हठीलो राजस्थान-22

Gyan Darpan
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सिर देणों रण खेत में,
स्याम धर्म हित चाह |
सुत देणों मुख मौत में,
इण धर रुड़ी राह ||१३०||

रण-क्षेत्र में अपना मस्तक अर्पित करना,स्वामी का हमेशा हित चिंतन करना व अपने पुत्रों को भी स्वधर्म पालन के लिए मौत के मुंह में धकेल देना इस राजस्थान की पावन धरती की परम्परा रही है |

खग बावै भड एक हथ,
बिजै हथ निज माथ |
सिव धण पूछे पीव नै ,
किसो सराउं हाथ ||१३१||

योद्धा एक हाथ से तलवार बजा रहा है तथा दुसरे हाथ में उसका कटा हुआ मस्तक है | इस अदभुत दृश्य को देखकर पार्वती ने शिव से पूछा – हे प्रियतम ! कहो इनमे से किस हाथ को सराहा जाए ? |

सीस मंगायो सायाधण,
चिता चढ़ण एक साथ |
खग राखी निज हाथ में,
सिर भेज्यो चर हाथ ||१३२||

युद्ध में पति की मृत्यु सुनकर वीरांगना ने सहमरण हेतु उसका सिर मंगवाया | उधर युद्ध-क्षेत्र में पति जीवित था तथापि, अपनी वीर पत्नी का मनोरथ पूर्ण करने के हेतु उस वीर ने अपना मस्तक काट कर सेवक के साथ भेज दिया ||

फेरां सुणी पुकार जद,
धाडी धन ले जाय |
आधा फेरा इण धरा ,
आधा सुरगां खाय ||१३३ ||

उस वीर ने फेरे लेते हुए ही सुना कि दस्यु एक अबला का पशुधन बलात हरण कर ले जा रहे है | यह सुनते ही वह आधे फेरों के बीच ही उठ खड़ा हुआ और तथा पशुधन की रक्षा करते हुए वीर-गति को प्राप्त हुआ | यों उस वीर ने आधे फेरे यहाँ व शेष स्वर्ग में पूरे किये |
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हेलो चंवरी सांभल्यो,
कंवरी, बात बताय |
पंवरी काटी गाँठ चट,
चढियो भंवरी आय ||१३४||

जैसे ही वह वीर (पाबूजी ) विवाह मंडप में अपने विवाह हेतु बैठा था | उसी समय उन्होंने घोड़ी की हिनहिनाहट सुनी (हेलो) हिनहिनाहट का तात्पर्य समझकर विपत्ति के विषय में वधु (कंवरी)को बताया व गठ्जोड़े की गाँठ को तलवार से काटकर युद्ध के लिए घोड़ी पर जा चढ़ा |

इण ओसर परणी नहीं ,
अजको जुंझ्यो आय |
सखी सजावो साज सह,
सुरगां परणू जाय ||१३५ ||

शत्रु जूझने के लिए चढ़ आया | अत: इस अवसर तो विवाह सम्पूर्ण नहीं हो सका | हे सखी ! तुम सती होने का सब साज सजाओ ताकि मैं स्वर्ग में जाकर अपने पति का वरण कर लूँ |
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स्व.आयुवानसिंह शेखावत

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