जैसी करनी वैसी भरनी

Gyan Darpan
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एक राजा के कुंवर की एक नाई से बहुत अच्छी मित्रता थी | कुंवर शिकार खेलते वक्त,खाते-पीते, सोते,उठते बैठते हर समय नाई को साथ रखते | नाई स्वभाव से बहुत कुटिल था और उसकी कुटिलता कुंवर के अलावा सब जानते थे | कुंवर के दुसरे मित्रों, घर के बड़े बुजुर्गों,राज्य के प्रधान सभी ने कुंवर को समझाया कि ये नाई बहुत दुष्ट प्रवृति का इससे दूर रहे पर कुंवर ने किसी की नहीं सुनी | राजा ने भी कुंवर को खूब समझाया पर कुंवर ने तो कह दिया घर,राज्य,मित्र,कुटुंब सबको छोड़ सकता हूँ पर नाई से मित्रता नहीं छोडूंगा |
इस बात पर राजा को बहुत गुस्सा आया और उसने कुंवर को अपने राज्य से बाहर निकल जाने का हुक्म दे दिया | जब कुंवर नाई को ले राज्य छोड़कर जाने लगा तो कुंवर की मां ने कुंवर के साथ चार लड्डू बांध दिए ताकि रास्ते में उसे भूख नहीं सताये साथ ही मां ने चारों लड्डुओं में एक एक रत्न भी दबा दिया ताकि कभी मुसीबत में कुंवर के काम आ सके आखिर मां की ममता ममता ही होती है |

कुंवर व नाई चलते गए,रास्ते में एक बावड़ी के पास छायादार पेड़ के नीचे बैठ दोनों भोजन करने लगे | कुंवर ने दो लड्डू खुद खाये व दो लड्डू खाने को नाई को दे दिए | जब दोनों लड्डुओं से रत्न निकले तो कुंवर ने नाई से पूछा -
"मित्र तुम्हारे लड्डुओं में भी रत्न निकले है क्या ?"
नाई ने साफ मना करते हुए कहा -" मेरे में तो ना तो कोई रत्न निकला और ना ही कोई पत्थर |"
कुंवर ने सोचा मां ने जरुर चारों लड्डुओं में रत्न डाले होंगे फिर नाई मना कर रहा है,कुंवर को संदेह हुआ,कुंवर सोचने लगा कि ये अभी से मेरे साथ बेईमानी कर रहा है आगे चलकर पता नहीं क्या करेगा | फिर भी कुंवर नाई से बाते करते करते चलता रहा ,बातों ही बातों में दोनों में बहस होने लगी -
कुंवर बोला-" बुरे के फल बुरा ही मिलता है |"
"नहीं,भलाई का नतीजा बुरा ही निकलता है |" नाई बोला |
इस बात पर दोनों में बहस छिड़ गयी साथ ही दोनों के मध्य शर्त लग गयी कि जिसकी बात गलत होगी उसकी आँखे फोड़ दी जाएगी | इस तरह बहस करते दोनों आगे बढे,एक बुढ़िया रास्ते के किनारे उपले थाप रही थी,दोनों बुढ़िया के पास गए और पूछा -
" माई ! भले का फल भला या बुरा होता है ?"
बुढ़िया ने एक लम्बी साँस लेकर बोला -"बेटा आजकल के ज़माने में भले का फल बुरा ही मिलता है अब देखो मैंने मेहनत मजदूरी कर अपने बेटे को पाला पोसा ,अब वह कमाने लगा पर मुझे पूछता तक नहीं | जब तक ये उपले थापकर नहीं ले जावुंगी बेटे की बहु खाना तक नहीं देगी |"
नाई ने तो झट से बोला- "कि कुंवर तुम हार गए हो अब मैं तुम्हारी आँखे फोडूंगा |"
कुंवर नाई को खूब समझाता रहा कि दोस्ती में एसा थोड़े ही होता है पर नाई माना नहीं और कुंवर की आंखे फोड़,उसका घोडा, हथियार,चारों रत्न ले वहां से चलता बना |

नाई कुंवर का घोड़ा,हथियार,रत्न ले पाटण नगरी पहुंचा,वहां रत्न बेचकर नाई ने व्यापार कर लिया,व्यापार में अच्छा धन कमाया और वहीँ के एक व्यापारी की पुत्री से विवाह कर मजे से रहने लगा | उधर कुंवर अँधा हो गया ,आँखों की पीड़ा से दुखी तड़फता रहा,मन ही मन सोचता रहा सभी ने समझाया कि नाई दुष्ट है पर मैंने किसी की बात नहीं मानी अब पछताना पड़ रहा है | आखिर मुझे गलत संगत का फल मिल गया |
एक रात कुंवर एक पेड़ के नीचे बैठा अपने मुकद्दर को कोस रहा था कि उसे पेड़ पर बैठे चकवा व चकवी पक्षी की बाते सुनाई दी|
चकवी बोली -" कह रे चकवा बात ताकि आसानी से कट जाए रात |"
"घर बीती कहूँ या पर बीती |" चकवा बोला |
" पर बीती का क्या फायदा अपने तो घर बीती ही बता |"
चकवा कहने लगा -" यदि अपनी बींट को किसी अंधे के आँख ने डाल दी जाए तो उसकी आँखों में रौशनी आ जाये |"
"अच्छा ? अपनी बींट और किस किस रोग में इंसानों के काम आती ?" चकवी ने पूछा |
कोढ़ी के शरीर पर लेप करने पर उसकी कोढ़ (कुष्ठ रोग)चली जाती है ,चौरासी तरह के घाव हमारी बींट से ठीक हो जाते है |" चकवे ने आगे बताया |
कुंवर उनकी बात सुन रहा था उसने तुरंत इधर उधर टटोलकर उनकी बींट उठाई और अपने आँखों में डाली,डालते ही कुंवर की तो आँखों में रौशनी आ गयी | कुंवर ने वहां पड़ी बाकी बींट भी इकठ्ठा की और साथ लेकर वह भी पाटण नगरी पहुंचा | वहां के राजा को कोढ़ रोग | राजा ने मुनादी करवा राखी कि -"जो कोई उसे कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलादे उसके साथ वह अपनी पुत्री का विवाह कर आधा राज्य दे देगा | कुंवर सीधा राजा के पास गया और उसका रोग ठीक करने का वायदा किया | कुंवर ने चकवे की बींट को चन्दन में घिस उसका राजा के शरीर पर लेप किया.तीन चार लेप करते ही राजा का कुष्ठ रोग जाता रहा | राजा ने खुश हो अपने वादे के मुताबिक अपनी कुँवरी का विवाह कुंवर से कर दिया | अब कुंवर भी आराम से पाटण नगरी के महलों में रहने लगा |

संयोग की बात कि नाई भी उसी नगर में व्यापार करे और कुंवर भी उसी नगरी में रहे एक दिन नाई ने कुंवर को देख लिया उसे कुंवर की आँखों में रौशनी देख बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर ये कैसे हो गया अब नाई को भय सताने लगा कि कहीं कुंवर को मेरा पता चलते ही मेरी पोल खोल देगा,पोल ही क्या खोल देगा सजा भी दिला देगा आखिर कुंवर अब राजा का जंवाई जो ठहरा | पर चालाक नाई ने नगर में अफवाह फैला दी कि -" राजा का जंवाई तो मेरे बाप का नाई है |"
पुरे शहर में यह चर्चा फ़ैल गयी कि राजा की कुँवरी की शादी तो एक नाई के साथ हो गयी | यह बात धीरे धीरे फैलती हुई राजा के कानों में भी पहुंची | राजा को बहुत दुःख पहुंचा कि उसकी राजकुमारी की शादी एक नाई से हो गयी साथ ही उसे कुंवर पर बहुत गुस्सा आया |
नाई ने भी जाकर राजा के कान भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी | साथ ही नाई ने राजा को सलाह दी किसी तरह चुपके से कुंवर को मरवा दीजिये | राजा को नाई की सलाह जच गयी और उसने कुंवर की ओनर किलिंग करने की ठान ली | राजा ने एक चांडाल को बुलाया और कहा कि -" रात्री में तेल का कडाह गर्म कर रखना और तेरे पास जो भी आदमी आकर पूछे कि राजा ने तुम्हे जो हुक्म दिया था वह काम हुआ कि नहीं,उसे ही पकड़कर गर्म तेल के कड़ाह में डालकर जला देना |"
रात होते ही राजा ने कुंवर को बुलाकर कहा-" चंडाल के घर जाकर पूछकर आईये कि मैंने उसे जो काम बताया था वो हुआ कि नहीं |"
कुंवर चंडाल के पास जाने को चलने ही वाला था कि कुँवरी ने उन्हें रोक लिया बोली- " दो पल मुझसे बात करके चले जाना,बात करते करते कुँवरी बोली आप नहाकर दुसरे कपड़े पहनकर चले जाना |"
इस तरह कुंवर को चंडाल के घर जाने में काफी देर लग गयी | उधर नाई के मन में खलबली मची हुई थी कि पता नहीं कुंवर की हत्या हुई कि नहीं सो बैचेन नाई चंडाल के घर पता करने पहुँच गया उसने जाकर चंडाल से पूछा कि -" राजा ने जो हुक्म दिया था वो काम हुआ कि नहीं ?"
चंडाल ने नाई के ये शब्द सुनते ही उसे उठाकर गर्म तेल के खोलते कड़ाह में दाल दिया और नाई उस गर्म तेल में जल मरा | थोड़ी देर में ही कुंवर चंडाल के घर पहुंचा और पूछा कि- " राजा ने जो काम बताया था वो हुआ कि नहीं ?"
चंडाल बोला-" हो गया |"
कुंवर राजा के पास गया और राजा को बताया कि -" चंडाल ने आपका बताया कार्य कर दिया है |"
राजा को कुंवर को जिन्दा देख बहुत आश्चर्य हुआ वह सीधा चंडाल के यहाँ गया,देखा तो वहां नाई मरा पड़ा |
कुंवर भी राजा के साथ गया कुंवर ने मरे नाई को देखते ही कहा- " ये यहाँ कहाँ से आ गया ?"
राजा ने कुंवर से पूछा -"क्या आप इसे जानते है ?"
तब कुंवर ने राजा को पूरी बात विस्तार से समझाई | कुंवर की बात सुन राजा बहुत खुश हुआ,बोला-
"सही बात बुरे कर्मो का नतीजा बुरा ही होता है |" और कुंवर के मां-बाप को कुंवर के बारे में सूचित किया |
कुंवर की कुशलक्षेम जानकर मां-बाप बहुत खुश हुए |कुंवर ने भी मां-बाप से ये कहते हुए माफ़ी मांग ली कि -
"मैंने बुरी संगत का फल भुगत लिया है,अब आगे से कभी बड़ों की बात नहीं टालूंगा |"

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20टिप्पणियाँ

  1. नाई की गद्दारी तो ठीक, चकवा-चकवी की बीट बडे काम की है, भला हो कपडों का जो बच गयी जान, नहीं तो नाई मानने वाला नहीं था,

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  2. बुरे कर्मो का नतीजा बुरा ही होता है


    -बिल्कुल सही जी.

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  3. बुरे कर्मो का नतीजा बुरा ही होता है,इस लिये संगत भी अच्छे लोगो से करनी चाहिये

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  4. एक कहानी जाट और नाई की भी सुना दो।

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  5. सही बात है संगत सोच समझ कर ही करनी चाहिये.

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  6. आपकी इस कहानी ने दादी की बचपन वाली कहानियों की याद ताजा कर दी है|कहानी हमेशा कि तरह शिक्षा प्रद है |

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  7. कहानी तो अच्छी है !मेरे ब्लॉग पर् भी आये मेरे ब्लॉग पर् आने के लिए आगे लिंक पर् क्लिक करे "www.samratbundelkhand.blogspot.com"

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  8. जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
    पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
    http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_27.html

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  9. आपकी पोस्ट कल चर्चा मंच का हिस्सा होंगी नजर डालियेगा

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  10. राजा -रानी की कहानियों का तिलस्म आज भी पूर्ववत है ... प्रेरक पसंग
    शुक्रिया .....

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  11. हा हा कहानियो को आज के माहौल मे ढालने और आनर किलिंग की बुराई को दर्शाने के लिये धन्यवाद

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  12. सही है

    लोक कथाएँ हमेशा ही नैतिक शिक्षा देती आई हैं

    आभार कथा हेतु

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