कवि की दो पंक्तियाँ और जोधपुर की रूठी रानी

Gyan Darpan
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ज्ञान दर्पण पर जनवरी 2009 में जोधपुर की रूठी रानी के बारे में आपने पढ़ा होगा | इस रानी के बारे में मुझे भी संक्षिप्त जानकारी मिली थी जो मैंने उस लेख में आप सभी के साथ साझा की थी | पर रूठी रानी की उस संक्षिप्त जानकारी के बाद मुझे भी उसके बारे में ज्यादा जानने की बड़ी जिज्ञासा थी मन में कई विचार उठे कि इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध जैसलमेर की उस राजकुमारी उमादे जो उस समय अपनी सुन्दरता व चतुरता के लिए प्रसिद्ध थी को उसका पति जो जोधपुर के इतिहास में सबसे शक्तिशाली शासक रहा ने क्या कभी उसे मनाने की कोशिश भी की या नहीं और यदि उसने कोई कोशिश की भी तो वे कारण थे कि वह अपनी उस सुन्दर और चतुर रानी को मनाने में कामयाब क्यों नहीं हुआ |

आज उसी रानी की दासी भारमली उसके प्रेमी बाघ जी के बारे में पढ़ते हुए मेरी इस जिज्ञासा का उत्तर भी मिला कि राव मालदेव अपनी रानी को क्यों नहीं मना पाए | ज्ञात हो इसी दासी भारमली के चलते ही रानी अपने पति राव मालदेव से रूठ गई थी | शादी में रानी द्वारा रूठने के बाद राव मालदेव जोधपुर आ गए और उन्होंने अपने एक चतुर कवि आशानन्द जी चारण को रूठी रानी उमादे को मना कर लाने के लिए जैसलमेर भेजा | स्मरण रहे चारण जाति के लोग बुद्धि से चतुर व अपनी वाणी से वाक् पटुता व उत्कृष्ट कवि के तौर पर जाने जाते है राजस्थान का डिंगल पिंगल काव्य साहित्य रचने में चारण कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | राव मालदेव के दरबार के कवि आशानन्द चारण बड़े भावुक व निर्भीक प्रकृति व वाक् पटु व्यक्ति थे |

जैसलमेर जाकर उन्होंने किसी तरह अपनी वाक् पटुता के जरिए उस रूठी रानी उमादे को राजा मालदेव के पास जोधपुर चलने हेतु मना भी लिया और उन्हें ले कर जोधपुर के लिए रवाना हो गए | रास्ते में एक जगह रानी ने मालदेव व दासी भारमली के बारे में कवि आशानन्द जी से एक बात पूछी | मस्त कवि कहते है समय व परिणाम की चिंता नहीं करता और उस निर्भीक व मस्त कवि ने भी बिना परिणाम की चिंता किये रानी को दो पंक्तियों का एक दोहे बोलकर उत्तर दिया -
माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण |
दो दो गयंद न बंधही , हेको खम्भु ठाण ||

अर्थात मान रखना है तो पति को त्याग दे और पति रखना है तो मान को त्याग दे लेकिन दो-दो हाथियों का एक ही स्थान पर बाँधा जाना असंभव है |

अल्हड मस्त कवि के इस दोहे की दो पंक्तियों ने रानी उमादे की प्रसुप्त रोषाग्नि को वापस प्रज्वल्लित करने के लिए धृत का काम किया और कहा मुझे ऐसे पति की आवश्यकता नहीं | और रानी ने रथ को वापस जैसलमेर ले जाने का आदेश दे दिया |
बारहट जी (कवि आशानन्द जी) ने अपने मन में अपने कहे गए शब्दों पर विचार किया और बहुत पछताए भी लेकिन वे शब्द वापस कैसे लिए जा सकते थे |
रूठी रानी के बारे में पिछली पोस्ट पर संजय व्यास ने दासी भारमली व बाड़मेर के कोटड़ा के स्वामी बाघाजी राठौड़ के बीच प्रेम कहानी की विस्तृत जानकारी देने हेतु अपनी टिप्पणी में अनुरोध किया था सो अगली पोस्ट में उस इतिहास प्रसिद्ध खुबसूरत व चर्चित दासी भारमली व बाघजी राठौड़ की प्रेम कहानी पर चर्चा की जाएगी |



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10टिप्पणियाँ

  1. bhaayi raajsthan ki khaaniyaan jn jn tk phunchane kaa achchaa kaam liya he hm bhi aapke sath he mubark ho. aktar khan akela kota rajsthan

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  2. रूठी रानी के बारें बहुत सुंदर और रोचक जानकारी मिली. शुभकामनाएं.

    रामराम

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  3. ye kahani to m pahali bar pad rahi hu hukum .....thnx aap bhut hi rochak jankari dete h.

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  4. इतिहास का एक रोचक संस्मरण बताया है | इसके लिये आभार |

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  5. रूठी रानी की कहानी जानी ....
    रानी थी आखिर ...रूठी ही रही !

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  6. राजकवि तो चापलूस हुआ करते थे। आशानन्द जी तो बड़े खरे बोलने वाले निकले!

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