
इसी योजना के तहत ताऊ एक दूर दराज के गांव में पहुँच गया जहाँ स्कूल दूर दूर तक नहीं था वहां पहुँच ताऊ ने "ताऊ स्कूल " खोल दिया जिसमे गांव वालों ने अपने बच्चो को बड़े खुश होकर भरती भी करा दिया | चूँकि ताऊ खुद तो पढ़ा लिखा था नहीं जो बच्चो को कुछ पढ़ा पाता | लेकिन ताऊ भी तो आखिर ताऊ था सो उसने एक बच्चे को दुसरे को पढाने को कह दिया अब बच्चे आपस में ही एक दुसरे को पढाते रहे और ताऊ का स्कूल चलता रहा | गांव वाले भी खुश थे कि उनके बच्चों के लिए गांव में ही स्कूल खुल गया और बच्चे खुश कि मास्टर जी से डांट नहीं खानी पड़ती | ऐसे ही करके कोई चार छह महीने निकल गए |
एक दिन एक औरत के पति का जो फौज में था एक टेलीग्राम आया | अब गांव में कोई दूसरा इतना पढ़ा लिखा तो था नहीं इसलिए औरत टेलीग्राम पढ़वाने के लिए स्कूल में ताऊ मास्टर जी के पास चली आई | अब अंग्रेजी में टेलीग्राम देख ताऊ मास्टर जी के तो पसीने छुट गए और आखों के आगे अँधेरा छा गया | पढना आये तो टेलीग्राम पढ़े ना ! आखिर ताऊ को अपनी इस हालत पर रोना आ गया | ताऊ को रोता देख औरत ने सोचा शायद मेरा पति कही आतंकवादियों से लड़ता हुआ शहीद हो गया है और इसीलिए दुःख भरी खबर पढ़ कर मास्टर जी रो रहे है | सो उसने भी दहाड़े मार मार कर रोना शुरू कर दिया और थोडी देर में गांव में कोहराम मच गया हर कोई उस औरत के पति को मृत ही समझ रहा था |
इसी बीच उसी गांव का एक पढ़ा लिखा नौजवान शहर से गांव पहुंचा और शोक प्रकट करने वह भी उस फौजी के घर चला आया वहां जिज्ञासा वश उसने टेलीग्राम मांग लिया और पढने लगा | उस टेलीग्राम में उस फौजी के प्रमोशन होने व अगले हफ्ते छुट्टी आने की सुचना थी | ख़ुशी की खबर सुन उस औरत सहित सबकी जान में जान आई | और गांव के सरपंच सहित वह पढालिखा नौजवान टेलीग्राम ले मास्टर ताऊ के पास पहुंचे और ताऊ से झूंठ बोलने का कारण पूछा |
सरपंच - अरे ताऊ मास्टर जी ! इस टेलीग्राम में तो फौजी की तरक्की और छुट्टी आने की सुचना थी आपने उसके मरने की खबर क्यों सुना दी ?
ताऊ - सरपंच जी ! मैंने तो उस औरत को कुछ नहीं कहा | बस मुझे रोता देख वह यही समझी कि उसके पति के मरने की खबर होगी |
सरपंच - तो ताऊ मास्टर जी आप टेलीग्राम पढ़कर रोये क्यों ?
ताऊ - सरपंच जी दरअसल बात यह है कि मुझे कुछ भी लिखना पढना नहीं आता इसलिए जब मै वह टेलीग्राम नहीं पढ़ पाया तो मुझे अपनी स्थिति पर रोना आ गया , में तो इसलिए रो रहा था कि काश आज में पढ़ा लिखा होता तो मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता | ;
पक्की बात कही है !
जवाब देंहटाएंये तो १९६२ की चीन युद्ध के समय की सच्ची घटना है. उन दिनों में आठवीं पास को बडी इज्जत से मास्टर बना दिया जाता था. और अंग्रेजी के एक दो लफ़्ज भी मास्टरों को नही आते थे. और ऐसी स्थितियां प्रत्येक गांवों मे हुई थी.
जवाब देंहटाएंहमारे गांव मे तो डाकिया अलग कागज पर टेलीग्राम का अर्थ लिखवाकर लाया करता था. उस जमाने मे हमारे गांव से करीब ५५ लडके फ़ौज मे थे, बस स्कूल से ही पकड कर यानि दसवीं पास करते ही फ़ौज मे जबरन भर्ती कर देते थे. बाद मे हमको भी भर्ती कर लिया गया था पर हम उस साल दसवीं मे फ़ेल होगये सो अब यहां ताऊगिरी करने लग गये.:)
रामराम
tau ji ki pol khol di apne to .badhai .
जवाब देंहटाएंताऊ अनपढ़ होते हुए भी आजकल के पढ़े-लिखो से ज्यादा समझदार है !
जवाब देंहटाएंताऊजी क्यों अपनी पोल खुलवाये जा रहे हो अब रामप्यारी की तरह ये स्कूल भी बन्द ही समझो
जवाब देंहटाएंकुल मिला कर पढ़ना लिखना चाहिए.
जवाब देंहटाएंhahah.... isliye padhna zaroori hai...
जवाब देंहटाएंसच्ची बात जी।
जवाब देंहटाएंचलो आज पता चल गया कि ताऊ तो अंगुठा टेक है, हम तो उसे दसवी फ़ेल ही मान रहे थे, बहुत सुंदर लगी आप की यह कहानी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बिना पढाई के ही ताऊ का ये हाल है तो अगर कहीं 5-7 जमात पढ जाता तो पता नहीं क्या गजब करता:))
जवाब देंहटाएंताऊ रामजीलाल कोई दूसरा ताऊ है? या वही अपने पहेली वाले ताऊ हैं!
जवाब देंहटाएंकाश ताउ की तरह देश के आधे लोग भी रोते !!
जवाब देंहटाएंरतन जी आज आपकी टिप्पणी सलीम खान (स्वच्छ्संदेश वाले) के ब्लॉग पे देखा | आपकी टिप्पणी से उसका हौसला बढेगा ही | इसलिए आपसे request है की कृपया वहां जाकर टिप्पणी ना करें .....
जवाब देंहटाएंविश्वास है आप इस पर विचार करेंगे |
ताऊ तो पूरा सोलह दूनी आठ निकला |
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