बहुत खास रहा २३ मई रविवार 'हिंदी ब्लोगर मिलन कार्यक्रम '

Gyan Darpan
12
यूँ तो मानव जीवन में हर दिन हर पल ख़ास होता है पर उनमे भी किसी दिन ऐसे लम्हे घटित होते है कि वो दिन व्यक्ति के जीवन में ख़ास हो जाता है तथा उस दिन के लम्हे व्यक्ति के मानसपटल पटल सुनहरी यादों के रूप में दर्ज हो जाते है ऐसा ही २३ मई रविवार का दिन मेरे लिए भी कुछ ख़ास रहा | २३ मई से कुछ दिन पहले ही ललित जी का फोन आ गया था कि वे २३ मई को दिल्ली आ रहे है बस यह खबर सुनते ही मन प्रसन्न हो उठा पता था कि ललित जी आयेंगे तो उनसे मिलने दिल्ली के ब्लोगर बंधू जरुर इकठ्ठा होंगे और मन में पक्का इरादा कर लिया था कि इस बार ब्लोगर मिलन कार्यक्रम में शामिल जरुर होना है क्योंकि पिछले दो कार्यक्रमों में शामिल न होने का गम जो था | अब इन्तजार था मिलन कार्यक्रम के स्थान , समय व रुपरेखा के समाचार का, तभी नुक्कड़ पर अविनाश जी द्वारा हिंदी ब्लोगर सम्मलेन में शामिल होने का खुला निमंत्रण पाकर तो ख़ुशी का ठिकाना ही न रहा |
२३ मई सुबह जल्द ही अपने घरेलू कार्य पुरे कर ललित जी को फ़ोन लगाया कि महाराज ! कहाँ तक पहुंचे ? मुझे उनके आश्रम एक्सप्रेस से आने की सूचना थी पर महाराज का जबाब मिला कि वे गुरगांव पहुँच चुके है साथ ही उन्होंने समय से पहले पहुँचने का अनुरोध भी कर डाला ताकि कार्यक्रम से पहले कुछ गप-शप हो जाय |
- ब्लोगर मिलन सम्मलेन चूँकि फरीदाबाद से काफी दूर था सो गर्मी में बाईक पर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी सो ट्रेन से जाने के कार्यक्रम के तहत पुराना फरीदाबाद रेल्वे स्टेशन पहुंचा , रेल्वे स्टेशन के पास ही एक कालेज के जमाने के मित्र रहते है उन्हें फोन कर हमने उन्हें रेल्वे स्टेशन पर ही बुला लिया था , उनसे पिछले पच्चीस सालों में कभी मिलना ही नहीं हुआ | दरअसल हमें एक दुसरे को पता ही नहीं था कि हम दोनों फरीदाबाद ही रहते है पर आखिर हिंदी ब्लॉगजगत ने हमें पच्चीस वर्षों बाद मिला ही दिया | उन मित्र ने पिछले हफ्ते ताऊ .इन पर छपा मेरा साक्षात्कार पढ़ा तब उन्हें मेरे फरीदाबाद में होने का पता चला और उन्होंने ताऊ.इन से मेरा ईमेल लेकर मुझसे संपर्क किया | इस तरह २३ मई को ब्लोगर सम्मलेन में भाग लेने से पहले एक पुराने मित्र से पच्चीस साल बाद मुलाकात का लम्हा कैसे भुलाया जा सकता है |
- कालेज के पुराने साथी से मिल हमने दिल्ली वाली इएम्यू पकड़ी जिसमे रविवार होने के बावजूद इतनी भीड़ थी कि नई दिल्ली स्टेशन पहुँचने का भी मैं इंतजार नहीं कर सका और तिलक ब्रिज आते ही जैसे तैसे उतर गया | भीड़ इतनी ज्यादा थी कि ट्रेन से उतरना भी मुश्किल लग रहा था | इतनी जबरदस्त भीड़ में यह लघु यात्रा करने का अनुभव भी मेरे लिए तो नया ही था | सोच रहा था कि इन ट्रेनों में नियमित यात्रा करने वाले लोग कितने शूरवीर है जो बिना किसी शिकायत के इतना सब रोज झेलते है |
- तिलक ब्रिज स्टेशन पर उतरते ही एक मित्र जिनका नाम भी रतन सिंह शेखावत है का फोन आ गया और उनसे भी लगभग आधे घंटे हिंदी ब्लॉगजगत पर चर्चा हुई | इनसे भी जान - पहचान ब्लॉगजगत के माध्यम से ही हुई थी | बातचीत ख़त्म कर जैसे ही ब्लोगर मिलन सम्मलेन स्थल पर पहुँचने के लिए प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन पहुंचा एक और मेरे अजीज मित्र महेश खेतान का बेंगलोर से फोन आ गया | महेश जी से भी पिछले पच्चीस वर्षों बाद भी आजतक मिलना नहीं हुआ है और पिछले दस वर्षों से तो फोन पर भी संपर्क नहीं हुआ पर गूगल बाबा की मदद से हमने उन्हें खोज निकला और अपना फोन न. सहित सन्देश भेज दिया जो मिलने के बाद २३ मई को मेट्रो स्टेशन पहुँचते ही उनका फोन आ गया अब तो हमारी ख़ुशी चौगुनी होने जा रही थी , पहली हिंदी ब्लॉगजगत के साथियों से पहली बार रूबरू होने की , पच्चीस वर्षों बाद एक दोस्त से मिलने की , एक खास अजीज स्कूली दोस्त से दस वर्षों बाद संपर्क बनने की और चौथी मेट्रो में पहली बार यात्रा करने की |
प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन पर नागलोई का टोकन लेते ही राजीव जी तनेजा का फोन आ गया - भाईजी आ रहे है ना | हमने भी उन्हें सूचित किया कि प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन से नागलोई का टोकन ले लिया है तो उन्होंने हमें कहाँ कहाँ मेट्रो बदलनी है समझा दिया वरना हम तो आज पहली बार मेट्रो में बैठे थे उलझे ही रहते | पहली बार मेट्रो में यात्रा करने का अनुभव भी रोचक रहा | अपने देश में एक बढ़िया सेवा देख मन प्रसन्न हुआ पर मेट्रो के नागलोई रेल्वे स्टेशन पर बाथरूम में पानी न देख काफी निराशा हुई | लेकिन मन को समझाया आखिर मेट्रो है तो क्या हुआ है तो भारत में ही ना |
मेट्रो से उतर कर सम्मलेन स्थल जाट धर्मशाळा का पता पूछ जो थोड़ी ही दूर पर स्थित थी पहुँच गए जहाँ राजीव तनेजा जी व माणिक तनेजा सम्मलेन की व्यवस्था में लगे हुए व्यस्त थे पर हमें तो बतलाने के लिए जयकुमार जी झा मिल गए थोड़ी देर में एक एक कर हिंदी ब्लोगर्स पहुँचते गए , कभी किसी से व्यक्तिगत चर्चा तो कभी किसी से समय का पता ही नहीं चला और ना दिल भरा बतियाने से | लेकिन सम्मलेन में किस किस से क्या बातचीत हुई वह आज नहीं बताएँगे | क्योंकि आखिर इस पर एक पोस्ट और भी जो ठेलनी है |
तो हिंदी ब्लोगर्स सम्मलेन में जो अनुभव महसूस व हासिल किया वह अगली पोस्ट में ....................








ताऊ डाट इन: ताऊ का इंटरनेट कनेक्शन फरार
मेरी शेखावाटी: गलोबल वार्मिंग की चपेट में आयी शेखावटी की ओरगेनिक सब्जीया
Tags

एक टिप्पणी भेजें

12टिप्पणियाँ

  1. चलिए देर से ही सही आपने भी अपना अनुभव सबसे बांटा जिसे जानकर और पढ़कर अच्छा लगा ,आपसे मिलकर हमें भी अच्छा लगा और आप समय से पहुंचने वाले ब्लोगरों में से एक थे / आपके अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा / अच्छी रोचक प्रस्तुती /

    जवाब देंहटाएं
  2. अगली की गली
    जरूर लागेगी भली
    जब यह साफ है
    तो वो भी सुथरी होगी।

    मैं तो आपसे 51 बरस बाद मिला, क्‍यूं कुछ याद आया ?

    जवाब देंहटाएं
  3. रतन जी ,
    बहुत शुरू से ही आपसे मिलने की उत्कट इच्छा थी , देर से ही सही पूरी तो हुई । बहुत ही बढिया अनुभव रहा हमारे लिए भी । और राम बाबू जी मिलन और उनके ब्लोग्गर बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं लगी । अगली कडी की प्रतीक्षा में .......

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया...विस्तृत रिपोर्ट...अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा

    जवाब देंहटाएं
  5. आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा

    जवाब देंहटाएं
  6. पर मेट्रो के नागलोई रेल्वे स्टेशन पर बाथरूम में पानी न देख काफी निराशा हुई |
    शेखावत जी,
    नांगलोई तो चलो नया बना स्टेशन है, जरा एक बार शाहदरा रिठाला वाली लाइन पर किसी भी स्टेशन के टॉयलेट में चले जाइये, बहुत कुछ देखने-सीखने को मिलेगा।

    जवाब देंहटाएं
  7. अनुपम ढंग है आपका

    अच्छा लगा,,,,,,,,,,

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर विवरण जी अगली कडी का इंतजार है.
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. हामारे नीरज जी अभी यंहा मेट्रो की शिकायत सुन सकते है | आप देहली के पास में रहते है ये ही तो फ़ायदा है, हिन्दी के सबसे ज्यादा ब्लोगर दिल्ली में रहते है |और सभी से आसानी से जान पहचान हो सकती है | आप अपने पुराने मित्रों से मिल पाए यह सुनकर खुशी हुयुई | इस कार्य हेतु तो मैंने नया ब्लॉग " खोया पाया " बनाया है | जिसमे पुराने मित्र आसानी से मिला जाए | अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा |

    जवाब देंहटाएं
  10. हा...हा...हा....हा....हू....हू.....हू.....हू.....हे.....हे.....हे.....हो....हो.....हो....गनीमत है कि किसी ने हमें वहां देखा नहीं....हम भी वहीँ रोशनदान में बैठे सबको टुकुर-टुकुर निहार रहे थे....अगर गलती से भी वहां सबके बीच टपक पड़ते तो सारे कार्यक्रम की वाट ही लग जाती....खैर मुबारक हो सबको यह सम्मलेन.....!!!

    जवाब देंहटाएं
  11. अजी आप तो 15किमी के सफर में ही बीच रास्ते में उतर पडे।
    हम तो रोज 60+60=120किमी का सफर इन रेलों में ही करते हैं।
    आश्चर्य हुआ कि आप पहली बार मैट्रो में बैठे हैं।

    प्रणाम स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें