गौरक्षा के लिए औरंगजेब की सेना से भीड़ गए थे अहीर, गुर्जर युवा

Gyan Darpan
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आजकल गौ तस्करों व गौ हत्यारों के खिलाफ हिन्दू गौ रक्षकों की कार्यवाहियां अख़बारों की सुर्खियाँ बन रही है| एक स्थान से दूसरे स्थान पर गाड़ियों में अवैध रूप से काटने के लिए ले जाई जाने वाली गायों को बचाने के लिए कई स्वप्रेरित युवा संगठनात्मक रूप से जुटे है| गौ-वध व गौ तस्करी शुद्ध रूप से कानून-व्यवस्था से जुड़ा मामला है, पर ऐसे मामलों की पुलिस को सूचना देने के साथ ही ये स्वघोषित गौरक्षक खुद भी गौ तस्करों के साथ मारपीट कर हाथों हाथ सजा देते हुए कानून हाथ लेने से बाज नहीं आ रहे| इसकी आड़ में कई असामाजिक तत्व भी सक्रिय हो गए है जो पशुपालकों को गायों के उपचार या खरीद-फरोक्त के बाद लाने ले जाने के उपरांत अवैध वसूली के लिए शिकार बनाते है| कथित गौ-रक्षकों की कार्यवाहियों के बाद देश में जहाँ एक पक्ष राजनैतिक व साम्प्रदायिक तौर पर गौ रक्षकों के खिलाफ लामबंद हो रहा है वहीं दूसरा पक्ष उनके समर्थन में लामबंद हो रहा है|

हमारी नजर में गौ-वध या गौ-तस्करी सीधे तौर पर कानून व्यवस्था से जुड़ा मामला है, लेकिन गौ मांस भक्षकों व गौ मांस का व्यापार करने वालों को इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि यह भारत की बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा मामला भी है| अत: उन्हें हिन्दुओं की आस्था का आदर करते हुए गौ मांस भक्षण से बचना चाहिए| इस देश का इतिहास उठाकर देखें तो इतिहास गौरक्षा के लिए प्राणों की आहुतियाँ देने के उदाहरणों ने भरा पड़ा है| जाहरवीर गोगा जी, पाबूजी राठौड़, वीर तेजाजी महाराज आदि नामों की लम्बी श्रृंखला है जिन्हें गौरक्षा हेतु प्राण न्यौछावर करने के लिए आज भी स्थानीय जनता लोकदेवता के रूप में पूजती है| इतिहास पर नजर डाली जाये तो आप पायेंगे कि यहाँ के हिन्दू युवा गौरक्षा के लिए बड़ी से बड़ी सेनाओं से भी भीड़ते रहे है| 9 मार्च 1679 ई. को औरंगजेब ने दराबखां के सेनापतित्व में एक बड़ी फ़ौज ने शेखावाटी के खण्डेला नगर पर आक्रमण किया| इस आक्रमण के समय सुजाणसिंह शेखावत अपने चुनिन्दा वीर साथियों के साथ जहाँ खण्डेला नगर मंदिरों को तोड़ने से बचाने हेतु शाही सेना से भीषण संघर्ष में जुटा था, वहीं कुछ अहीर व गुर्जर युवा मुग़ल सेना द्वारा बुचड़खाना के काम हेतु लाई गई गायों को कत्ल होने से बचाने हेतु जुटे थे| इन युवकों के पास कोई सैन्य प्रशिक्षण नहीं था, पर गाय उनकी धार्मिक आस्था की प्रतीक थी, सो गायों को बचाने हेतु ये युवा मुग़ल सेना के पृष्ट-भाग की रक्षा पंक्तियों को तोड़कर शिविर में घुस गए और वहां एकत्र की गई गायों को छुड़ाकर क़त्ल होने से बचा लिया| उनके इस वीर कार्य को छावली गीतकारों ने इस तरह शब्द दिए-

हीर गूजराँ कमराँ बाँधी, फोजां लूट मचाई|
कोई कूदे कोट कांगरे,कोई कूद्धा खाई ||
कूद पड्या गुजर का बेटा नौ सौ गाय छुड़ाई |
पांणी की तिसाई गायाँ, ज्यांने नाडा जाय ढुकाई ||

इस तरह के कई उदाहरण इतिहास में भरे पड़े है, जो यह साबित करते है कि गौ-रक्षा के लिए सहिष्णु माने जाने वाला हिन्दू कभी भी उग्र हो सकता है और वह गौ-रक्षा के लिए कितनी भी बड़ी ताकत से भीड़ सकता है| अत: गौ-भक्षकों को इस भ्रम में कदापि नहीं रहना चाहिए कि सहिष्णुता की वजह से अब तक चुपचाप बैठा हिन्दू हमेशा ही गौ-वध सहन करता रहेगा| अत: गाय का भक्षण करने वालों को हिन्दुओं की आस्था का आदर करते हुए गौ-वध बंद कर देना चाहिये ताकि गौरक्षा के नाम फ़ैल रहे उन्माद का शिकार होने से बच सके|

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