History of Khoor Thikana ठाकुर श्याम सिंह खूड़ ठिकाने के संस्थापक

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History of Khoor Thikana. Thakur Shyam Singh Shekhawat Founder of Khoor Thikana :  खण्डेला के राजा वरसिंहदेव के पुत्र श्यामसिंह डीगो के चौहानों के दौहित्र थे । वि.सं. 1709 में खण्डेला से उनको आजीविका के रूप में अन्य सात गाँवों सहित ग्राम (सूजास) सूजावास मिला था। उनके अन्यतम भ्राता अमरसिंह को भी लोसल वि.सं. 1709 में दिया जाने का उल्लेख है।

कासली का परगना राव तिरमल को मिला था। राव तिरमल की मृत्यु के बाद कासली का परगना उनके पुत्र गंगाराम के अधिकार से निकल गया था। तिरमल अनौरस (खतरानी से उत्पन्न) पुत्र पूरणमल को भी बादशाह जहांगीर ने तिरमल की मृत्यु के कुछ वर्ष बाद कासली कस्बा कुछ अन्य ग्रामों के साथ जागीर में दिया था। परन्तु इस परगने के अनेक ग्रामों पर पड़ौसी महत्वाकांक्षी एवं साहसी लाडखानियों तथा गिरधरदासोतों ने अधिकार कर के अपनी जागीर में मिला लिया था।

राजा गिरधरदास के पुत्र शूरसिंह ने बीडोली, गोठड़ा, सूंडा का बास आदि ग्राम दबा लिये। राजा द्वारकादास के द्वितीय पुत्र विजयसिंह को उनकी मनसब की जागीर में माण्डोता ग्राम के साथ इस क्षेत्र के अन्य ग्राम भी मिल गये थे ।

उस अव्यवस्था एवं अराजकता का लाभ उठा कर श्यामसिंह वरसिंहोतसांग ने उक्त क्षेत्र के खूड़, बानूड़ा आदि 12 ग्रामों पर अपना अधिकार कर लिया। श्यामसिंह ने अपने पुत्र रघुनाथसिंह को सूजास में रखा और स्वयं अपने अन्य पुत्रों के साथ ग्राम खूड़ में आकर रहने लगे। उस काल में यहाँ के अधिकांश ग्रामों पर टांक राजपूतों का अधिकार था जिनको यहाँ से निकालकर श्यामसिंह ने इन ग्रामों को अपनी जागीर में मिला लिया।

खूड़ के ठा. श्यामसिंह ने हुडील चारनबास के जगराम कविया पुत्र आनन्द राम को ग्राम झुनकाबास सांसण में दिया था।

कविता

ताम्बा पतर तिकाह, सुरियंद कीधा स्याम सी । जैसूं फेर जिकाह, रखवालो भड़ राजसी ॥ 1

पट्टो कवि पातांह, कर दीनौ मोतीह कर । अम्मर अंखीयातांह, रखवालो भड़ राजसी ॥ 2

सांसण दीना स्याम, अपदत परदतं उदक । दूधी न दै दांम, रखवालो भड़ राजसी ॥ 3 ॥ 

नरियंद जसनां मांह, कर अमर करणेश तण । गढ़वाड़ां गां मांह, रखवालो भड़ राजसी ॥ 4

ठा. स्यामसिंह वरसिंहदेवोत खूड़ का ताम्र पत्र :-

सिधश्री म्हाराज्ये श्री स्याम स्पिंय जी वचनार्थ मोजा बानूड़ा व जीणवास में धरती बीघा 501 ) अंके बीघा पां सौ ओक उदिक स्वामीजी श्री बालकस्नजी नै दीन ही सो ठाकुर के भोग लगावो आसीरवाद देवो मिती म्हा बुदी 5 सं. 1736 का ।

आसोज सुदी (सप्तमी ) एकादशी वि.सं. 1754 को सूबा अजमेर के तत्कालीन मुगल सूबेदार अब्दुल्ला उर्फ मियाँ खाँ ने खण्डेला के राजा केशरीसिंह पर बहुत बड़ी सेना के साथ आक्रमण किया था । ग्राम हरिपुरा के इस रक्त रंजित युद्ध में राजा केशरीसिंह आचूडान्त शौर्य प्रदर्शित करते हुए झुंझार हुए थे । उक्त भीषण युद्ध में खूड़ के स्वामी श्यामसिंह और दाँता के स्वामी रतनसिंह अमरसिंहोत ने भी राजा केशरीसिंह खण्डेला के केसरिया ध्वज के नीचे खड़े होकर मुगलों से युद्ध लड़ा था। राजा केशरीसिंह के वीरगति पाने के बाद श्यामसिंह खूड़ एवं रतनसिंह दाँता दोनों जीवित बचकर लौट आये थे। 

हरिपुरा के युद्ध में श्यामसिंह लड़े थे तथा जीवित लौट आये थे। अत: उनका निधन उक्त युद्ध के बाद ही किसी समय हुआ होगा। श्यामसिंह के पुत्र बिहारीसिंह का सांगलिया जाने का समय वि.सं. 1755 माना जाता है। इस आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि अपने पिता की मृत्यु के बाद ही वह सांगलिया गये होंगे। ठा. श्यामसिंह के तीन ठुकरानियाँ थी ।

(1) मानकंवर रायसिंह सरदारसिंहोत माधोदासोत मेड़तिया ग्राम रियां (मेड़ता ) की पुत्री ।

(2) साहकंवर - जगरूपसिंह मदनसिंहोत गौड़ सरवाड़ (किशनगढ़) मारोठ की पुत्री 

(3) लालकंवर - जसवन्तसिंह उदयसिंहोत जोधा धनोप ( शाहपुरा ) की पुत्री । 

श्यामसिंह के पाँच पुत्र थे-

1. किशोरसिंह जेष्ठ पुत्र थे अतः अपने पिता की मृत्यु के बाद खूड़े के स्वामी बने 

2. मुकन्दसिंह को ग्राम सुरेड़ा (मोहनपुरा) आजीवितका के रूप में दिया गया। मुकन्दसिंह सूजावास में रहे। उन्होंने दो विवाह किये। उनके बीदावतजी तथा उदावतजी दो ठुकरानियाँ थी । मुकन्दसिंह के (1) सुखसिंह, (2) रामसिंह, (3) त्रिवेणीसिंह, (4) माधवसिंह चार पुत्र थे । इन चारों भाइयों की संताने पूर्व में हैं।

3. रघुनाथसिंह से सूजास का अधिकार छूट जाने के बाद वह खूड़ आये तब उनको ग्राम दूधवा की जागीर दी गई।

4. गजसिंह को जागीर के रूप में गोड़ियावास दिया गया।

5. बिहारीसिंह को आजीविका के रूप में ग्राम सांगलिया में 52 हजार बीघा भूमि का स्वामित्व मिला।

ठा. श्यामसिंह की स्मृति में खूड़ स्थित ठिकाने के श्मशानघाट में चार खम्भों की छत्री विद्यमान है।

सन्दर्भ पुस्तक : "गिरधर वंश प्रकाश : खंडेला का वृहद् इतिहास" 

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