हल्दीघाटी युद्ध v/s दिवेर युद्ध

Gyan Darpan
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Haldighati war v/s Diver war story in Hindi


हल्दीघाटी युद्ध महाराणा प्रताप ने अपनों के साथ लड़ा, उसका क्या निर्णय हुआ वह हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता| लेकिन हल्दीघाटी युद्ध हमारी संस्कृति में इसलिए बहुत महत्त्वपूर्ण है कि इस युद्ध में रामशाह तोमर, हकीम खां सूर, झाला मान आदि सूरमाओं ने देश की स्वाधीनता के लिए बलिदान दिया, जिन्हें हम कभी नहीं भूला सकते, साथ ही युद्ध में महाराणा का साथ देने वाले पूंजा भील, भामाशाह आदि की भूमिका भी कभी नहीं भुलाई जा सकती| ना ही हम मानसिंह जैसे अपने लोगों उन लोगों की गलतियों को भूला सकते हैं, जिन्होंने किसी कारण वश महाराणा के सामने अकबर की ओर से युद्ध किया| इस युद्ध में अपनों ने जो गलतियाँ की, हम उससे शिक्षा लेकर अपना वर्तमान सुधार सकते है| जिन्होंने इस युद्ध में महाराणा का साथ दिया, उनके लिए लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया, उनके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने के लिए हल्दीघाटी हमारे लिए, हमारी संस्कृति के लिए बहुत कुछ मायने रखता है| हम इतिहास की उस दुखद घटना को कभी भुला नहीं सकते| इस युद्ध में मानसिंह की विजय हुई या महाराणा की विजय होती वह कोई मायने नहीं रखती क्योंकि दोनों पक्षों की हार-जीत हमारी तो हार ही थी, आखिर दोनों और हमारे अपने ही थे|

लेकिन इस देश के पूर्वाग्रह से ग्रसित इतिहासकारों के लिए हल्दीघाटी युद्ध दिवेर युद्ध से ज्यादा महत्त्वपूर्ण इसलिए हो गया, क्योंकि दिवेर युद्ध में महाराणा प्रताप की सेनाओं ने मुग़ल सेना को बुरी तरह पराजित कर मेवाड़ से भगा दिया था| जबकि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप को रणनीतिक रूप से युद्धभूमि छोड़नी पड़ी थी| उनकी यह रणनीति कथित इतिहासकारों की नजर में हार थी और यही हार उनके लिए महत्त्वपूर्ण थी| इसीलिए आप इतिहास उठाकर पढ़ लीजिये, हल्दीघाटी युद्ध पर इतिहास की किताबों के पन्ने भरे पड़े है| जबकि दिवेर युद्ध जिसमें महाराणा ने अकबर की सेना को नाकों को चने चबवा दिए और बुरी तरह पराजित कर मेवाड़ से भगा दिया, का कहीं जिक्र नहीं मिलता और मिलता भी है तो कुछ पंक्तियों में|
इतिहास साक्षी है किसी भी देश या राजा के युद्ध में विजय की घटना को इतिहास में प्रमुखता दी जाती रही है और हार पर बहुत कम जानकारी लिखी गई है या फिर इतिहासकार हार वाली घटना पर मौन साध गया| अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल का लिखा इतिहास पढ़ लीजिये, उसमें मुग़ल सेना द्वारा जीते युद्धों का शानदार वर्णन किया गया है, जबकि हारे हुए युद्धों पर या तो मौन साध लिया गया या फिर बहुत कम लिखा गया| मुहम्मद गौरी पर लिखे मुस्लिम इतिहासकारों के लिखे इतिहास पर नजर डाल लीजिये उन्होंने गौरी व पृथ्वीराज के मध्य दो तीन युधों का वर्णन किया है, उसमें में भी जीत वाले युद्ध का सबसे ज्यादा| जबकि दोनों के मध्य कई युद्ध हुए थे और गौरी कई बार हार कर भागा पर मुस्लिम इतिहासकारों ने उस पर चुप्पी साध ली| सिकन्दर भारत से हार कर गया फिर भी उसके देश के इतिहासकारों ने उसको विजेता लिखकर महिमामंडित किया|

इसके ठीक विपरीत यहाँ के कथित इतिहासकारों ने किया| जिस दिवेर युद्ध को महाराणा ने जीता, जिस युद्ध पर भारतवासी आज गर्व सकते थे, उस युद्ध पर वे या मौन रह गए या फिर उस पर उनकी कलम बहुत कम चली| जबकि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा हारे, उस युद्ध में भारतवासियों के लिए गर्व करने वाली कोई बात नहीं, उल्टा अपनों का महाराणा के सामने लड़ना शर्मिदा होने वाली बात है, उसको खूब बढ़ा चढ़ा कर लिखा गया ताकि हम उसे पढ़कर अपनी एकता पर शर्मिंदा होते रहे, उस युद्ध को याद कर आज भी वंशवाद के अनुसार एक दूसरे का चरित्रहनन कर लड़ते रहें| यह सब वामपंथी व कथित सेकुलर गैंग द्वारा हमारे स्वाभिमान पर चोट कर हमारे मनोबल को तोड़ने का एक सोचा-समझा षड्यंत्र है| यह तो एक उदाहरण है, इन कथित इतिहासकारों ने हमारे मनोबल व स्वाभिमान को तोड़ने, पुरानी घटनाएँ याद कर वर्तमान में हम आपस में लड़ते रहे, एक दूसरे से नफरत करते रहे, के लिए लिखा है|

अत: हमें अपने इतिहास पर शोधकर इतिहास का पुनर्लेखन करना चाहिए, दिवेर युद्ध जिसमें महाराणा की शानदार विजय हुई, जैसी घटनाओं को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करना चाहिए| ताकि हमारी आने वाली पीढियां अपनी उन विजयों का गर्व कर सके, ताकि उनका स्वाभिमान और मनोबल ऊँचा रहे|

मुझे ख़ुशी है कि पंजाब निवासी कैप्टन कुंवर विक्रम सिंह जी ने दिवेर युद्ध के महत्त्व को समझा और वे इसे आम क्षत्रिय युवाओं प्रचारित करने लिए क्षत्रिय वीर ज्योति मिशन के तहत क्षत्रिय महासभा, पंजाब के बैनर तले पंजाब में 28 अगस्त 2016 को दिवेर युद्ध विजय उत्सव मनाने जा रहे है, साथ ही कुंवर विक्रम सिंह जी दिवेर युद्ध पर एक डाक्यूमेंट्रि फिल्म बनाने की दिशा में भी प्रयासरत है| क्षत्रिय युवाओं से मेरा आव्हान है कि वे भी राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप द्वारा विजित इस युद्ध पर सोशियल मीडिया में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां साझा करे, इस युद्ध को विजयोत्सव के रूप में जगह जगह मनाएं ताकि हमारी नई पीढ़ी का मनोबल ऊँचा रहे, उनके मन में भी महाराणा प्रताप की तरह स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा रहे| नई पीढ़ी को पता चले कि महाराणा प्रताप अकबर से हार कर जिंदगीभर जंगलों में नहीं भटके, बल्कि आखिर उन्होंने उस समय के विश्व के सबसे ताकतवर सम्राट अकबर की विशाल सेना को युद्धभूमि में धूल चटवा कर भगा दिया था और मेवाड़ को विजय कर लिया था|

मैं श्री कृष्ण जुगनू जी और एस.के. गुप्ता जी जैसे इतिहासकारों का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने दिवेर युद्ध पर शोध कर अपनी कलम चलाई और जनता को दिवेर युद्ध के बारे में अवगत कराया|


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