कविता की करामात

Gyan Darpan
15
कवि अपनी दो पंक्तियों में भी वह सब कह देता है जितना एक गद्यकार अपने पुरे एक गद्य में नहीं कह पाता,राजा महाराजाओं के राज में कवियों को अभिव्यक्ति की पूरी आजादी हुआ करती थी और वे कवि अपने इस अधिकार का बखूबी निडरता से इस्तेमाल भी करते थे|राजस्थान के चारण कवि तो इस मामले बहुत निडर थे राजा कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसकी गलत बात पर ये चारण कवि अपनी कविता के माध्यम से राजा को खरी खरी सुना देते थे|शासक वर्ग इन कवियों से डरता भी बहुत था कि कहीं ये कवि उनके खिलाफ कही कविताएँ न बना दें|

यही नहीं इन कवियों की कविताओं में इतनी करामात होती थी कि एक कायर भी उनकी कविता सुन युद्ध भूमि में देश के लिए बलिदान होने को तत्पर हो जाता था|मैं यहाँ इतिहास में पढ़े कुछ ऐसे किस्से प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमे कविताओं की करामात का पता चलता है -

1-1903 मे लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार मे सभी राजाओ के साथ हिन्दू कुल सूर्य मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियो को अच्छा नही लग रहा था इसलिय उन्हे रोकने के लिये शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूर सिह ने ठाकुर करण सिह जोबनेर व राव गोपाल सिह खरवा के साथ मिल कर महाराणा फ़तह सिह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिह बारहट को दी | केसरी सिह बारहट ने "चेतावनी रा चुंग्ट्या" नामक सौरठे रचे जिन्हे पढकर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुये और दिल्ली दरबार मे न जाने का निश्चय किया |और दिल्ली आने के बावजूद समारोह में शामिल नहीं हुए |

राजस्थान की डिंगल भाषा में लिखे इन दोहों को आप हिंदी अनुवाद सहित यहाँ जाकर पढ़ सकते है|

2-जोधपुर के शक्तिशाली शासक राव मालदेव की रानी उमादे जो इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है को मना कर लाने हेतु मालदेव ने एक चारण कवि को भेजा जिसने अपने दोहों से प्रभावित कर रानी को जोधपुर चलने के लिए वचनबद्ध कर लिया जब वह कवि रानी को लेकर जोधपुर पहुँच ही रहा था तब एक दूसरे कवि कवि आशानन्द जी ने रानी का रथ आते देख सोचा कि इस कवि ने तो रानी को मनाकर इसके आत्म सम्मान को ही खत्म कर दिया और तुरंत रानी को सुनाते हुए एक दोहा कह डाला -
माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण |
दो दो गयंद न बंधही , हेको खम्भु ठाण ||


अर्थात मान रखना है तो पति को त्याग दे और पति रखना है तो मान को त्याग दे लेकिन दो-दो हाथियों का एक ही स्थान पर बाँधा जाना असंभव है |

अल्हड मस्त कवि के इस दोहे की दो पंक्तियों ने रानी उमादे की प्रसुप्त रोषाग्नि को वापस प्रज्वल्लित करने के लिए धृत का काम किया और कहा मुझे ऐसे पति की आवश्यकता नहीं | और रानी ने रथ को वापस जैसलमेर ले जाने का आदेश दे दिया |

3-देवगढ़ के रावत रणजीतसिंह जी उदयपुर महाराणा के अधीन चाकरी में थे पर वे बहुत बहादुर,निडर व घमंडी थे उनके घमंड के चलते उनके व महाराणा स्वरूपसिंह जी के बीच मनमुटाव हो गया था रही सही कसर रणजीतसिंहजी से नाराज रहने वाले लोगों ने उनके खिलाफ महाराणा को उकसाकर पूरी कर दी फलस्वरूप महाराणा ने रणजीतसिंहजी को सबक सिखाने हेतु देवगढ़ पर आक्रमण करने को सेना को आदेश दे दिया|देवगढ़ पर हमले का मतलब मेवाड़ में गृह कलह की शुरुआत होती|गृह कलह के बीज पड़ते देख महाराणा के दरबार में रहने वाले कवि राव बख्तावरजी ने चिंतित हो महाराणा को देवगढ़ पर आक्रमण रोकने हेतु कुछ दोहे लिखकर सुनाये जिन्हें सुनने के बाद महाराणा ने देवगढ़ पर हमले के लिए चढ़ी फ़ौज को रोक दिया| इस प्रकार कवि की कुछ पंक्तियों ने मेवाड़ को गृह कलह से बचा लिया| कवि ने जो पंक्तियाँ महाराणा को सुनाई उनका भाव कुछ इस तरह था कि ऐसा मस्त और निडर व्यक्ति का राज्य में होना जरुरी है-

"मस्त हाथी जब निरंकुश हो जाता है तो उसे राज्य से बाहर थोड़े ही निकाला जाता है?वे तो उल्टा राज्य की शोभा होते है,जब किलों के नुकीले भाले लगे दरवाजों को तोड़ना होता है तब ऐसे ही मस्त हाथी काम आते है,सवारी में हुक्म मानकर चलने वाले उस वक्त काम नहीं आते,नदियाँ जब पाट छोड़कर बहने लगती है तब उन्हें पार करने के लिए ऐसे ही हाथियों को उनमे उतारा जा सकता है,अंकुस से डरने वाले हाथी उस वक्त काम नहीं आते,उसी तरह मुसीबत के समय ऐसे (रणजीतसिंहजी जैसे)बांके सरदार ही काम आयेंगे,राजा महाराजा तो ऐसे ही प्रचंड रुद्र्ता वाले व्यक्तियों पर रीझते आये है|
जरै ही जंजीरन तै द्वार की उदारता दे
हीलै निज दल तै संहार किजियत है ||१||
कानन विकटन पै, महानद्द घाटन में
भूरज कपाटन पै हूल दाजियत है||२||
'बखत' भनंत भूमि पालन की रीति यह
रुद्रता प्रचंड पै सदा ही रीझियत है||३||
एक मतवालो होय आंगछ न मानै कहा
दुरद दरबार न तै दूर कीजियत ||४||


4-रियासती काल में ठिकानेदार अपनी रियासत की राजधानी में अपना एक वकील रखते थे जिसे आज के जमाने में हम राजदूत कह सकते है पर उस वक्त राजदूत को वकील ही कहते थे जो राजधानी में अपने ठिकानेदार के हितों का ख्याल रखता था|
उन दिनों ठिकानों के ठाकुर अपनी मन मर्जी भी बहुत किया करते थे जिस व्यक्ति को आँखों पर बिठाकर प्रधान बना देते उसे कुछ गलतियों पर ही सीधा जेल में भी डाल दिया करते थे,आज जो प्रधान बना दूसरों को सजा सुनाता था दूसरे ही दिन वह खुद काल कोठारी में कैद हो सकता था|

ऐसे ही देवगढ़ के रावत किसनसिंहजी ने राजमल मुहता को अपना वकील बनाकर उदयपुर रखा हुआ था एक बार किसनसिंह जी किसी बात को लेकर राजमलजी नाराज हो गए और उन्हें जेल में डाल दिया,राजमलजी बड़े दुखी हुए उन्हें यह भी नहीं पता कि कब तक उन्हें जेल में रखा जायेगा और क्या पता क्या सजा मिले|कहीं मृत्यु दंड ही ना मिल जाये|
पहले जब रावतजी राजमलजी से खुश थे एक बार उन्हें कान में पहनने को रावतजी ने मोती दिए थे,उन्ही मोतियों को याद कर राजमलजी को एक उपाय सुझा और उन्होंने एक कागद पर एक दोहा लिखकर पहरेदार को दिया कि ये रावतजी को दे देना| उस पत्र में दोहा लिखा था-
बाकर कड़ी बकाळ, पहराया खग ना पडै|
किसण करियो कड़ियाळ, मुंडो किण रो मारलै||

बनिया बक्काल ही जब किसी बकरे के कान में कड़ी डालकर उसे छोड़ देते है तो वह अमर हो जाता है,कोई भी उस बकरे के सिर पर तलवार नहीं उठाता| मैं तो किसनसिंह जी के द्वारा कड़ियाळ लिया हुआ हूँ अर्थात मेरे कान में जो मोतियों की कड़ी है वह किसनसिंह जी द्वारा पहनाई हुई है| एसा कौनसा मुंह है जो मुझे मार सके|

रावत किसनसिंह जी के ये युक्ति जच गयी - "सही बात ये तो मेरे द्वारा कड़ियाळ किया हुआ है इसे कौन मार सकता है|" और राजमलजी के सभी गुनाह माफ़ कर कैद से मुक्त कर दिया गया|
यहाँ भी राजमलजी की कविता ही उन्हें बचाने के काम आई|
5-"जैसलमेर रो जस"नामक काव्य की रचना करने वाले निर्भीक कवि रंगरेला को अपने इस काव्य में जैसलमेर राज्य की कमजोरियां व अभाव गिनाने पर जैसलमेर के रावल जी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने नाराज होकर कवि को कैद में डाल दिया| कुछ समय बाद जैसलमेर रावल जी पुत्री की शादी थी | उसे ब्याहने बीकानेर के राजा रायसिंह बारात लेकर आये वे कवियों व गुणीजनों के कद्रदान थे | जब वे बारात लेकर हाथी पर बैठ गुजर रहे थे गाजा बाजा सुन रंगरेला को भी पता चला जैसे बीकानेर राजा उसकी कोठरी के पास से गुजरे उसने जोर से एक कविता बोली | बीकानेर नरेश के कविता कानों में पड़ते ही उन्होंने हाथी रुकवा पूछा ये कविता कौन बोल रहा है, उसे सामने लाओ,कोई नहीं बोला तो ,रंगरेला ने फिर जोर से कहा कि - मैं जेल की कोठरी से बोल रहा हूँ मुझे कैद कर रखा गया है | हे कवियों के पारखी राजा ! मुझे जल्दी आजाद करावो |"

इतना सुनते ही बीकानेर राजा रायसिंहजी ने उसके बारे में जानकारी ली | उन्हें बताया गया कि वह राज्य का गुनाहगार है इसलिए छोड़ा नहीं जा सकता | पर बीकानेर राजा ने साफ़ कह दिया कि - अब कवि को कैद से छोड़ने के बाद ही मैं शादी के लिए आगे बढूँगा |
तब जैसलमेर वालों ने रंगरेला को आजाद किया | बीकानेर राजाजी ने कवि को अपने आदमियों की हिफाजत में भेज दिया और शादी के बाद उसे बीकानेर ले आये |
इस प्रकार कवि रंगरेला के कैद से मुक्त होने में भी उसकी कविता ने ही भूमिका निभाई|

6-हल्दी घाटी के युद्ध में पराजय के बाद महाराणा प्रताप भी जंगलों में रहते रहते विचलित हो उठे और उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने का मानस बनाया जब ये बात बीकानेर के राजकुमार पृथ्वीसिंह राठौड को पता चली तो उन्होंने महाराणा प्रताप को कुछ ऐसे दोहे लिखकर भेजे कि उन्हें पढकर राणा का खून खौल उठा और अपने विचार पर पछतावा करते हुए उन्होंने कसम खाई कि वे मर जायेंगे पर अकबर के आगे कभी न झुकेंगे|इस तरह पृथ्वीसिंह के दोहों ने महाराणा को कर्तव्य पथ पर अडिग रहने में मदद की| बीकानेर का यह राजकुमार अकबर के पास ही रहता था और उसका चहेता कवि था जो इतिहास में पीथल के नाम से प्रसिद्ध हुआ|

राजस्थान के सुप्रिद्ध कवि स्व.कन्हैयालाल सेठी ने इस घटना पर एक कविता भी लिखी जो बहुत प्रसिद्ध हुई|पाथल और पीथल के नाम से प्रसिद्ध यह कविता यहाँ पढ़ी जा सकती है|

एक टिप्पणी भेजें

15टिप्पणियाँ

  1. आज तो कवि और कविता दोनो कि महानता का पता चल गया ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह बहुत सुन्दर आकलन किया।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया सर ।

    सादर
    -----------

    कल 25/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. कवि को बहुत बड़ी चीजों को थोड़े में व्यक्त करने में महारत होती है।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह इतिहास की ऐसी झलकियां शानदार हैं आज कौन कवि होगा जो प्यारी मम्मी के पास जाकर इतालवी मे उनसे इसरार कर सके

    जवाब देंहटाएं
  7. राजस्थानी शौर्य को आम आदमी तक ले जाने का आपका प्रयास सराहनीय रहेगा ! शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं
  8. सच में कविता ने बड़े-बड़े करामात किए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. कलम तो हमेशा से तलवार से ज्यादा ताकतवर रही है,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  10. राजस्थानी शौर्य की झलकियां शानदार हैं,आपका प्रयास सराहनीय

    जवाब देंहटाएं
  11. देखिये झूठ-मूठ में बहुत बढ़िया नही लिखूँगी। आज रात आराम से पढूँगी फ़िर ही टिप्पणी करूँगी। मैने इसे सेव कर लिया है। कविता होती तो जल्दी पढ़ ली जाती। किन्तु बिना पढ़े टिप्पणी नही दे पाऊँगी।

    जवाब देंहटाएं
  12. कहा भी जाता है .....जहाँ न पहुंचे रवि ,वहां पहुंचे कवि अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. कल 26/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  14. सुंदर प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें