"मरण नै मेडतिया अर राज करण नै जौधा "
"मरण नै दुदा अर जान(बारात) में उदा "
उपरोक्त कहावतों में मेडतिया राठोडों को आत्मोत्सर्ग में अग्रगण्य तथा युद्ध कौशल में प्रवीण मानते हुए मृत्यु को वरण करने के लिए आतुर कहा गया है| मेडतिया राठोडों ने शौर्य और बलिदान के एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए है जिनमें राव जयमल जी का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है |
कर्नल जेम्स टोड ने राजस्थान के प्रत्येक राज्य में "थर्मोपल्ली" जैसे युद्ध और "लियोनिदास" जैसे योधा होनी की बात स्वीकार की है | जोधपुर के मालदेव से जयमल को लगभग २२ युद्ध लड़ने पड़े मालदेव सैनिक शक्ति में जयमल से १० गुना अधिक थे | राव जयमल जी का दूसरा विरोधी अकबर एशिया का सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति था |अबुल फजल, हर्बर्ट, सर टामस रो, के पादरी तथा बर्नियर जैसे प्रसिद्ध लेखकों ने जयमल जी के कृतित्व की अत्यन्त ही प्रसंशा की है | जर्मन विद्वान काउंटनोआर ने अकबर पर जो पुस्तक लिखी उसमे जयमल जी को "Lion of Chittor" कहा |
राव जयमल जी का जन्म १७ सितम्बर १५०७ शुक्रवार के दिन हुआ था | सन १५४४ में जयमल जी ने ३६ वर्ष की आयु अपने पिता राव विरमदेव जी के निधन के बाद मेड़ता की गद्दी संभाली | पिता के साथ अनेक विपदाओं व युद्धों में सक्रीय भाग लेने के कारण जयमल जी में बड़ी-बड़ी सेनाओं का सामना करने की सूझ थी उनका व्यक्तित्व निखर चुका था| इसी कारण जयमल जी राठोडों में सर्वश्रेष्ठ योद्धा बने |
मेड़ता के प्रति जोधपुर के शासक मालदेव जी के वैमनस्य को भांपते हुए जयमल जी ने अपने सीमित साधनों के अनुरूप सैन्य तैयारी कर ली | जोधपुर पर पुनः कब्जा करने के बाद राव मालदेव जी ने कुछ वर्ष अपना प्रशासन सुसंगठित करने बाद संवत १६१० में एक विशाल सेना के साथ मेड़ता पर हमला कर दिया | अपनी छोटीसी सेना से जयमल जी मालदेव जी को पराजित नही कर सकते थे, अतः उन्होंने बीकानेर के राव कल्याणमल जी को सहायता के लिए बुला लिया | राव कल्याणमल जी ७००० सैनिकों के साथ सहायता के लिए आये |
लेकिन फ़िर भी जयमल जी अपने सजातीय बंधुओं के साथ युद्ध कर और रक्त पात नही चाहते थे | इसलिय उन्होंने राव मालदेव जी के साथ संधि की कोशिश भी की, लेकिन जिद्दी मालदेव जी ने एक ना सुनी और मेड़ता पर आक्रमण कर दिया |
पूर्णतया सचेत वीर जयमल जी ने अपनी छोटी सी सेना के सहारे जोधपुर की विशाल सेना को भयंकर टक्कर देकर पीछे हटने को मजबूर कर दिया और स्वयम मालदेव जी को युद्ध से खिसकना पड़ा|
युद्ध समाप्ति के बाद जयमल जी ने मालदेव को राठौड़ वंश का सिरमौर मान उसकी प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए इस युद्ध में जोधपुर के छीने हुए "निशान" वापस लौटा दिए |
मालदेव जी पर विजय के बाद जयमल जी ने मेड़ता में अनेक सुंदर महलों का निर्माण कराया और क्षेत्र के विकास के कार्य किए | लेकिन इस विजय ने जोधपुर-मेड़ता के बीच विरोध की खायी को और गहरा दिया | और बदले की आग में झुलसते मालदेव जी ने मौका देख हमला कर २७ जनवरी १५५७ को मेड़ता पर अधिकार कर लिया उस समय जयमल जी की सेना हाजी खां के साथ युद्ध में क्षत-विक्षत थी और उसके खास-खास योधा बीकानेर, मेवाड़ और शेखावाटी की और गए हुए थे, इसी गुप्त सुचना का फायदा मालदेव जी ने उठाया |
मेड़ता पर अधिकार कर मालदेव जी ने मेड़ता के सभी महलों को तोड़ कर नष्ट कर दिए और वहां मूलों की खेती करवाई | आधा मेड़ता अपने पास रखते हुए आधा मेड़ता मालदेव जी ने जयमल जी के भाई जगमाल जो मालदेव के पक्ष में थे उनको दे दिया |
मेड़ता छूटने के बाद जयमल जी मेवाड़ चला गए, जहाँ महाराणा उदय सिंह जी ने उन्हें बदनोर की जागीर प्रदान की | लेकिन वहां भी मालदेव जी ने अचानक हमला किया और जयमल जी द्वारा शोर्य पूर्वक सामना करने के बावजूद मालदेव जी की विशाल सेना निर्णायक हुयी और जयमल जी को बदनोर भी छोड़ना पड़ा |
अनेक वर्षों तक अपनी छोटी सी सेना के साथ जोधपुर की विशाल सेना का मुकाबला करते हुए जयमल जी समझ चुका थे कि बिना किसी शक्तिशाली समर्थक के वह मालदेव जी से पीछा नही छुडा सकते | और इसी हेतु मजबूर होकर उन्होंने अकबर से संपर्क किया जो अपने पिता हुमायूँ को साथ मालदेव जी द्वारा साथ नहीं दिए जाने की वजह से खिन्न था|
अकबर राजस्थान के उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक मालदेव जी को हराना भी जरुरी समझता था | जयमल जी ने अकबर की सेना सहायता से पुनः मेड़ता पर कब्जा कर लिया | वि.स.१६१९ में मालदेव जी के निधन के बाद जयमल जी को लगा कि अब उनकी समस्याए समाप्त हो गई | लेकिन अकबर की सेना से बागी हुए सैफुद्दीन को जयमल जी द्वारा आश्रय देने के कारण जयमल जी की अकबर से फ़िर दुश्मनी हो गई |
अकबर ने एक विशाल सेना मेड़ता पर हमले के लिए रवाना कर दी | अनगिनत युद्धों में अनेक प्रकार की क्षति और अनगिनत घर उजड़ चुके थे और जयमल जी जनता जनता को और उजड़ देना नही चाहते थे, इसी बात को मध्यनजर रखते हुए जयमल जी ने अकबर के मनसबदार हुसैनकुली खां को मेड़ता शान्ति पूर्वक सौंप कर परिवार सहित मेवाड़ चले गए| और अकबर के मनसबदार हुसैनकुली खां ने अकबर की इच्छानुसार मेड़ता का राज्य जयमल जी के भाई जगमाल को सौंप दिया |
अकबर द्वारा चित्तोड़ पर आक्रमण का समाचार सुन जयमल जी चित्तोड़ पहुँच गया | २६ अक्टूबर १५६७ को अकबर चित्तोड़ के पास नगरी नामक गांव पहुँच गया | जिसकी सूचना महाराणा उदय सिंह जी को मिल चुकी थी और युद्ध परिषद् की राय के बाद चित्तोड़ के महाराणा उदय सिंह जी ने वीर जयमल जी को ८००० सैनिकों के साथ चित्तोड़ दुर्ग की रक्षा का जिम्मा दिया और स्वयम दक्षिणी पहाडों में चले गए |
विकट योद्धों के अनुभवी जयमल जी ने खाद्य पदार्थो व शस्त्रों का संग्रह कर युद्ध की तैयारी प्रारंभ कर दी | उधर अकबर ने चित्तोड़ की सामरिक महत्व की जानकारियां इक्कठा कर अपनी रणनीति तैयार की और चित्तोड़ दुर्ग को विशाल सेना के साथ घेर लिया| दुर्ग के पहाड़ में निचे सुरंगे खोदी जाने लगी ताकि उनमे बारूद भरकर विस्फोट कर दुर्ग के परकोटे उड़ाए जा सकें, दोनों और से भयंकर गोलाबारी शुरू हुई तोपों की मार और सुरंगे फटने से दुर्ग में पड़ती दरारों को जयमल जी रात्रि के समय फ़िर मरम्मत करा ठीक करा देते |
अनेक महीनों के भयंकर युद्ध के बाद भी कोई परिणाम नही निकला | चित्तोड़ के रक्षकों ने मुग़ल सेना के इतने सैनिकों और सुरंगे खोदने वालो मजदूरों को मारा कि लाशों के अम्बार लग गए | बादशाह ने किले के नीचे सुरंगे खोद कर मिट्टी निकालने वाले मजदूरों को एक-एक मिट्टी की टोकरी के बदले एक-एक स्वर्ण मुद्राएँ दी ताकि कार्य चालू रहे |
अबुलफजल ने लिखा कि इस युद्ध में मिट्टी की कीमत भी स्वर्ण के सामान हो गई थी | बादशाह अकबर जयमल जी के पराकर्म से भयभीत व आशंकित भी था, सो उसने राजा टोडरमल के जरिय जयमल जी को संदेश भेजा कि आप राणा और चित्तोड़ के लिए क्यों अपने प्राण व्यर्थ गवां रहे हो, चित्तोड़ दुर्ग पर मेरा कब्जा करा दो मै तुम्हे तुम्हारा पैत्रिक राज्य मेड़ता और बहुत सारा प्रदेश भेंट कर दूंगा | लेकिन जयमल जी ने अकबर का प्रस्ताव साफ ठुकरा दिया कि मै राणा और चित्तोड़ के साथ विश्वासघात नही कर सकता और मेरे जीवित रहते आप किले में प्रवेश नही कर सकते |
जयमल जी ने टोडरमल के साथ जो संदेश भेजा जो कवित रूप में इस तरह प्रचलित है
है गढ़ म्हारो म्है धणी,असुर फ़िर किम आण |
कुंच्यां जे चित्रकोट री दिधी मोहिं दीवाण ||
जयमल लिखे जबाब यूँ सुनिए अकबर शाह |
आण फिरै गढ़ उपरा पडियो धड पातशाह |
एक रात्रि को अकबर ने देखा कि किले कि दीवार पर हाथ में मशाल लिए जिरह वस्त्र पहने एक सामंत दीवार मरम्मत का कार्य देख रहा है और अकबर ने अपनी संग्राम नामक बन्दूक से गोली दाग दी जो उस सामंत के पैर में लगी वो सामंत कोई और नही ख़ुद जयमल जी मेडतिया ही थे | थोडी ही देर में किले से अग्नि कि ज्वालाये दिखने लगी ये ज्वालाये जौहर की थी | जयमल जी की जांघ में गोली लगने से उनका चलना दूभर हो गया था उनके घायल होने से किले में हा हा कार मच गया अतः साथी सरदारों के सुझाव पर जौहर और शाका का निर्णय लिया गया, जौहर क्रिया संपन्न होने के बाद घायल जयमल जी कल्ला जी राठौड़ के कंधे पर बैठकर चल पड़े रणचंडी का आव्हान करने |
जयमल जी के दोनों हाथो की तलवारें बिजली के सामान चमकते हुए शत्रुओं का संहार रही थी, उनके शौर्य को देख कर अकबर भी आश्चर्यचकित था | इस प्रकार यह वीर चित्तोड़ की रक्षा करते हुए दुर्ग की हनुमान पोल व भैरव पोल के बीच लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुवा जहाँ उसकी याद में स्मारक बना हुआ है |
इस युद्ध में वीर जयमल जी और पत्ता सिसोदिया की वीरता ने अकबर के हृदय पर ऐसी अमित छाप छोड़ी कि अकबर ने दोनों वीरों की हाथी पर सवार पत्थर की विशाल मूर्तियाँ बनवाई | जिनका कई विदेशी पर्यटकों ने अपने लेखो में उल्लेख किया है | यह भी प्रसिद्ध है कि अकबर द्वारा स्थापित इन दोनों की मूर्तियों पर निम्न दोहा अंकित था |
जयमल बड़ता जीवणे, पत्तो बाएं पास |
हिंदू चढिया हथियाँ चढियो जस आकास ||
हिंदू,मुस्लमान,अंग्रेज,फ्रांसिस,जर्मन,पुर्तगाली आदि अनेक इतिहासकारों ने जयमल के अनुपम शौर्य का वर्णन किया है |
मेडता के जैमल कि शौर्य गाथा अच्छी लगी. आभार
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस कथा - चरित्र से साक्षात्कार कराने का।
जवाब देंहटाएं"मरण नै मेडतिया अर राज करण नै जौधा "
जवाब देंहटाएं"मरण नै दुदा अर जान(बारात) में उदा "
मुझे तो ये कहावतें बहुत अच्छी लगी..
Jivata ro ratan sing hji...
जवाब देंहटाएंgajendra singh bhati
आभार इस जानकारी के लिए।
जवाब देंहटाएंयदि मेङता व जोधपुर में दुश्मनी ना होती तो राजस्थान का इतिहास कुछ अलग ही होता । जयमल फ़त्ता के बारे जानकारी देने के लिये धन्यवाद । मुझे तो गर्व है कि मै भी मेङतिया हूं ।
जवाब देंहटाएंसादर ब्लॉगस्ते,
जवाब देंहटाएंआपका यह संदेश अच्छा लगा। क्या आप भी मानते हैं कि पप्पू वास्तव में पास हो जगाया है? 'सुमित के तडके (गद्य)' पर पधारें और 'एक पत्र पप्पू के नाम' को पढ़कर अपने विचार प्रकट करें।
अच्चा लिखा है रतन भाई आपने, ब्लॉग की साज-सज्जा तो क्या कहने।
जवाब देंहटाएंशानदार लेख के लिए धन्यवाद ! जयमल जी की वीरता को नमन !
जवाब देंहटाएंजयमल जी १३ भाई थे..जयमल के भाई ईसर दास जी बड़े बहादुर थे !उनकी बहादुरी सुन कर एक बार सम्राट अकबर ने उन्हें अपने दरबार में हाज़र होने का फरमान भेजा, ईसर दासजी ने जवाब भेजा के वक़्त आने पर हो जरुर मुजरा करने आयेगे ! चित्तोड़ के तीसरे शाके में जब केसरिया साफा पहन कर चित्तोड़ के वीर राजपूत शाही सेना पर टूट पड़े तो बादशाह ने ३०० खूनी हथियो के दांत में दुधारी खांडे पकडवा के महाराणा के सेना को मरने भेज दिया, उस ही समय बादशाह का मधुकर नाम के मस्त हाथी का एक हाथ से दांत उखाड़ के ईसर दास जी ने दुसरे हाथ से जोरदार तलवार चलायी ! बादशाह तो बच गया पर महंत मारा गया ! ईसर दास जी ने हाथी से कहाः "वीरता के गुणी-ग्राहक अपने मालिक को मेरा मुजरा कहना'! बाद में इस युद्ध में शाही सेना से लड़ते हुए ईसर दास जी वीरगति को प्राप्त हुए !!!
जवाब देंहटाएंशानदार लेख के लिए धन्यवाद ! जयमल जी की वीरता को नमन !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंiam proud of mertiya.
जवाब देंहटाएंi am proud to mertiya.bhawani singh mertiya
जवाब देंहटाएंbahut hee badiya hkm
जवाब देंहटाएंbahut hee badiya likha hai hkm
जवाब देंहटाएंजयमल जी की अठे क उठै ( यहाँ कि वहाँ ) को भी इसी लेख के साथ समायोजित करे तो और भी अच्छा रहेगा सा.
जवाब देंहटाएंJai rajputana jai rathore mertiya
जवाब देंहटाएंआदरणीय रतन सिंह सा आप जो कोई भी आलेख ले उस पुस्तक का नाम जरुर लिखे ताकि उस आलेख की प्रमाणिकता रहेगी !!
हटाएंbhut hi achi jankari h
जवाब देंहटाएं“बढ़त ईसर बाढ़िया बडंग तणे बरियांगहाड़ न आवे हाथियां कारीगरां रे काम”
जवाब देंहटाएंEsardasji is also one of great hero of war with Kallaji and Jaimal.
“बढ़त ईसर बाढ़िया बडंग तणे बरियांगहाड़ न आवे हाथियां कारीगरां रे काम”
जवाब देंहटाएंEsardasji one of great hero of Chittod war with Jaimal Rathore ji Kalla Rathod ji
“बढ़त ईसर बाढ़िया बडंग तणे बरियांगहाड़ न आवे हाथियां कारीगरां रे काम”
जवाब देंहटाएंEsardasji is also one of great hero of war with Kallaji and Jaimal.
“बढ़त ईसर बाढ़िया बडंग तणे बरियांगहाड़ न आवे हाथियां कारीगरां रे काम”
जवाब देंहटाएंEsardasji Rathod was the great hero of this was with Jaimal Rathod ji and Kallaji Rathod. Jaimal ji was the Uncle (Kaka ji) Kallaji
"मरण नै मेडतिया अर राज करण नै जौधा "
जवाब देंहटाएं"मरण नै दुदा अर जान(बारात) में उदा "
बहुत अच्छा लेख है