
जिन वेदों के एक एक श्लोक की व्याख्या के लिए पूरा लेख छोटा पड़ जाता है, जिन्हें समझने के लिए कई जन्म कम पड़ जाते है उन वेदों की ये तथाकथित विद्वान अपने हिसाब से विवेचना करने में लगे है | जिन लोगों को इंसानियत और मानव धर्म तक की समझ नहीं है उन्हें वेदों और धर्म के बारे में बड़ी बड़ी बाते लिखते देख आज मुझे एक किस्सा याद आ गया -
एक में चार अंधे रहते थे , एक दिन उस गांव में एक हाथी आ गया , हाथी आया , हाथी आया की आवाजें सुनकर अंधे भी वहां आ गए कि क्यों न हाथी देख लिया जाये पर बिना आँखे देखे कैसे ? सो एक बुजुर्ग ग्रामवासी के कहने पर महावत ने उन अंधों को हाथी को छूने दिया ताकि अंधे छू कर काठी को महसूस करने लगे | और अंधों ने हाथी को छू लिया , एक अंधे के हाथ में हाथी सूंड आई , दुसरे अंधे के हाथ पूंछ आई तो तीसरे अंधे के हाथ हाथी के पैर लगे | और चौथे के हाथी के दांत | इस तरह अंधों ने हाथी को छू कर महसूस कर देख लिया | दुसरे दिन चारो अंधे एक जगह इक्कठे होकर हाथी देखने छूने के अपने अपने अनुभव के आधार पर हाथी की आकृति का अनुमान लगा रहे थे | पहला कह रहा था - हाथी एक चिकनी सी रस्सी के सामान होता है , दूसरा कहने लगा - तुम्हे पूरी तरह मालूम नहीं रस्सी पर बाल भी थे अत: हाथी बालों वाली रस्सी के समान था , तीसरा कहने लगा - नहीं ! तुम दोनों बेवकूफ हो | अरे ! हाथी तो खम्बे के समान था | इतनी देर में चौथा बोल पड़ा - नहीं तुम तीनो बेवकूफ हो | अरे ! हाथी तो किसी हड्डी के समान था और बात यहाँ तक पहुँच गयी कि अपनी अपनी बात सच साबित करने के चक्कर में चारो आपस में लड़ने लगे |
चारों अन्धो में जूतम-पैजार होते देख पास ही गुजरते गांव के एक ताऊ ने आकर पहले तो उन्हें लड़ते झगड़ते छुड्वाया फिर किसी डाक्टर के पास ले जाकर उनकी आँखों का ओपरेशन करवाया | जब चारो अंधों को आँखों की रोशनी मिल गई तब ताऊ उनको एक हाथी के सामने ले गया और बोला - बावलीबुचौ ! ये देखो हाथी ऐसा होता है | तब अंधों को पता चला कि उनके हाथ में तो हाथी का अलग- अलग एक एक अंग हाथ आया था और वो उसे ही पूरा हाथी समझ रहे थे |
ठीक उसी तरह ये तथाकथित विद्वान भी कहीं से एक आध पुस्तक पढ़कर अपने आप को सम्पूर्ण ज्ञानी समझ रहे और ये तब तक समझते रहेंगे जब तक इन्हें कोई ताऊ नहीं मिल जाता जो इन्हें धर्म का मर्म समझा सके | जिस दिन इन्हें इंसानियत और मानव धर्म का मर्म समझ आ जायेगा इन्हें पता चल जायेगा कि धर्म क्या है ? और कौनसा धर्म श्रेष्ट है ?
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जब तक इन्हें कोई ताऊ नहीं मिल जाता जो इन्हें धर्म का मर्म समझा सके |
जवाब देंहटाएंराम-राम रतनसिंग जी ताऊ तो अपने कने ही सै,ढुंढबा की भी जरुरत कोनी, जद चाहो बुला ल्यो। "जिन खोजा तिन पाईयाँ।
राम राम सा
आपका कहना सही है । मरम न कोई जाना ।
जवाब देंहटाएंयह नासमझ लोग नादान नही है बडी कुटिलता से हमे बरगलाने की कोशिश कर रहे है . खुदा इन्को जन्नत ब्ख्शे
जवाब देंहटाएंThis is which type of secularism that if follow Hinduism then you are non secular and if you critisise Hinduism then you are Secular, May we know the reason?
हटाएंIf the blogger really want to teach a good lesson then please adress this to Mr. Digvijay Singhji (Ex-CM Madhya Pradesh)
दरअसल एक ही शैतान को पढ़ पढ़ कर इन मति भी शैतान हो गई है.
जवाब देंहटाएंये लोग षड्यंत्रकारी हैं, जो हिन्दू धर्म को बेकार ही कलंकित करने का प्रयास कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंयदि हम चुप रहे तो इनके हौसले यूँ ही बुलंद होते रहेंगे.
पागलो से बात कर के अपना सर क्यो खपाये???
जवाब देंहटाएंअंधों की नगरी में यही होता है।
जवाब देंहटाएंआपने खुद ही बावलाबूचा कह कर इनकी असलियत का सार समझा दिया है। इनकी कौन सुन रहा है? मेंढकों की मंडली है। कुएं में बैठकर विश्वचिंतन कर रही है। अपन को क्या?
जवाब देंहटाएंसुन्दर शिक्षाप्रद कहानी के लिये आभार
जवाब देंहटाएंवैसे देखा जाये तो कुछ कचरा पुस्तकों की बातों को कुछ लोग अपने ही धर्मग्रंथों के ज्ञान से बडा साबित करने पर तुले हैं जी
प्रणाम स्वीकार करें
इन अधकचरा ज्ञान रखने वालों ने ही आज हिन्दू धर्म का ये हाल कर दिया है!कमी निकालने की बजाय इतना वक़्त इसे समझने में देते तो बहुत कुछ पा लेते!अनर्गल बातें लिखने और पढने से शायद क्षणिक सुख मिलता होगा,पर इससे धर्म का कितना नुकसान हो रहा है..ये वो नहीं जानते... सुन्दर शिक्षाप्रद कहानी के लिये आभार
जवाब देंहटाएंBandar kya jane adrak ka swad. Ek atyachari to sirf atyachar karna hi sikhayega.
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत...
जवाब देंहटाएंnice .
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ !
जवाब देंहटाएंआजकल एक फैशन सा हो गया है जिसे देखो वही ज्ञानी बना फिर रहा है | अर्थ का अनर्थ कर रहा है धर्म और धार्मिक ग्रंथो की गलत व्याख्या कर रहा है |
जवाब देंहटाएंचार अंधे नहीं, छ:अंधे और हाथी।
जवाब देंहटाएंयह दृष्टान्त जैन आगमों में उल्लेखित हैं। चित्र में भी छ:अंधों को दर्शाया गया हैं,वस्तुत:यह जैन दर्शन के अनेकांतवाद को समझने के प्रायोजन से दिया गया है,किसी भी सोच के छ: दृष्टिकोण हो सकते है,
सभी को सम्मलित करने पर ही पूर्ण यथार्थ संभव है।
आपकी बात के लिए भी सटीक उदाहरण हैं।आपसे सहमत...