
दरअसल हर बीमार या अपने दुखों से दुखी व्यक्ति जगह-जगह भटकता है वह कई डाक्टरों से अपना इलाज भी करवाता है और उसी दरमियान अनेक साधूओं,मंदिरों,दरगाहों आदि पर भी किसी चमत्कार की आशा में भटकता है , लेकिन इसी क्रम में जब किसी डाक्टर की दवाई से उसे फायदा हो जाता है तो वह सारा श्रेय उस साधू ,गुरु या देवता को दे देता है जिसके पास वह उस समय भटक रहा होता है ऐसा ही एक उदहारण आपके सामने प्रस्तुत है -

खैर उसी उदहारण को देखते हुए मैंने अपने मित्र को थूजा-30 देना शुरू किया जिसका वो लगभग तीन महीने तक सेवन करते रहे फिर छोड़ दिया | थूजा के सेवन को छोड़ने के बाद संयोग से उसी वक्त हमारे मित्र का अपने गांव जाना हुआ जहाँ उन्हें किसी ने बताया कि उनके गांव स्थित एक देवरे(किसी लोक देवता का छोटा मंदिर) पर झाड़ू चढाने पर मस्से ठीक हो जाते है सो मित्र ने भी वहां एक की जगह दो झाड़ू चढ़ा दी |

मैं और मेरा प्रण |
ताजा चित्र प्रकृति के जो एक मिनट पहले लिए है |
ताऊ पहेली - 87 (कांगड़ा दुर्ग, कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश)
समाज में अंधविश्वास ही एक लाइलाज बीमारी होती जा रही है !!
जवाब देंहटाएंसही है-गाँव में चुल्हे की राख को भभूत कहके स्याणा पकड़ा देता है और बांझ के बेटा हो जाता है।
जवाब देंहटाएंफ़िर तो उसकी जिन्दगी भर की पौ बारह हो जाती है।
अच्छी पोस्ट
आभार
आपकी बात में दम है | लेकिन यह हमेशा से ही सत्य नहीं है | कई बार ऐसा भी होता है कि स्वस्थ व्यक्ती को कोइ शारीरिक रोग होता ही नहीं है और डॉक्टर को खुद को समझ में नहीं आता है कि यह क्या रो्ग है | यानी कि किसी अलौकिक शक्ती के प्रभाव में होता है तब आपकी बात लागू नहीं हो पाती है | आपके गाँव से थोड़े आगे जाने पर नागौर जिले में एक गाँव है बूटाटी | वंहा कोइ भी डाक्टरी दवा के बगैर लकवे का मरीज सात दिन में ठीक होकर के आता है | वंहा किसी साधू ने समाधी ली थी | अंधविश्वास और श्रधा दोनों में थोड़ा सा ही फर्क है लेकिन कुछ पढ़े लिए लोग इन्हें एक ही समझते है | आप मस्स की बात कर रहे है | इसके लिए कारगर इलाज है | सुहागा पानी के साथ पीस कर उस पर लगाइए | तीन दिन में ही ठीक हजो जायंगे |
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ने बहुत अच्छी तरह से आँख खोली दी है !
जवाब देंहटाएं--
मगर नेत्रहीनों के लिए शायद यह कारगर नही होगी!
आपकी पोस्ट ने बहुत अच्छी तरह से आँख खोली दी है !
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मगर नेत्रहीनों के लिए शायद यह कारगर नही होगी!
ME bhi yahi kahana chahungi..............
आप सच कह रहे हैं, श्रेय टोटकों को ही चला जाता है।
जवाब देंहटाएंनरेश जी से सहमत....दवा और दुआ दोनों का अपना महत्त्व है,ऐसी बहुत सी जगह है जहाँ बीमारियाँ बिना दवा ठीक होते देखी जा सकती है...
जवाब देंहटाएंचमत्कार की आशा, अपनी उद्यम-विमुखता को सहारा देती है. ऐसे लोगों का भला करने के लिए शायद उपर वाले को ही उद्यम करना होता होगा.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम
अंधविश्वास ने लोगो का ओर भारत का बेडा गर्क कर रखा है, बाकी आप की बात से सहमत हुं
जवाब देंहटाएंरजनीश परिहार जी की बात को दुहराना चाहूंगा -
जवाब देंहटाएंदवा और दुआ दोनों का अपना महत्त्व है,
तीन महीने खाई गयी उस दवा का असर संदर्भित मंदिर में जाने के बाद ही दिखना एक संयोग ही था या कुछ और भी कारण हो सकता है यह गहराई से जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए. चूंकि उस व्यक्ति ने थूजा खाई थी इसी लिए मस्से गायब हो गए यह सोच भी एक अंध विश्वास ही है. मुझे भी शरीर के विभिन्न हिस्सों में मस्से हो जाया करते हैं और स्वतः गायब भी हो जाते हैं. एक बार एक होमिओपैथ की सलाह पर कुछ समय के लिए थूजा भी लिया. लेकिन लाभ नहीं हुआ.
वैसे आपकी बात शत प्रतिशत सही है क्योंकि आपने जो उदाहरण दिए हैं वे सभी आपकी कही बात पर फिट बैठते हैं
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट को भी पढ़ें हो सकता ही आपको अच्छी लगे
रक्षा बंधन [ कथाएं, चर्चाएँ, एक कविता भी ] समय निकालो पढ़ डालो
Dear Sir
जवाब देंहटाएंaap ne jo baat btai vo to bilkul saty hai.
kripa karke aap mujhe bhi koi sujhav de ya koi medicine jrur bataen mujhe
7-8 din se apne jnanang (penis) par bhi chote-2 masse type kuch dikh rha hai. maine doctor ko btaya to unhone ek pine ki dwai de di or kha inka koi safal treatment nhi hai. please mujhe koi aachi si medicine btayen mai ek shadi suda hun. meri biwi abhi apne mayke gai hui hai. mai bhut tension me hun sir plz........
हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ
जवाब देंहटाएंसच है यश भी बिना ईश्वर की आज्ञा से नहीं मिलता ! श्री दूसरा ही ले जाता है !