जब सरकार ने महात्मा गाँधी के नाम से मनरेगा (Narega) के रूप में देश के बेरोजगारों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी तो लोगों ने इसे ऐतिहासिक बताया| मजदुर हितों से जुड़े संगठनों ने भी इसे मजदूरों की जीत बताते हुये आशा व्यक्त की कि अब मजदूरों का शोषण नहीं होगा और मजदूर अपनी शर्तों पर काम करेंगे| उनकी आशा के अनुरूप स्थितियां भी बदली| मनरेगा में रोजगार मिलने पर मजदूर वर्ग मजदूरी के मामले में ठेकेदारों, जमींदारों आदि पर आश्रित नहीं रहा और अपनी शर्तों पर उनके यहाँ मजदूरी पाने लगा|
लेकिन जैसा कि इस देश के हर योजना का मुफ्तखोर फायदा उठाते है, इस योजना में भी हुआ| पंचायतों के अधीन कार्यान्वित होने वाली इस योजना में पंचायत प्रतिनिधियों व सरकारी कर्मियों ने मिलीभगत कर कई ऐसे नाम जोड़ दिए जिन्हें मजदूरी की कोई जरुरत नहीं| फर्जी नामों के माध्यम से इस योजना का भी दुरूपयोग किया गया| योजना के अंतर्गत करवाये गये ज्यादातर कार्यों में निर्धारित मापदंड का पालन नहीं किया गया| कार्य पर आने वाले मजदूरों ने बिना काम किये मजदूरी उठाई, काम पर आये भी दो चार घंटे कार्य स्थल पर बिता कर चलते बने| इस तरह इस योजना ने हरामखोरी को पूरा प्रोत्साहन दिया| हरामखोरी की आदत पड़ने के चलते खेतों में मजदूरों की कमी हो गई, जिससे कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ा| छोटे कुटीर उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हुये| क्योंकि जब मुफ्त में, बिना मेहनत किये धन मिल रहा है तो कोई मेहनत क्यों करे|
गांवों में इस योजना के अंतर्गत जितने कार्य हुए, उनमें सबसे ज्यादा तालाब खुदवाने या रास्तों को ठीक करवाने के कार्य हुये| गांवों के ज्यादातर कच्चे रास्तों में इस योजना के तहत पत्थर की रोड़ी आदि डालकर उन्हें ठीक करने की कोशिश की गई, लेकिन उसका प्रभाव उल्टा रहा| कच्चे रास्ते जिन पर आसानी से किसान अपने ट्रेक्टर, ऊंट, बैलगाड़ी आदि चलाया करते थे, वे मनरेगा योजना के तहत आज नर्क बन चुके है| बारिश में पत्थर की रोड़ी के साथ डाले गये चूरे के कीचड़ ने रास्तों को पैदल चलने लायक भी नहीं छोड़ा| अपने गांव के रास्तों की ही चर्चा करूँ तो जो रेतीले रास्ते कभी भी आवागमन के साधनों के लिए बाधक नहीं बने, उन रास्तों पर आज आवागमन के साधन का प्रयोग तो छोड़े, पैदल चलाना भी दूभर हो गया है| मनरेगा योजना के तहत ख़राब हुए ये रास्ते आज बारिश में पूरी तरह से कीचड़ से अटे पड़े, पैदल चलने वाला भी डरता है कि पत्थर के चूरे के कीचड़ में पता नहीं कब फिसल जाये|
इस तरह जिस योजना ने आम आदमी को रोगजार की गारंटी दी, उसी योजना के क्रियान्वयन में लापरवाही, अदुर्दर्शिता, भ्रष्टाचार आदि ने मिलकर इस योजना के माध्यम से गांवों को नर्क बना दिया और ग्रामीण खासकर किसानों के लिए मुसीबतें पैदा करदी|
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