से प्रयासरत थे| खुड किले में मिले ऐतिहासिक दस्तावेजों में सौभाग्यसिंह जी को यह जानकारी तो मिल चुकी थी कि मुकंदसिंह पुर्व दिशा में गए थे और वही बस गए थे पर इससे आगे की जानकारी उन्हें नहीं मिली थी जिसे जुटाने के लिए वे वर्षों से प्रयासरत थे|
राजस्थान के इतिहास में भी “गिरधर वंश प्रकाश, खंडेला का वृहद इतिहास” में ठाकुर सुरजन सिंह जी द्वारा पृष्ठ सं. ४०२ और “शेखावत और उनका समय” रघुनाथ सिंह जी काली-पहाड़ी द्वारा लिखिते पुस्तक के पृ.स.६२३ पर उल्लेख से स्पष्ट ज्ञात होता है कि खुड के स्वामी श्याम सिंह के चार पुत्रों में से एक मुकंद सिंह जिन्हें गुजारे के लिए दो गांव मिले थे वे खुड से मोहनपुरा चले गए थे और वहीं से वे मधी क्षेत्र युद्ध में भाग लेने के आये थे|
बुजुर्गों से अपने पूर्वजों का राजस्थान से आने की जब भी यहाँ की नई पीढ़ी बात सुनती तो उनके मन में अपने अतीत व अपनी उन जड़ों से वापस जुड़ने जो राजस्थान के सीकर-खेड़ी में थी की उत्सुकता जागृत होती| जो मानव मन में स्वाभाविक भी है| जनपद के शेखावतों के कई लोगों ने अपने अपने संपर्कों के जरिये सीकर खेड़ी के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश की पर कभी सफलता नहीं मिली| सीकर को तो हर कोई पहचानता है पर खेड़ी,खुडी आदि नाम से कई गांव है जिनमें यह तलाशना बहुत ही मुश्किल कार्य है पर कहते है ना कि गंगाजी को आना था, भागीरथ को यश मिलना था| ऐसे ही जब पूर्वजों की महान अनुकम्पाओं की कृपा अपने बिछुड़े हुए वंशजों को मिलाने की होती है तो ऐसे ही आश्चर्यजनक संयोग बन जाते है| और ये संयोग बने इस क्षेत्र के कुछ लोगों की अपनी जड़ों, अपने अतीत व अपने उन वंशज भाइयों जिन्हें उनके पूर्वज राजस्थान में छोड़ आये थे से वापस जुड़ने व मिलने की उत्सुकता व तमन्ना के लिए अथक श्रम व लगन से किये प्रयासों के चलते|
राजस्थान से आकर मधी क्षेत्र में कैसे राज्य स्थापित किया था महाराज मुकटसिंह शेखावत ने ?
उन दिनों फ़तेहउल्ला खां तुर्क ने नवल सिंह चौहान का कत्ल कर नीन्दडू में अपना थाना स्थापित कर लिया था| उसी के पास मधी गांव के क्षेत्र में एक श्रवण सिद्ध साधु का आश्रम हुआ करता था|
एक दिन तुर्क के सिपाहियों ने साधु के शिष्यों को भगा दिया और वहां गोश्त पकाया और खाया| इससे रुष्ट होकर सिद्ध साधु गंगाजी के तट पर पड़ने वाले गढ़मुक्तेश्वर के मेले में गया जहाँ राजस्थान के राजा लोग भी आया करते थे| वहां साधु ने राजस्थान के राजाओं के समक्ष अपनी व्यथा रखी व उनसे कहा- आप क्षत्रिय हो, उस तुर्क से मेरे अपमान का बदला लो, जीत आपकी ही होगी| मुकट सिंह ने उस साधु के अपमान का बदला लेने की प्रतिज्ञा की और साथ आये बारह राजाओं की सैनिक टुकडियां लेकर मधी क्षेत्र में आकर उस तुर्क से युद्ध किया जिसमें फ़तेहउल्ला खां मारा गया और युद्ध में विजय होने के बाद साधु के आशीर्वाद से राजस्थान से आये सभी लोग इस क्षेत्र में बस गए थे|
यह जानकारी रियासत हल्दौर के राजा हरिवंश सिंह ने सन १८४२ में राजस्थान के अलवर जिले के गांव खुखोटा निवासी जादोराय पुत्र श्री जीवनराय की पोथियों से संकलित कराई थी और जिसे एक छोटी पुस्तिका के रूप में पहले उर्दू में और बाद में हिंदी में प्रकाशित कराई थी| जिसका पूर्ण विषय ड़ा.हरस्वरूप सिंह शेखावत द्वारा लिखित पुस्तक “मुगलकालीन मधी जिले के शेखावत राजपूत” के पृष्ठ स.२३ से २७ तक उल्लिखित है |
मुकट सिंह के बारे में भाट ने लिखा है कि मुकट सिंह कछवाहे टिर सेखावत निवासी सीकर खेड़ी (राजस्थान) आला अफसर थे जिन्हें भटियाना से तेलीपुरा तक तथा रामगंगा पार सरकड़ा व रामुवाला शेखू आदि की दो चौरासी मिली थी|
कैसे सफलता मिली इस क्षेत्र के शेखावतों को अपनी जड़ो से जुड़ने में-
राजस्थान के मूर्धन्य साहित्यकार और राजस्थान के ऐतिहासिक मामलों के जानकर तत्कालीन साहित्य अकादमी दिल्ली के सदस्य सौभाग्य सिंह शेखावत, भगतपुरा से ६ जून १९९७ को डा.परमेन्द्र सिंह जी की राजस्थान भवन दिल्ली में दूसरी मुलाकात के समय डा.परमेन्द्र सिंह जी ने महाराज मुकट सिंह जी व उनके वंशज शेखावत राजपूतों के बिजनौर जनपद में कई गांव होने व उनकी अपनी जड़ो व इतिहास से जुड़ने की हसरत व तमन्ना के बारे में चर्चा की और जल्द ही इस बारे में ऐतिहासिक तथ्य लेकर मिलने का प्रस्ताव रखा और इस बीच उनका सौभाग्य सिंह जी से इस विषय पर पत्र व्यवहार चलता रहा| उसके बाद बिजनौर जनपद के डा.हरस्वरूप सिंह शेखावत व हरिसिंह शेखावत इस संबंध में पूरी जानकारी लेकर सौभाग्यसिंह जी से जनवरी १९९८ में दिल्ली में मिले| इस मुलाक़ात की वार्ता में सौभाग्य सिंह जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि- “आप लोग हमारे ही वंश से है और मैं भी जिनकी बहुत समय से खोज कर रहा हूँ वे आप ही है| आप जिन्हें मुकुट सिंह कहते है वे मुकंद सिंह है और जो जगह आप बता रहें है सीकर खेड़ी वह सीकर जिले का खुड ठिकाना है|” खुड को इतिहास में कई भाटों ने खेड़ी, कुहड़ आदि भी लिखा है जो एक इतिहासकार ही जान सकता है|
चूँकि सौभाग्यसिंह जी खुड के किले में सभी दस्तावेजों का पुर्व में अध्ययन कर चुके थे और वे खुड के स्वामी श्यामसिंह जी के एक पुत्र मुकंदसिंह के वंशजों के बारे में जानकारी जुटाने हेतु कई वर्षों से प्रयासरत थे| खुड किले में मिले ऐतिहासिक दस्तावेजों में सौभाग्यसिंह जी को यह जानकारी तो मिल चुकी थी कि मुकंदसिंह पुर्व दिशा में गए थे और वही बस गए थे पर इससे आगे की जानकारी उन्हें नहीं मिली थी जिसे जुटाने के लिए वे वर्षों से प्रयासरत थे|
राजस्थान के इतिहास में भी “गिरधर वंश प्रकाश, खंडेला का वृहद इतिहास” में ठाकुर सुरजन सिंह जी द्वारा पृष्ठ सं. ४०२ और “शेखावत और उनका समय” रघुनाथ सिंह जी काली-पहाड़ी द्वारा लिखिते पुस्तक के पृ.स.६२३ पर उल्लेख से स्पष्ट ज्ञात होता है कि खुड के स्वामी श्याम सिंह के चार पुत्रों में से एक मुकंद सिंह जिन्हें गुजारे के लिए दो गांव मिले थे वे खुड से मोहनपुरा चले गए थे और वहीं से वे मधी क्षेत्र युद्ध में भाग लेने के आये थे|
ग्राम तेलीपुरा की वंशावली का साक्ष्य
ग्राम तेलीपुरा के दो परिवारों में एक भूमि सम्बन्धी विवाद चल रहा था| उन्होंने बिजनौर मालखाने से वंशावली का पुराना रिकार्ड निकलवाया तो ज्ञात हुआ कि दोनों पक्ष माधव सिंह के वंशज है और उनके पास उस समय पांच हजार बीघा भूमि थी| जबकि माधव सिंह मुकंद सिंह के सबसे छोटे बेटे थे जिन्हें कछवाहों की उस बेल्ट का आखिरी गांव मिला था|
मौरना और खुड ठिकाने की पीढ़ियों की तुलना
मौरना के शेखावतों के शजरे (वंशावली) “मुगलकालीन मधी जिले के शेखावत राजपूत” द्वारा डा.हरस्वरूप सिंह शेखावत लिखित पुस्तक के अंत में सलंग्न की गई है| इस वंशावली में मौरना के सभी खानदानों की पीढ़ियों की संख्या लगभग एक समान है और जब इनकी तुलना व मिलान खुड ठिकाने के शजरे से किया जाता है तो पीढियां समान पाते है| इससे राजस्थान में खुड ठिकाने से इनका संबंध होना स्वत: सिद्ध हो जाता है|
संक्षेप में यह साफ है कि बिजनौर जनपद के भटियाना गांव से लेकर तेलीपुरा गांव तक कछवाहों की शेखावत शाखा के बंधू बसते है जो मूलरूप से सं १७०० ई. के बाद राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र से आये है|
महाराजा मुकट सिंह संस्थान की टीम द्वारा शेखावाटी का भ्रमण
संस्थान के अध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष व कार्यालय प्रमुख हरि सिंह जी शेखावत प्रधानाचार्य महाराज मुकट सिंह पब्लिक स्कूल, मौरना १८ मई २००७ को इसी संदर्भ में शेखावाटी के स्थानों का भ्रमण करने के लिए सौभाग्य सिंह जी के निवास स्थान भगतपुरा आये जिन्हें महावीर सिंह पुत्र सौभाग्य सिंह शेखावत ने अपनी गाड़ी से सीकर,खुड का किला,दांता का किला व महल, राव शेखाजी स्मारक रलावता, जीण माता मंदिर, सुरेड़ा (मोहनपुरा) और कुछ गांवों का भ्रमण करवाया जहाँ पुराने भाइयों से इनकी बातचीत हुई और पूरी टीम की हर गांव में बड़ी आवभगत व सत्कार किया गया| सभी ने इन लोगों को अपना भाई स्वीकार किया|
यह लेख राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार व राजस्थान के जाने-माने इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत द्वारा उपलब्ध कराई जानकारी के आधार पर|
ग्राम तेलीपुरा के दो परिवारों में एक भूमि सम्बन्धी विवाद चल रहा था| उन्होंने बिजनौर मालखाने से वंशावली का पुराना रिकार्ड निकलवाया तो ज्ञात हुआ कि दोनों पक्ष माधव सिंह के वंशज है और उनके पास उस समय पांच हजार बीघा भूमि थी| जबकि माधव सिंह मुकंद सिंह के सबसे छोटे बेटे थे जिन्हें कछवाहों की उस बेल्ट का आखिरी गांव मिला था|
मौरना और खुड ठिकाने की पीढ़ियों की तुलना
मौरना के शेखावतों के शजरे (वंशावली) “मुगलकालीन मधी जिले के शेखावत राजपूत” द्वारा डा.हरस्वरूप सिंह शेखावत लिखित पुस्तक के अंत में सलंग्न की गई है| इस वंशावली में मौरना के सभी खानदानों की पीढ़ियों की संख्या लगभग एक समान है और जब इनकी तुलना व मिलान खुड ठिकाने के शजरे से किया जाता है तो पीढियां समान पाते है| इससे राजस्थान में खुड ठिकाने से इनका संबंध होना स्वत: सिद्ध हो जाता है|
संक्षेप में यह साफ है कि बिजनौर जनपद के भटियाना गांव से लेकर तेलीपुरा गांव तक कछवाहों की शेखावत शाखा के बंधू बसते है जो मूलरूप से सं १७०० ई. के बाद राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र से आये है|
महाराजा मुकट सिंह संस्थान की टीम द्वारा शेखावाटी का भ्रमण
संस्थान के अध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष व कार्यालय प्रमुख हरि सिंह जी शेखावत प्रधानाचार्य महाराज मुकट सिंह पब्लिक स्कूल, मौरना १८ मई २००७ को इसी संदर्भ में शेखावाटी के स्थानों का भ्रमण करने के लिए सौभाग्य सिंह जी के निवास स्थान भगतपुरा आये जिन्हें महावीर सिंह पुत्र सौभाग्य सिंह शेखावत ने अपनी गाड़ी से सीकर,खुड का किला,दांता का किला व महल, राव शेखाजी स्मारक रलावता, जीण माता मंदिर, सुरेड़ा (मोहनपुरा) और कुछ गांवों का भ्रमण करवाया जहाँ पुराने भाइयों से इनकी बातचीत हुई और पूरी टीम की हर गांव में बड़ी आवभगत व सत्कार किया गया| सभी ने इन लोगों को अपना भाई स्वीकार किया|
महाराज मुकुट सिंह जी बिजनोर का ५-६ वर्ष पूर्व केलिन्डर मुझे भी संघ-सक्ति भवन जयपुर से प्राप्त हुआ था ।तब से ज्ञात हुआ की कुछ शेखावत बंधू बिजनोर में भी रहते है ।आपके इस शोधपूर्ण लेख से विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई ।
जवाब देंहटाएंसम्मानिये सोभाग्य सिंह जी का कोटिश आभार ।
अतीत से जुड़ना सबको ही भाता है, तब और भी, जब पूर्वजों ने इसे गौरवशाली बनाया हो।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा,लाजबाब शोधपूर्ण जानकारी के लिए ....बधाई रतन सिंह जी,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: रूप संवारा नहीं,,,
अतीत का ज्ञान होना जरूरी है...... बढ़िया आलेख... कईयों को तो अपने पूर्वजो के इतिहास के बारे में पता ही नहीं होता?
जवाब देंहटाएंbahut sudar lekh hain.hindi bhasha me internet par achche lekhan ki bahut maang hai aajkal.aisa hi ek prayas main bhe kiya hai.jankri ke liye http://meaningofsuccess1.blogspot.in/ visit karein..aapko pasand aayega :)
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