चोर की चतुराई : राजस्थानी कहानी, भाग- 2

Gyan Darpan
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भाग १ से आगे

जब खापरिया चोर ने राजा के सभी खास सरदारों की भी अच्छी तरह से आरती उतरवा दी तो राजा का और गुस्सा आया राजा ने अपने मंत्रियों से कहा -
" ये चोर तो रोज चोट पर चोट किये जा रहा है अब इसे पकड़ना बहुत जरुरी हो गया है | वैसे कांटा निकालने के लिए काटें की ही जरुरत पड़ती है इसलिए इसे पकड़ने के जिम्मेदारी चोरों को ही देते है,चोर चोर की हर हरकत से वाकिफ होता है इसलिए राज्य के सभी चोरों को इकठ्ठा कर इसके पीछे लगा देते है वे इसे पकड़ने में जरुर कामयाब होंगे |"
नगर के सभी नामी चोरों को राजभवन में बुलाया गया और उन्हें खापरिया चोर को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गयी | चोरों ने राजा से अर्ज किया -
" महाराज ! हमें एक ऊंट व एक नौलखा हार दिलवाया जाय |"
राजा ने उनकी मांग मंजूर करदी |
शाम होते ही ऊंट के गले में नौलखा हार पहनाकर चोरों ने ऊंट को नगर में खुला विचरण करने के लिए छोड़ दिया और उससे कुछ दुरी बनाकर खुद चलने लगे इस घोषणा के साथ कि-
" असल चोर है तो इस ऊंट के गले से नौलखा हार निकालकर ले जाय |"

खापरिया तो वहीँ था उसे तो सब पता होता था कि अब ये क्या करने वाले है सो उसने दिन में ही अपने घर में ऊंट को काट कर दफ़नाने जितना एक गड्ढ़ा पहले ही खोद लिया | जैसे ही रात हुई वह चोरों द्वारा छोड़े ऊंट के पीछे हो लिया | आगे बाजार में एक जगह एक बाजीगर अपना खेल दिखा रहा था | खापरिये ने बाजीगर से कहा-
" कोई एसा चमत्कारी तमाशा दिखा कि देखने वाले भ्रमित हो जाये तो तुझे रूपये पचास दूंगा |"
बाजीगर तमाशा दिखाते हुए बोला -" मर्द को औरत बना दूँ ,चींटी को हाथी बना दूँ ,कोई कहे तो खापरिये चोर को पकडवा दूँ........................|"
बाजीगर की ऐसी चमत्कारिक बाते सुन चोरों का दल भी खड़ा होकर सुनने लगा तब तक खापरिये चोर ऊंट को अगवा कर अपने घर ले गया,पहले बाहर आकर ऊंट के पैरों के निशान मिटा दिए और बाद में घर जाकर ऊंट के गले से नौलखा हार निकाल,ऊंट को काट उस गड्ढे में दफना दिया |
सुबह चोरों का दल अपना मुंह लटकाकर राजा के आगे हाजिर हुआ, उनके साथ न तो ऊंट था,न नौलखा हार और खापरिये का तो पता ही नहीं |

खापरिये चोर ने तो नगर चौराहे पर फिर पोस्टर लगा दिया -" जैसी कल करी वैसी ही आज करूँगा |"
राजा ने चोरों के दल को भगा दिया और अपने प्रधान को बुलाकर कहा - " प्रधान जी ! आज रात आप पहरे पर जाएँ और चोर को पकड़ कर हाजिर करे नहीं तो आपकी प्रधानी गयी समझो |"
रात को प्रधान जी खुद घोड़े पर बैठ गस्त पर निकले | आगे बढे तो देखा एक बुढ़िया इतनी रात गए हाथ चक्की से रोते हुए दलिया दल रही है | प्रधान जी ने बुढ़िया से पूछा -
" इतनी रात गए तूं ये दलिया किसके लिए दल रही है और रो क्यों रही है ?"
बुढ़िया बोली- "अन्नदाता ! गरीब लाचार बुढ़िया हूँ | खापरिया चोर के घोड़े के लिए दाना दल रही हूँ | क्या करूँ हुजुर रोज वह चोर मुझे अपने घोड़े के लिए दाना दलने हेतु दे जाता है,मेहनत के पुरे पैसे भी नहीं देता ,मना करती हूँ तो धमकाता है |"
खापरिये चोर का नाम सुनते ही प्रधान जी चेहरा चमक उठा सोचा आज आसानी से खापरिये को पकड़ लूँगा | लगता है मेरे पहले जितने लोग पहरे पर निकले सब नालायक थे | और प्रधान जी ने बुढिया से कहा -
" माई ! मैं इस राज का प्रधान हूँ | खापरिये ने तुझे भी तंग कर रखा है आज मुझे यहाँ कहीं छिपा कर बैठा दे और खापरिया के आते ही इशारा कर देना मैं उसे पकड़ लूँगा |"
बुढ़िया बोली- " छिपने से वह आपके पकड़ में नहीं आने वाला,कहीं भाग गया तो | इसलिए आप एक काम करो मेरे कपड़े पहन यहाँ खुद दलिया दलने बैठ जावो,जब खापरिया दाना लेने आये तो झटके से उसे पकड़ लेना |"

प्रधान जी के बुढ़िया की बात जच गयी वे बुढ़िया के कपड़े पहन खुद दाना दलने बैठ गए | उधर खापरिया प्रधान जी कपड़े व घोड़ा लेकर छू मंतर हो गया |और प्रधान जी को हाथ की चक्की पिसते-पिसते सुबह हो गयी,न तो खापरिया आया न बुढ़िया नजर आई,न प्रधान जी के कपड़े व घोड़ा दिखाई दिया | तब प्रधान जी को आभास हुआ कि खापरिया उन्हें भी बेवकूफ बना गया | बेचारे प्रधान जी तो पानी-पानी हो गए,प्रधानी गयी सो अलग |

प्रधान जी की असफलता की बात सुन राजा को बड़ा क्रोध आया कहने लगा - " सब हरामखोर है,सबको फ्री का खाने की आदत पड़ गयी इतने लोगों को पहरे पर लगाया कोई भी उस चोर को पकड़ नहीं पाया ,अब तो मुझे ही कुछ करना होगा |"
और रात पड़ते ही खुद राजा शस्त्रों से लेश हो घोड़े पर चढ़ नगर में पहरे पर निकला | खापरिये तो दिन में महल में ही रहता था सो राजा द्वारा उठाये जाने वाले हर कदम का उसे पता होता था |
शस्त्रों से सज्जित राजा रात्री में पहरा देते हुए तालाब पर धोबी घाट की और गया तो देखा एक धोबी पछाट-पछाट कर कपड़े धो रहा है | राजा ने पास जाकर धोबी से पूछा-
" तू कौन है ? और इतनी रात गए कपड़े क्यों धो रहा है ?"
"हुजुर मस्ताना धोबी हूँ | आपकी रानियों के कपड़े धो रहा हूँ |
" तो आधी रात को क्यों धो रहा है ?" राजा ने पूछा |
हुजुर अन्नदाता ! रानियों की पोशाकों पर हीरे जड़े रहते है दिन में यहाँ भीड़ रहती है कोई एक आध हिरा चुरा ले जाए तो | इसलिए रात को धोता हूँ पर हुजुर इतनी रात गए आप यहाँ अकेले ?"
"खापरिया चोर को पकड़ने |" राजा ने उत्तर दिया |
धोबी बोला - "महाराज ! खापरिया तो रोज यहाँ आता है,मेरे साथ बातें करता है ,हुक्का पीता है | उसे पकड़ना है तो आप एक काम करे , उस पेड़ के पीछे छुप कर बैठ जाए ,खापरिया आते ही मैं उसे बातों में उल्झाऊंगा और आप आकर उसे एकाएक झटके से पकड़ लेना |"
राजा के बात जच गयी और वो एक पेड़ की ओट में छिपकर बैठ गए | अँधेरी रात थी,कुछ देर बाद राजा को किसी के पैरों की आहट सुनाई दी ये आवाज धोबी की और जा रही थी | राजा समझ गया कि हो न हो खापरिया आ गया है सो वह चौकन्ना हो गया |
उधर धोबी ने बोलना शुरू किया -" आ खापरिया आ | आ हुक्का पीते है बैठ |"
राजा ने खापरिया का जबाब भी सुना - " हाँ भाई मस्तान धोबी ! ला हुक्का पीला फिर चलता हूँ ,जैसी कल प्रधान जी में करी वैसी आज राजा के साथ भी करनी है |"
इतना सुनते ही राजा को क्रोध आया और वह तलवार ले सीधा खापरिया की और दौड़ा | राजा के दौड़ते ही धोबी ने एक काली हांडी तालाब में फैंक दी और राजा से बोला -
" महाराज ! पकड़िये खापरिया तो पानी में कूद गया और तैर कर भाग रहा है |"

राजा भी तुरंत पानी में कूद गया उसे आगे आगे तैरती जा रही काली हांडी सिर जैसी लग रही थी | राजा तैरते हुए हांफते हांफते हांडी के पास पहुंचा और हांड़ी पर तलवार का वार किया,तलवार के वार से हांडी के फूटते ही राजा को समझ आ गयी कि खापरिये ने उसके साथ भी चोट कर दी है | राजा पानी से बाहर आया तो धोबी गायब और उसका घोड़ा भी | राजा को तो काटो तो खून नहीं |और राजा मन ही मन बड़ा शर्मिंदा हुआ |
दुसरे दिन राजा दरबार में आकर बैठा और अपने दरबारियों से खापरिये चोर की तारीफ़ करने लगा - " जो भी चोर हो तो एसा ही हो | बेशक वह चोर है पर है बहुत होशियार और बहादुर | ऐसे होशियार व्यक्ति से मैं मिलना चाहता हूँ पर वह पकड़ में तो आएगा नहीं, पर बेशक मुझे कुछ भी करना पड़े मुझे उसे देखना जरुर है | कुछ भी बहादुरी तो दुश्मन की भी सराहनी पड़ती है | और ये चोर तो अपने हुनर में उस्ताद है |"
और राजा ने हुक्म दे दिया -" यदि खापरिया सुन रहा है या यह खबर उस तक पहुँच जाय तो वह हमारे दरबार में हाजिर हों | उसके लिए सभी गुनाह माफ़ किये जाते | यही नहीं एक बार वह आकर मेरे सामने हाजिर हो जाए तो उसे इनाम में दस गांवों की जागीर भी दी जाएगी |"
इतने में ही राजा के नौकरों में से एक राजा के आगे आकार खड़ा हुआ -" अन्नदाता ! लाख गुनाह माफ़ करने का वचन दे तो खापरिये को अभी लाकर आपके सामने हाजिर कर दूँ |"
"वचन दिया |"
"तो ये खापरिया मैं आपके चरणों में खड़ा हूँ हुजुर |"
मैं कैसे मानू कि तुम ही खापरिया हो ?" राजा ने कहा |
"हुजुर ! मेरे साथ राज के आदमी मेरे घर भेज दीजिये,जब सारा सामान आपको नजर करदूं तब मान लेना |"

राजा ने अपने आदमी उसके घर भेजे ,खापरिये ने सोने की चारों इंटे,नौलखा हार सभी लाकर राजा के नजर कर दिया |
राजा ने अपने वचन के मुताबिक उसे माफ़ कर दिया और साथ ही दस गांवों की जागीर भी ये कहते हुए दी कि - " कभी चोरी मत करना अपनी दक्षता का इस्तेमाल सही कामों में करना |


उपरोक्त कहानी बचपन में अपने दादीसा से सुनी थी पर स्मृति में पूरी कहानी याद नहीं थी,पिछले दिनों जब यही कहानी रानी लक्ष्मीकुमारी जी द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखी पढ़ी तो बचपन में सुनी यह कहानी ताजा हो गयी |

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16टिप्पणियाँ

  1. जितना महान था ये चोर, उससे भी कम नहीं था, उसका राजा आखिर उसको मान लेना पडा कि उसके बस की बात नहीं है।

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  2. चोर होना भी कोई हंसी खेल नहीं ... यहां भी दिमाग़ होना मांगता :)

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. ये कहानी बचपन में सूनी थी ,आज आपके यंहा पढ़ कर पुन: स्मरण हो आया |आज भी शातिर चोर का हवाला देना होता है तो किसी व्यक्ति विशेष को खपरिया चोर का ई संबोधन दिया जाता है |

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  5. पूरी कहानी में आनन्द आया । मजेदार...

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  6. कहानी बहुत अच्छी लगी!
    अन्त में शिक्षा भी बहुत सही दी गई है!

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  7. बहुत रोचक लगी खापरिया की कहानियाँ।

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  8. bahut rochak aur achchi seekh deti hui kahani.badiyaa lagaa padhkar.badhaai aapko.




    please visit my blog.thanks.

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  9. मजेदार थोड़ी लंबी हो गयी फ़िर भी रोचकता बनी रही

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  10. इसे कहते हैं कहानी....वाह क्या कहने। इस कहानी जैसी कथात्मकता आजकल की कहाँनियों में कहाँ ?

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  11. बेहतरीन, बचपन में स्कूली किताब में पढ़ी एक अंग्रेजी कहानी याद आ गयी। उसमें एक ठग था और उसने भी राजा को ऐसे ही नचाया था।

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  12. आपका मोबाइल चोरी हुआ तो ये कथा हाथ आई :)

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