राजस्थान की रानियों के रोचक पत्र : कहानी जनानी ड्योढ़ियों की

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जनानी ड्योढ़ी के रीतिरिवाज और रहन-सहन आदि के नियम बंधे हुए थे। राजमाताऐं अथवा रानियों के भोजनालय, पोशाकों, उनके निजी सेवकों के वेतन आदि की राशि निश्चित होती थी। और जहां राजकोष से नकद में न देकर जागीर के रूप में देने की व्यवस्था होती थी, वहां उनके जागीरदारी के ग्रामों के प्रबन्ध के लिए कामदार, तहसीलदार, तालुकदार और कणवारिये आदि कर्मचारी नियुक्त रहते थे। अनेक राजमाताऐं राजकार्यो में पूरा-पूरा दखल रखती थी और पुरुषों के समान अनेक समस्याओं, राजनैतिक ग्रंथियों को सुलझाने में बड़ी दक्ष होती थीं। शाहपुरा के राजाधिराज जगतसिंह की माता खंगारोतजी प्रखर बुद्धि और समय पर निर्णय लेने में बड़ी चतुर थी। खंगारोतजी जयपुर के डिग्गी ठिकाने के ठाकुर मेघसिंह की कन्या और राजा अमरसिंह की रानी थी। राजा अमरसिंह के वैकुण्ठवास के बाद उसने अपने बालक पुत्र राजा जगतसिंह के संरक्षक के रूप में रियासत का कई वर्षों तक कार्य सम्हाले रखा था। उसकी सूझ और निर्णायक बुद्धि के चमत्कार के उदाहरण अपने पुत्र जगतसिंह को लिखे गये पत्रों में प्रकट हैं। राजमाताऐं अपने नरेश पुत्रों को किस सम्बोधन तथा पद्धति से पत्र लिखती थीं, यह भी रोचक विषय है। यहां राजमाता खंगारोतजी का एक पत्र दिया जा रहा है। पत्र में मेवाड़ के महागना और उनके उमरावों के बीच अपने अपने अधिकारों के प्रश्न को लेकर उत्पन्न स्थिति का उल्लेख मिलता है। पत्र की भाषा है- 

।। श्रीरामजी ।।

॥ श्री लिछमी नाराऐणजी ॥

सीध श्री श्री वदपुर (उदयपुर) सुभ सथाने अब ओपमा लाऐक लाला श्री जगतसिंहजी जोग्ये लिखत साहिपुरा थे भाभा श्री खंगारोतजी केन वारणा बांचज्यो. अठा का समंचार श्री-जी की क्रपा थे भला छ. थाका भला चाहीज्ये. थे धरणी बात छो. थां वप्रांते काई बात छ. सो कागज म (में) मनुहार कठा तक लीखा. अप्रच नानाजी गुमानस्यंघजी नवनंगर ( नवानगर ) साहिब नख (नखै) गीआ अर दन ७ सात ताई वुठ रहर साहेब सु बतलार वतो (वहतो) वुदपुर न (ने) चढ गया अर पाछ (पाछे) सु साहेब को खत मार (म्हारे) नाव आओ (आयो) जीं की नकळ वतरांर थांका कागद म (में) बीड्यो छ सो आछ्या बांच’र वाकब हो लीज्यो. थे पर कासीरामजी अरजनजी भगुतस्यंघजी स्मेचार बाच अर आछ्या बतळा लीज्यो. अर थाक (थांक) नाव ( नांव) बी (भी) साहिब को खत भेज्यो बताव छ. जीं म (में) थान (थांने) वुदपुर सु पाद रा साहेब नख बलाआ बताव छ. अजमेर सो मारो (म्हांरो) लखबो ओही छ सो सारा थान (थॉन) अरज कर अर दरबार पादरा ले जाबा की कह तो थे बीजनस जाव ज्यो मती. ऐक बार पादरा अठ ही आवज्यो. अर पादरा भूल चूक कर परा गआ छो तो कोई जुबान थांन (थांने) दरबार साहेब न ( ने) कवाडला घर बाका कहबासु थे कोई जुबान काड दयोला तो थान जनम दुख रहलो. अर आ जुबान पाछी नही आवली (आवैली) अर फैर ह तीन जुबान लखु छु. जी की पूरी नंग राखज्यो. ऐक तौ अज्मेर मत जाज्यो साहब नख पादरा अर ऐक राणाजी का रुप्या वदारा (उधारे) लीज्यो मती. अर तीजा आखर राणोजी कोई बी मंडाव तो मांडज्यो मती ई की पूरी आद राखज्यो. र बलदेवजी नेगी न (ने) वा कुरणी न (ने) लरा (लारां) देतो ल (ले) आज्यो मती. अर ब्याव का दन (दिन) जाबक थोड़ा रहगया छ अर था आय्या बना (बिना) बी त्यारी होऐली नहीं. जींसु बेगा आवज्यो. कसनगढ सु फैरु असवार कागद लेर (लेकर) आय्यो छ. अर दुजी दुजी बी बोल्याँ बोल छ. या सावा थे नहीं परणास्यो तो ओवठ (ओवठें अन्य जगह) परण जासी. वुठ ज्यो सारो काम कल्याण होऐ छ जींसु थे बेगा आबा की कीज्यो ओर साहेब को खत आय्यो र नानाजी की नकल अठ (ठ) बी भेजज्यो. ओर गजमलजी का गुमासता डोड्या आऐर आ अरज कराई सो माका (म्हांका ) रूप्या राजाजी उ बगला म (में) वुबा राख पर ले लेस्या. अर बड़ली न (ने) बगाड़ी जसी तर (तरह) साहेपुरा न (ने) बगाड़ देस्या।

फागुरण सुदी ८ शुक्रवार संवत् १९०८ का

जनानी ड्योढ़ी के पत्रों में पति-पत्नी के प्रेमपत्र, ननद-भावज के हँसी ठिठोली के पत्र, सालाहेली-ननदोही के मीठे चुटकीले पत्र, साली जीजा के व्यंग्य पत्र और समधिनों के विनोदपूर्ण पत्र विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं। यहां समधिनों के पत्रों में महारावराजा रामसिंह की सास और उनकी महारानी शेखावतजी की माता के नाम बूंदी से लिखित एक पत्र प्रवलोक्य है

सिध श्री सूरजगढ़ महासुभसथानेक सरब ओपमां बिराजमान लायक ओपमां सोभायमान राज्य श्री व्याहणजी बीकानेरीजी बिहायणजी मेड़तणीजी बिहायणजी जागरणजी जोग लिखायतं गढ़ बूंदी सु लिखावतं बिहायणजी श्री राणावतजी बिहायणजी श्री सोसोदणीजी बिहायणजी श्री जोधपुरीजी को मिलर आसीस बचावसी. घणा रेत सु अठाका समाचार भला छँ श्रीजी की किरपा सु राज्य रा सुख समाचार सदा सरबदा दिन प्रत घड़ी घड़ी का आवे तो म्हांने परम आणंद होवे. अप्रंच कागद आायो समाचार बाँच्या खुसी हुई वा मिळबा को सो सुख हुवौ. डील को जाबतो रखावज्यो. डीलां पाछै सारी बात छै. म्हांकै तो थां धणी बात छो. थां सिवाय दूजी बात न छँ. सगा छो सो हित करि कागद भेज्यो सो खुसी हुई. या लिखी सो गोबिंदसिंघजी का ब्याव को. ब्योहार भेज्यो छँ सो आप ज्यू तो छं नहीं सो या बात थांका कैवा कि न छै. थांने ब्यौहार भेज्यो कारिज सिर सो घणू चोखो छँ. बू (बहू) वासतें लिखी सो ये भोळा छं सो की सरम छै सो म्हांकै यां सिवाय कांई देखणों छं. सगां की वेटी छँ, सो घणा चोखा छं. म्हांको बिसवास न छँ तो थां म्हां (माता) छो सो आवो बेटी नखै. मां बेटी नखे राज्यो. म्हां बी मीळांगा तो कुसी होस्यां. माफक सारी तरं सु सतकार करांगां. या बिचारो-

दोहा

पाती पियारी व्याहरण की, बांची चित्त लगाय ।

मन असौ सुख ऊपज्यौ, मानंु व्याहण मिळी आय ॥

व्याणजी थें अति बड़ा, महमां कही न जाह ।

थांके आद नाद सूं, बडा सगा पतिसाह ।।

ब्याहण थें तो सुघड़ हो, पढ़ा कोक रस रीत ।

परख परखबो पुरस नुं, पारत परदै प्रीत ॥

जम्मेरी रौ राज कै, घरणौ सुण्यो ब्यौपार ।

ब्याहृणजी हे लावज्यो, म्हां लेसी सिरदार ।।

हद सूं दारू दोवड़ा, मांजू री मनुवार ।

ब्याहणजी थां लीजियौ, महा हेत बीचार ॥

ज्यांसुं ब्रछ सुहावणां, ज्यां बिन सोभा जाय ।

सो तुम हम कु भेजियौ, प्रत हित उर फैलाय ।।

तुम तो जांन सुजांन हो, जानत हो सब रीत ।

ऐसी सदा निभावज्यौ, ब्याया सूं आ प्रीत ।

सिवाय कांई लिखूं. अठा सारू काम होय सो हेत इखळास करि लिखोगा. अठै घर थांको जगुगा. कांई तरै की अंतर दुजायगी न जाणुंगा. बावरता कागद समाचार हितकर लिखोगा.

मीती सांवरण सुद १२ सं. १८०४ का.

यहां हमने जनानी ड्योढ़ी के कुछ पत्र प्रस्तुत किये हैं। पत्र रानियों के शासन-व्यवस्था संचालन में योगदान पर प्रकाश डालते हैं।

लेखक : सौभाग्य सिंह शेखावत (पुस्तक : "राजस्थानी निबंध संग्रह" - हिंदी साहित्य मंदिर, गणेश चौक, रातानाडा जोधपुर द्वारा 1974 में प्रकाशित) 


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