ठाकुर गंगा सिंह दांता के ज्येष्ठ पुत्र केशरी सिंह के निसंतान निधन हो जाने के बाद ठाकुर गंगासिंहजी की मृत्यु के बाद उनके द्वतीय पुत्र मदनसिंह जी दांता ठिकाने की गद्दी के स्वामी बने |
मदन सिंह जी का जन्म चेत्र शुक्ल नवमी वि.स.1977 में ठाकुर गंगासिंह जी की ठकुरानी सूरजकँवर की कोख से हुआ | आपने मेयो कालेज अजमेर से डिप्लोमा तक शिक्षा प्राप्त की |
ठाकुर मदनसिंह दांता जयपुर स्टेट की सवाई मानसिंह गार्ड में कम्पनी कमांडर (कप्तान) थे | तथा उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में वीरता और साहस के साथ शत्रु पर आक्रमण कर विजय पाई |
जागीर समाप्ति तक आप दांता ठिकाने के शासक रहे वे दांता के अपने पूर्वज अमरसिंह के सोलहवीं पीढ़ी पर थे | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अनेक राजनैतिक दलों का गठन हुआ | स्वामी करपात्री जी महाराज द्वारा संस्थापित अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की राजस्थान प्रदेश शाखा के अध्यक्ष पद पर ठाकुर मदनसिंह दांता को निर्वाचित किया गया | सन 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में सीकर जिले के कांग्रेस की रीढ़ समझे जाने वाले कांग्रेसी उम्मीदवार कमलनयन बजाज को हराकर अपने ही जिले में राम राज्य परिषद के उम्मीदवार नंदलाल शास्त्री को विजयी बनाने का श्रेय ठाकुर मदनसिंह दांता को ही जाता है |

ठाकुर साहब की उदारता व देशप्रेम भी काबिले तारीफ था| कोई भी जरुरत मंद गरीब उनके यहाँ से कभी खाली हाथ नहीं लौटता था ,रास्ते चलते भी उन्हें कोई जरुरत मंद मिल जाता तो तो वे अपने पास जो कुछ होता दे देते थे |
सन 1962 में भारत चीन युद्ध हुआ जो सर्वविदित है | उस समय भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री कृष्ण मेनन ने जयपुर के रामनिवास बाग़ में एक जनसभा कर देश के लिए रक्षा कोष में दान देने की अपील की थी |
उस समय दांतापति ठाकुर श्री मदनसिंह ने अपने ठिकाने की मुवावजे की एक लाख की राशी दान स्वरुप रक्षा कोष में दे दी थी और अपने जयेष्ट पुत्र श्री ओमेन्द्रसिंह को व अपने खानदान की सुनहरी मूठ की तलवार भी रक्षा कोष में अर्पित किया था |एक लाख रोकड़ दिया ,कनक मूठ कृपान |
सुत ओमेन्द्र को दिया , देश हितार्थ दान ||
ठाकुर साहब का विवाह कचोल्या( किशनगढ़ )के महाराज ओनाड़सिंह जी की पुत्री जोधी जी नन्दकँवर के साथ संपन्न हुआ था, जिनकी कोख से आपको पांच पुत्र रत्न प्राप्त हुए
1- ओमेन्द्रसिंह 2- दिलीपसिंह 3- जीतेन्द्रसिंह 4-करणसिंह 5- राजेंद्रसिंह
ठाकुर सौभाग्यसिंह जी द्वारा लिखित अप्रकाशित खूड व दांता ठिकानों की वंशावली से साभार
दसवी कक्षा में हमारा परीक्षा केंद्र दांता था तब परीक्षा के लिए मेरी स्कूल के सभी विद्यार्थियों को एक माह के लिए दांता में रहने की व्यवस्था करनी पड़ी थी ,मैं भी दांता में अपने रहने व्यवस्था के लिए दांता गया और ठाकुर साहब से मिलकर अपनी समस्या बताई तो उन्होंने सहज भाव से मुझे कहा - ये कोई समस्या है ? मेरे इस गढ़ में अपने रहने की जो जगह पसंद हो वो बता दो उसी सफाई करवा देता हूँ और यहीं मेरे पास मौज से रहो चाहो तो अपनी कक्षा के सभी छात्रों को यहीं रहने के लिए ले आवो | और उसके बाद हमें ठाकुर साहब के छोटे कुंवर राजेंद्रसिंह जी ने पूरा गढ़ दिखाया ,हमें तो गढ़ के मुख्य द्वार पर बने कक्ष ही पसंद आये और वहीं एक माह तक ठाकुर साहब के सानिध्य में अपने दो सहपाठी मित्रों के साथ रहकर परीक्षा उत्तीर्ण की |
दांता ठिकाने का गढ़ व पहाड़ स्थित किला
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अति सुंदर रचना जी , ठाकुर साहब बहुत अच्छॆ थे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी है रतनसिंग जी।
जवाब देंहटाएंठाकुर साहब की दानशीलता अनुकरणीय है।
अबकि बार दांता जाएंगे तो गढ में जरुर जाएंगे।
आभार
इतनी बार खाटू श्यामजी के गये पर आज तक दांता रामगढ का इतना सुंदर गढ देखने नही गये, यह पोस्ट लगाकर आपने उत्सुकता बढा दी, अबकी बार अवश्य जाकर आयेंगे. ठाकुर साहब को नाम से तो जानते ही थे पर उनके व्यक्तित्व के अन्य पहलूओं से रुबरू करवाया इसके लिये आपका बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
aap bhut kismat wale h hukum jinko unke sanidhy me rahane ka moka mila.........unke pote sahab balraj singh ji ne mujhe wo ghadh dikhane wada kiya h..........agr esa hua to m bhi us dhrti p ghum aanungi jaha unke chran kamal pade the.......bhut badiya jankari ke liye shukriya.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी दी है | ऐसे महा पुरूष को नमन | चित्र भी बहुत बढ़िया लगाये है |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा, उदारमना और दानशील व्यक्तित्व के बारे में पढ़कर।
जवाब देंहटाएंवास्त्विक राजॠषि थे मदनसिंह जी!
जवाब देंहटाएंप्रसस्ति अभिव्यक्त हुई,
एक लाख रोकड़ दिया ,कनक मूठ कृपान |
सुत ओमेन्द्र को दिया , देश हितार्थ दान ||