भूतों से सामना

Gyan Darpan
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बचपन में लोगों से भूतों की तरह तरह की कहानियां अक्सर सुनने को मिलती थी| उन कहानियों में रात को गांव की गली में भूत ने किसी पर अचानक ईंट फेंकी, तो किसी व्यक्ति को रात में खेतों से लौटते रास्ते में कोई वृक्ष बिना हवा के हिलता नजर आता था| तो किसी का पीपल के पेड़ के पास पहुँचते ही पीपल के पेड़ की अजीबोगरीब हरकतों से सामना होता था| कई लोग बताते थे कि रात को खेत से लौटते समय कैसे भूत ने उनकी धोती का पल्लू पकड़ लिया वो कैसे उससे छुड़वा कर भागे |

लगभग 1984-85 के दौरान हमारे गांव के बस स्टैंड के पास ही एक वाहन दुर्घटना में एक ही परिवार के 16-17 लोगों की मौत हो गयी थी और इन दर्दनाक अकाल मौतों की वजह से उनके भूत बनने की अफवाहे जोरों से फेल गयी थी| शाम 8 बजे बाद तो कोई भी व्यक्ति अकेला बस स्टैंड पर जाने की हिम्मत तक नहीं करता था| सिर्फ गांव का पूर्व सरपंच गोरु किर्डोलिया जो उस समय रोड वेज में कंडक्टर था, वही रोजाना अपनी ड्यूटी से देर रात को उधर से आता था या कभी कभार मुझे देर रात को शहर से गांव पहुँचने पर बस स्टैंड पर आना होता था| बस स्टैंड पर रात को बस उतरते ही दिल की धड़कन अपने आप तेज हो जाया करती थी शरीर के रोंगटे खड़े हो जाया करते थे और कदम घर जल्दी पहुँचने की पूरी तत्परता दिखाते थे| तब यह सुन रखा था कि भूत हथियार के पास नहीं आते, अतः जिस दिन देर से आना होता था, उस दिन एक बटन वाला रामपुरी चाकू साथ लेकर जाता था| बस ये समझ लीजिये उस चाकू के सहारे ही देर रात बस से उतरने की हिम्मत बनती थी | क्योकि बस स्टैंड पर उस दुर्घटना में मरे भूतो का डर तो आगे रास्ते में श्मशान में गांव के भूतों का डर |

उन्ही दिनों एक दिन शहर से आते आते मुझे रात के साढ़े दस बज गए| अँधेरी रात थी| बस स्टैंड पर बस से उतरते ही वहाँ पसरे सन्नाटे ने दिल की धड़कन तेज करदी,शरीर के रोंगटे उठ खड़े हुए डर के मारे रामपुरी चाकू अपने आप हमेशा की तरह हाथ में आ गया, जिसके बूते ही हिम्मत कर में अपने घर की तरफ बढा | बस स्टैंड से गांव के बीच लगभग 400 मीटर पुरानी ज़माने से ही गोचर भूमि छोड़ी हुई है इसी खाली भू-भाग में ही गांव की सभी जातियों के अलग अलग श्मशान भी बने हुए है, जो भूतों का डर कुछ और बढा देते थे | रामपुरी चाकू हाथ में ले में हिम्मत करके गांव की तरफ थोडा ही आगे बढा ही था, कि गौचर भूमि की झाडियों के पीछे से अचानक एक साथ कई पेरों की दड-बड़ दड-बड़ आवाज सुनाई दी| जैसे ही में रुका वह आवाज भी रुक गयी और मेरे चलते ही वह आवाज फिर अचानक सुनाई दी| मैं समझ चूका था कि आज ये कोई और नहीं भूत ही है जो मुझे डराने कि कोशिश कर रहे है| लेकिन रामपुरी चाकू के हाथ में होने के चलते हिम्मत नहीं हार रहा था, साथ ही ऐसे वक्त पर हनुमान चालीसा तो अपने आप याद आ ही जाता है| सो इन्ही दो सहारों के सहारे में घर पहुँच गया, लेकिन घटना के बारे में मैंने घर पर किसी को नहीं बताया | रात को बड़ी मुश्किल से नींद आई| क्योकि घर में ऊपर बने मेरे कमरे की खिड़की उसी तरफ खुलती थी और दिन में तो खिड़की से दूर तक पूरा बस स्टैंड और पूरी गौचर भूमि नजर आती थी| आखिर डर कम करने के वास्ते सिरहाने तलवार रखकर सो ही गया | तलवार भी इसीलिए कि हथियार के पास भूत नहीं आएगा |

दुसरे दिन सुबह 8 बजे फिर मुझे बस पकडनी थी| सो बस स्टैंड जाते समय जैसे ही में रात वाली उसी जगह पहुंचा, झाडियों के पीछे से अचानक वही आवाज मुझे फिर सुनाई दी| हालाँकि दिन होने की वजह से ये आवाज कुछ धीमी थी व डरावनी नहीं लग रही थी| मैं रुका तो वो कदमो की आवाज भी रुक गयी| उधर नजर दौड़ाते ही मुझे एक मृत पशु दिखाई दिया, जिसे एक कुतों का झुंड नोचने लगा था| मेरे पास से गुजरते ही वो कुत्तों का पूरा झुंड एकदम से दूर भागा और रुक गया| मेरे दुबारा चलने पर फिर वह झुंड पीछे हटने को एकदम थोडा फिर भागा और रुक गया| ऐसा ही रात को हुआ था| लेकिन रात्री घटना में अँधेरी रात होने की वजह से कुत्ते दिखाई नहीं दे रहे थे और भूतों की सुनी हुई बातों के आगे दिमाग उस हर हरकत को भूतों की हरकत ही समझ रहा था इस तरह सुबह दुबारा उसी स्थान से गुजरने पर उस गलतफहमी का निराकरण हो सका वरना मैं भी आजतक उस ग़लतफ़हमी को असली भूतों की घटना मान दूसरो को सुनाता रहता और लोगों के मन में भूत के अस्तित्व की धारणा और ज्यादा मजबूत होती |

शायद पुराने समय में गांवों में रोशनी की प्रयाप्त वयवस्था न होने जनसँख्या कम होने सूनापन अधिक होने की वजह से और ऐसी ग़लतफ़हमी वाली घटनाओं का निराकरण न होने के कारण लोग इन घटनाओं को भूतों से सम्बंधित ही मान बैठते थे और फिर चटखारे ले ले कर दूसरो को सुनाते थे जो भूत होने की धारणा को और मजबूत कर देते थे |

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22टिप्पणियाँ

  1. सही कहा आपने। इस तरह के कई संस्मरण मेरे पास भी हैं। अंधविश्वास जो जो न करवाये।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. सही कहा आपने,सच न दिखाई पडा होता तो आप भी सोचते कि भूत होता है?

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  3. आज आपके बारे मे पता चला कि आप थोडा बहुत डरते भी है । भूत क्या है यह बहुत कम लोग जानते है । मेरा यह मानना है कि जितने लोग कम इस बारे मे जानकारी रखे उतना ही अच्छा है । मै तो यह चाहता हू कि सभी लोग इसको मात्र अन्धविश्वास ही माने लेकिन एसा वास्तविकता मे सम्भव नही है । जिस का अस्तित्व हो उसे हम नकार भी दे तो भी उसकी मौजूदगी तो रहेगी ही ।

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  4. कहा तो आपने सही है। पर घटना रोचक रही।

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  5. मन का अन्दर का डर ही तो भूत है. रोचक वर्णन. आभार..

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  6. अंधेरे और सुनसान माहौल में दिमाग अपना ही वातावरण रच देता है।

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  7. हां सही कहा आपने. इसी तरह अंधविश्वास भी पनपते जाते हैं.

    रामराम.

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  8. आपके बताने के इश्टाइल से मज़ा आगया ,

    यह अलग बात है कि मुझे अभी तक इन चीजों पर भरोसा नहीं हुआ, हालाँकि मेरे घरवाले कहते हैं कि बचपन में जब मुझे याद भी नहीं है तब मेरे ऊपर भी भूल आ गया था !

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  9. भूतों के मामले मैं ज्यादातर अंधविश्वास ही रहता है |

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  10. जब हम इस सृ्ष्टि में मनुष्य से इतर किसी अन्य प्राणी(जीवन) के अस्तित्व पर विश्वास करते हैं तो फिर भूत प्रेत योनि को भी सिर्फ अन्धविश्वास कह कर खारिज नहीं किया जा सकता। खैर ये तो समय बताएगा......लेकिन आपने किस्सा बहुत रोचकपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया। बढिया लगा.....

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  11. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आपके ब्लॉग पर आती रहूंगी! मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है !

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  12. आपका अनुभव एक बेहद आम अनुभव है। सौ में पंचानवे फीसदी मामले ऐसे ही होते हैं जब माहौल के असर में हम बेवकूफ बनते हैं। मैं भी बना हूं। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि भूत नहीं होते, कई बार हम बड़ी अजीब हालत में फंस जाते हैं. आज के इस जमाने में ये कहकर कौन अपनी फजीहत कराना चाहेगा कि मैंने भूत देखा है। पर बात चली है तो बता दूं मैंने देखा है, पूरे होशोहवास में देखा है, आप अंधविश्वास की जितनी संभावनाएं तलाश सकते हैं उन्हें नकारते हुए ही देखा है, और तब माना जब इसके अलावा कोई और
    चारा नहीं था। साइंस का ठीकठाक विद्यार्थी रहा हूं, निशाचर हूं, दुस्साहसी हूं, कई बार मुफ्त का डरा तो कुछ चीजों को बार बार आजमाया। निष्कर्ष यही निकला कि होते हैं, लेकिन घटनाएं अतिशयोक्ति में वर्णित होती हैं।
    आप किसी नए कस्बे में पूरे परिवार के साथ जाते हैं,किसी को जानते तक नहीं। रात में एक लड़की घर के आगे आवारा घूमती दिखती है। सुबह जब उसका हुलिया पड़ोसी से बयान करते हैं तो पता चलता है, उसने चार महीने पहले खुदकुशी की थी।
    गर्मी की रातों में छत पर सोते हैं, रेलिंग ना होने की वजह से पिता का आदेश था कि किसी को भी सू सू आएगी तो दूसरे को जगा लेगा। ताकि अंधेरे में कोई गिरे तो देखने वाला भी कोई हो। ज्यादातर बार चारो भाई साथ साथ ही उठते और हफ्ते में दो से तीन बार वही लड़की तीस चालीस मीटर की दूरी पर कभी इस कोने तो कभी उस कोने दिखे, एक भाई देखकर दूसरे को इशारा करता, टंकी के पास देख रहे हो. बड़ा डांटता. मुंह बंद रखो.. क्या ये सारी बातें नींद में होती थी। मुश्किल ये है कि इन बातों से कोई तथ्यात्मक निष्कर्ष नहीं निकलता। जो जानकार है उन्हें आना चाहिए ।

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  13. yes sir u r right ....acctully mere sath bhi ak esa hi seen hua h.......

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  14. jinda aadmi kuch nahe bigad sakta toh fir mara hua ky kr lega
    lekin ha booot hote jarur hain

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  15. booto se direct mulakat karni ho to kabhi Thali(barmer,Jaisalmer and sanchore k kuch bhag) m padrana aap ki bhooto se mulakat jarur ho jayegi.

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  16. koi bhi abdharna hamare dimAg se nahi apitu soch avam ruchi se aati hai

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  17. koi bhi abdharna hamare dimAg se nahi apitu soch avam ruchi se aati hai

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