जल बरसाव बादळी, अगहन लगी चहूं और ।।
यौवन पाणी भिजतां, तापे सगळी देह ।।
झिर -मिर मेवो बरसता, बिजली कड़का खाय ।
साजन का सन्देश बिना, छाती धड़का खाय ।।
घर -जल्दी सूं चाल री, बरसगो बरजोर ।।
गगन मंडल सूं उतरी, तीजा चारुं मेर।
रेशम -रेशम हुयी धरा, खिलगा जांटी - केर ।।
नाडी-सरवर लौट रहया, टाबर ढांढ़ा - ढोर ।।
चित उचटावे बीजळी, पपिहो बैरी दिन -रैण।
"पिहू-पिहू" बोले मसखरो, मनड़ो करे बैचैण ।।
पाछ सगळा जिमस्यां, थान्को धुप्यो खैर ।।
हिंडा - हिंडू बाग़ में, सजधज करूँ बणाव ।।
शब्दार्थ -१.झड - बारिश का लगातार धीरे-धीरे बरसना, २.मेह - वर्षा, ३.बरजोर - बहुत जोर से, ४.खिलगा - खिल गए, ५.गीतड़ला - गीत, ६.टाबर - बच्चे, ७.ढाढ़ा- ढोर - मवेशी, ८.हिंडा - झुला, ९.सगळा - सभी, १०.पाछ - उसके बाद, ११.जिमस्यां - भोजन करना
आनंद आगया सावन के इस गीत का, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गोगा = एक मुसलमानी संत की पीर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुंदर रचना साझा करने के लिए आभार ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
वाह! बहुत खूबसूरत गीत।
जवाब देंहटाएंअच्छा किया , इन लोकगीतों का आदर मिलना ही चाहिए ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंसुन्दर लोकगीत, सुन्दर सावन आयो री।
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