धरती को भूल कर

Unknown
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धरती को भूल कर
आसमां को निहारने लगा है मानव ...
ऊंची उड़ान कि चाहत में
कहीं भटक गया है मानव ...

बहुत अफ़सोस,
भूल गया है
अपने साथी संगी को साथ लेना मानव ...
टूटने लगे है रिश्ते नाते
कांच के आशियानों में जो रहने लगा है मानव ...

अपनों से कुछ बुझा बुझा सा
अब दीवारों से बातें करने लगा है मानव ...
खुद में ही कैद रहता है
जैसे खुद को ही सजा सुना रहा है मानव ..

दुनियां की इस दौड़ में
सबको पीछे और खुद को आगे समझने लगा है मानव ..
ऐसा भी क्या गुरूर ?
कि एक दिन खुद से खुद ही दूर हो जायेगा मानव ..

सुश्री राजुल शेखावत


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