सावण आयो री सखी,मन रौ नाचै मोर

Gyan Darpan
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सावण आयो री सखी, मन रौ नाचै मोर ।
जल बरसाव बादळी, अगहन लगी चहूं और ।।

झड़ लागी सावण की ,टिप -टिप बरसै मेह।
यौवन पाणी भिजतां, तापे सगळी देह ।।


झिर -मिर मेवो बरसता, बिजली कड़का खाय ।
साजन का सन्देश बिना, छाती धड़का खाय ।।

काली -पीली बादळी, छाई घटा घनघोर ।
घर -जल्दी सूं चाल री, बरसगो बरजोर ।।


गगन मंडल सूं उतरी, तीजा चारुं मेर।
रेशम -रेशम हुयी धरा, खिलगा जांटी - केर ।।

सावन का झुला पड्या, गीतड़ला को शोर ।
नाडी-सरवर लौट रहया, टाबर ढांढ़ा - ढोर ।।


चित उचटावे बीजळी, पपिहो बैरी दिन -रैण।
"पिहू-पिहू" बोले मसखरो, मनड़ो करे बैचैण ।।

गुलगला को भोग ल्यो, गोगा करो मैहर।
पाछ सगळा जिमस्यां, थान्को धुप्यो खैर ।।

तीज - सिंझारा,रखपुन्यूं, घेवर रौ घण चाव ।
हिंडा - हिंडू बाग़ में, सजधज करूँ बणाव ।।

लेखक : गजेन्द्र सिंह शेखावत


शब्दार्थ -१.झड - बारिश का लगातार धीरे-धीरे बरसना, २.मेह - वर्षा, ३.बरजोर - बहुत जोर से, ४.खिलगा - खिल गए, ५.गीतड़ला - गीत, ६.टाबर - बच्चे, ७.ढाढ़ा- ढोर - मवेशी, ८.हिंडा - झुला, ९.सगळा - सभी, १०.पाछ - उसके बाद, ११.जिमस्यां - भोजन करना

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6टिप्पणियाँ

  1. आनंद आगया सावन के इस गीत का, आभार.

    रामराम.

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  2. गोगा = एक मुसलमानी संत की पीर

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  3. अच्छा किया , इन लोकगीतों का आदर मिलना ही चाहिए ! आभार आपका !

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  4. सुन्दर लोकगीत, सुन्दर सावन आयो री।

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