राजस्थान के लोक जीवन में लोक कलाकारों का बड़ा महत्व है लोककलाकार कटपुतली के खेल के रूप में जहाँ लोकगाथाओं का सजीव नाट्य रूपांतरण कर प्रस्तुत करते है वहीँ जोगी व भोपा लोगों द्वारा फड बांचने की परम्परा सदियों से चली आ रही है जिसमे भोपा लोग एक विशालकाय कपडे के परदे पर जिस पर राजस्थान के लोक गाथाओं के नायको व पात्रों की कथाओं का चित्रण होता है सामने रखकर काव्य के रूप में लोक कथाओं के पात्रों के जीवन ,संघर्ष ,वीरता,बलिदान व जनहित में किए कार्यों का प्रस्तुतिकरण करते है | इस प्रस्तुतिकरण में भोपाओं द्वारा प्रस्तुत नृत्य व गायन का समावेश इसे अत्यंत लोकप्रिय बना देता है | राजस्थान के गांवों में लोगो के सांस्कृतिक जीवन में फड बंचवाने की परम्परा की गहरी छाप रही है |
ज्यादातर गांवों में राजस्थान के लोक देवता पाबू जी राठौड़ की फड बंचवाई जाती है | पाबू जी के अलावा भगवान देव नारायण जी की फड भी भोपा लोग बांचते आये है | भोपा लोगों द्वारा जागरण के रूप में नृत्य व गायन के साथ फड प्रस्तुत करने को फड बांचना कहते है व इसके आयोजन को फड रोपना या फड बंचवाना कहते है | नई पीढी द्वारा फड के प्रति उदासीनता की वजह से आजकल फड परम्परा कम होती जा रही है | हो सकता है आने वाले समय में यह परम्परा सिर्फ इतिहास के पन्नो पर ही मिले |
भोपाओं द्वारा गए जाने वाले एक गाने के बोल " बिणजारी ए हंस हंस बोल डाँडो थारौ लद ज्यासी " पिछले दिनों ताऊ की एक कविता में भी आपने पढ़ा होगा जिसका बाद में मेरी शेखावाटी पर नरेश जी ने वीडियो भी प्रस्तुत किया था |
ज्यादातर गांवों में राजस्थान के लोक देवता पाबू जी राठौड़ की फड बंचवाई जाती है | पाबू जी के अलावा भगवान देव नारायण जी की फड भी भोपा लोग बांचते आये है | भोपा लोगों द्वारा जागरण के रूप में नृत्य व गायन के साथ फड प्रस्तुत करने को फड बांचना कहते है व इसके आयोजन को फड रोपना या फड बंचवाना कहते है | नई पीढी द्वारा फड के प्रति उदासीनता की वजह से आजकल फड परम्परा कम होती जा रही है | हो सकता है आने वाले समय में यह परम्परा सिर्फ इतिहास के पन्नो पर ही मिले |
फड परम्परा के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए यहाँ चटका लगायें इस वेब साईट पर फड परम्परा की विस्तृत जानकारी के साथ साथ राजस्थान की ढेर सारी लोक गाथाएँ भी उपलब्ध है जिन्हें कभी भोपा लोगों ने फड के रूप में गाकर लोक मानस में इन कथाओं को जिन्दा रखा |
भोपाओं द्वारा गए जाने वाले एक गाने के बोल " बिणजारी ए हंस हंस बोल डाँडो थारौ लद ज्यासी " पिछले दिनों ताऊ की एक कविता में भी आपने पढ़ा होगा जिसका बाद में मेरी शेखावाटी पर नरेश जी ने वीडियो भी प्रस्तुत किया था |
फड के आयोजन को सांस्कृतिक आयोजन बताते हुए कवि भगीरथ सिंह "भाग्य" अपने गांव पर बनाई एक रचना में फड का इस प्रकार जिक्र करते है |
परस्यों रात गुवाड़ी म पाबू जी की फड रोपी
सारंगी पर नाच देखकर टोर बांधली गोपी
क ओले छाने सेण क र ह देकर आडी टोपी
क अब तो खुश होजा रुपियो लेज्या प्यारी भोपी |
यही भगीरथ सिंह जी इन भोपाओं यानी जोगियों के बारे में इस तरह जिक्र करते है |
इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर ।
घिरता फिरतापावणा घर घर थारो सीर ॥
लेखनी प्रभावित करती है.
जवाब देंहटाएंफड़ के बारे में अच्छा आलेख!
जवाब देंहटाएंराजस्थान की मिट्टी कोाप पर गर्व होगा कि उसकी परंपराओं के देश भर मे पहुचा रहे हैं आभार इस जानकारी के लिये
जवाब देंहटाएंरतनजी,बहुत बहुत धन्यवाद ....आपने काफी बढ़िया जानकारी |
जवाब देंहटाएंबडी दुखद बात है कि हमारी लोक परंपराएं खोती सी जारही हैं, नई पीढी अनभिज्ञ है इनसे, आपकी यह कोशीश मील का पत्थर साबित होगी. कृपया यह कोशीश जारी रहे. बहुत शुभकामनाएं आपको.
जवाब देंहटाएंरामराम.
फ़ंड के बारे पहली बार जाना, आप का धन्यवाद इस जानकारी के लिये.
जवाब देंहटाएंजानकारी का आभार..कब तक जीवित रहती हैं यह..देखने वाली बात है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलेख है
जवाब देंहटाएंवाह शेखावत जी, फड़ के बारे में इतना विस्तार से जानकार बहुत खुशी हुई.. राजस्थानी परंपराओं पर हम सभी को गर्व है.. हैपी ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंएक समय मे भोपा भोपी हमारे दिल को रोमाचित करते थे सुन्दर आलेख।
जवाब देंहटाएंआभा♥♥♥♥♥♥र
ताऊ का पहला ग्रहाक पहुचा अपना प्लोट लेने चन्द्रमा पर- देखे कोन है ?
Mumbai Tiger
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
याद दिला दिया आपकी पोस्ट ने। मै उदयपुर में पदस्थ था तब यह सुनने को मिला करता था!
जवाब देंहटाएंरतन जी हमें तो फड बांचने की परम्परा का पता ही नहीं था | आपके प्रयासों की सराहना करता हूँ |
जवाब देंहटाएंविश्वास है इस तरह की पोस्ट समय समय पर आप लाते रहेंगे ताकि हमें भारत के गौरवशाली परंपरा का ज्ञान मिलता रहे |
आभार !
भोपा भोपी के संगीत की जगह आजकल के फिल्मी संगीत ने ले ली है । खुले वातावरण मे जब भोपा व भोपी की आवाज गूंजती थी तो शरीर मे रोमांच जाग जाता था । राजस्थानी संगीत परम्परा इन्ही लोगो द्वारा जीवित रखी जाती थी जो धीरे धीरे खत्म होने के कगार पर पर है ।
जवाब देंहटाएंratan singh ji hum aapke sath hai aise vicharo ki aajkal kami hai adikh se adikh vichar aise kiye jaye !!
जवाब देंहटाएंरतन जी हमें तो फड बांचने की परम्परा का पता ही नहीं था | आपके प्रयासों की सराहना करता हूँ |
जवाब देंहटाएंविश्वास है इस तरह की पोस्ट समय समय पर आप लाते रहेंगे ताकि हमें भारत के गौरवशाली परंपरा का ज्ञान मिलता रहे |
Kr.ajay raj singh solanki!!
रतन भैया मैं आपके द्वारा कई ऐसे बातों को सामने लाने की कोशिस को सैल्यूट करता हूँ जो शायद बहुत कम ही लोग जानते हैं लेकिन आपकी वजह से कई लोग जान जाते हैं
जवाब देंहटाएंजैसे राजस्थान के कई भूले-बिसरे वीरों की वीरता के किस्से इत्यादि
धन्यवाद आपके इस प्रयास को