History of Taratara Math : तारातरा मठ का इतिहास

Gyan Darpan
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बाड़मेर जिला मुख्यालय से लगभग 32 किलोमीटर दूर है तारातरा गांव।  इसी गांव में स्थित है एक अद्भुत,  रमणीय,  भक्तिभाव से ओतप्रोत एक दिव्य तपोस्थली।  जिसका अस्तित्व रामायण काल से बताया जाता है। जैसलमेर के पत्थर से बना यह मठ एक शानदार महल नजर आता है।  मठ के मुख्य द्वार पत्थर के बने हाथी इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाते हैं। 

मठ में यहाँ के संतों की सुन्दर समाधियां बानी है।  श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बड़े बड़े कक्ष और भोजन शाला सहित अन्य सुविधाएं बनी है। भोजन शाला में हर आगुन्तक के लिए भोजन की व्यवस्था होती है।  चूँकि यहाँ बड़े बड़े लोगों का आनाजाना रहता है अत : उनके आवास के लिए वातनाकुलित कक्ष भी बने है।  

तारातरा मठ के प्रतिष्ठापक थे पूज्य महंत श्री जैत पुरी जी महाराज। जैत पुरी जी महाराज चौहटन मठ के महंत पूज्य श्री जुगत पुरी जी महाराज के शिष्य थे। जो भ्रमण करते हुए तारातरा गांव की पहाड़ी पर पहुंचे । नैसर्गिक सौंदर्य लिए यह पहाड़ी क्षेत्र गांव  से लगभग दो किलोमीटर दूर है।  इसी पहाड़ी पर जैत पुरी महाराज को एक छोटी सी गुफा और उसके पास एक नैसर्गिक जल स्रोत दिखाई दिया ।  छोटा सा यह जल स्रोत देखने में कलश की आकृति का नजर आता है जिसमें बारह मास पानी भरा रहता है।  पास ही में एक जाल का पेड़ था, बस अब महाराज को क्या चाहिए, तपस्यालीन होने के लिए गुफा, आराम करने के लिए छाया और पीने के लिए जल स्त्रोत ।

इस स्थान को स्थानीय निवासी गोम ऋषि के आश्रम या गोमरख धाम के नाम से जानते थे। वर्तमान में इस स्थान को महंत प्रताप पुरी जी महाराज ने विकसित किया है जिसकी सुंदरता देखते ही बनती है।  जिसका वीडियो हमारे चैनल पर पहले से उपलब्ध है। 

जैत पुरी जी महाराज ने इसी पवित्र जगह तपस्या शुरू कर दी। एक दिन शिकार की तलाश में चांदा मीणा नामक व्यक्ति जल स्रोत में पानी पीने आता है और जैत पुरी जी महाराज को तपस्या में लीन देखता है। जैत पुरी जी महाराज के आशीर्वाद से चांदा मीणा के जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल जाती है, जिसे सुन अन्य लोग भी महाराज श्री के दर्शन लाभ लेने आने लगते है। 

चांदा मीणा वहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए घास फूस की एक झोपड़ी बनाता है, दिन में वह बनाता है और दूसरे दिन आकर देखता है तो टूटी मिलती है, चांदा मीणा फिर बनाता है अगले दिन फिर टूटी मिलती है।  कई दिन यह क्रम चलने के बाद वह जैत पुरी जी महाराज को घटनाक्रम बताता है।

तब जैत पुरी जी महाराज उसी झोपड़ी के पास रात्रि में रुकते हैं तब एक साधु आकर उनसे मिलते है, रात्रि पर्यन्त दोनों संतों के मध्य धर्म और योग पर चर्चा चलती है। प्रात :  अपने गंतव्य पर जाते वक्त उक्त संत जिनका नाम गोम ऋषि था, जैत पुरी जी महाराज को बताते हैं कि यह सदियों से मेरी तपोस्थली है, मैंने अपने योगबल से अपना शरीर बनाये रखा है और अपनी योग साधना अनवरत रखी है। आप शरीर बदल बदल कर साधना कर रहे हैं और आपकी तपोस्थली यहाँ थोड़ी दूर है। 

गोम ऋषि ने हाथ का इशारा कर जैत पुरी जी महाराज को उनकी तपोस्थली की दिशा बताते हुए और उसका नक्शा और पता बताया और कहा कि  अज्ञान, अन्याय, अभाव को मिटाने और  जन कल्याण हेतु वहां एक मठ की स्थापना करें। 

जैत पुरी जी महाराज ने तारातरा गांव के पास उनकी बताई जगह खुदाई की तो उनका चेतन धूणा, चिमटा, पावड़ी और पूजा सामग्री मिली। इस तरह अपने युगोयुगीन साथ रहे महात्मा के आदेश को शिरोधार्य कर जैत पुरी जी महाराज ने विक्रम संवत 1901 यानि 1844 ई. के उत्तरार्द्ध में तारातरा मठ की प्रतिष्ठापना की। जो आज सामाजिक समरसता का केंद्र है। अपने खास सेवक चांदा मीणा को भी महाराज श्री ने आत्म ज्ञान कराया। चांदा भील  समाधी भी महाराज की समाधी के पास ही है जो सामाजिक समरसता की प्रतीक है।  जैत पुरी जी महाराज ने विक्रम संवत 1911 में हजारों लोगों की उपस्थिति में समाधी ली। 

जैत पुरी जी महाराज ने लोक कल्याण हेतु अनेक चमत्कार किये जिनकी चर्चा कभी अन्य लेख  में। 

जैत पुरी जी महाराज के बाद शांति और क्रांति के उपासक पूज्य महंत श्री श्याम पुरी जी महाराज तारातरा मठ की गद्दी पर अभिषिक्त हुए।  आपका अवतरण यानी जन्म बीकानेर राजघराने से संबंधित राठौड़ परिवार में हुआ था। आप भी अपने गुरुवर की भांति उच्च कोटि के सिद्ध साधक त्रिकालदर्शी थे। तारातरा गांव के निकट आकोड़ा गांव में एक राजपूत युवक की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी आयु प्रदान कर उसे जीवित किया और अपनी देह वहीं त्याग दी। 

पूज्य महंत श्री श्याम पुरी जी महाराज के समाधिस्थ होने के बाद ज्ञान कर्म भक्ति के समन्वय पूज्य महंत श्री विजय पुरी जी महाराज तारातरा मठ के महंत के रूप में अभिषिक्त हुए।  स्वामी जी का अवतरण यानी जन्म बाड़मेर जिले के लीलसर ग्राम के किसान परिवार में घमण्डा राम जी चौधरी की धर्म परायण धर्म पत्नी की कोख से हुआ था। आपने भी अपनी साधना, योगाभ्यास से लोक कल्याण एवं लोकोपकार के कई कार्य किये।  आपको भी भूत - भविष्य और वर्तमान की समग्र जानकारी थी।  ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं। आपके चमत्कारों पुत्र पुत्रियां प्राप्ति के आशीर्वादों की कई सच्ची कहानियां प्रचलित है। समाधी लेने के वक्त आपने विशाल भंडारे का आयोजन किया और सभी साधु संतो को बुलाया, उसी समय की एक घटना घटी। 

पूज्य महंत श्री विजय पुरी जी महाराज ने समाधिस्थ होने से पहले धर्मोपदेश कर अपने शिष्य पूज्य श्री तेजपुरी जी महाराज को मठ के महंत के रूप में अभिषिक्त कर दिया था। साधुता के सार्थकता पूज्य महंत  श्री तेजपुरी जी का अवतरण नागौर जिले पांचला ग्राम में गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपने पूर्ववर्ती गुरुओं के भाँती आप भी चमत्कारी पुरुष थे।  विक्रम संवत 2001 के आश्विन शुक्ला द्वादशी के दिन राणी गांव के राजपूतों द्वारा प्रदत खेत से अश्वारूढ़ होकर मठ पधार रहे थे तो रास्ते में अपने भक्त और क्षेत्र के मौजिज व्यक्ति चौधरी उमाराम जी सियाग के घर आये, घर आते ही रोना धोना सुना और पूछा तो पता चला चौधरी जी गुजर गए। 

चौधरी के गुजरने की सुनते ही महाराज के मुंह से निकला - उमो क्यों जावै ? गांव रो मुखिया हो। म्हां  बाबा रो कांई  है ? म्है म्हारी उम्र उमा नै देवूं।  ऐसा कहकर महाराज श्री ने धुप किया, ध्यान किया और उमा राम जी जीवित हो गए और महाराज ने  मठ में आकर आत्म समाधि ग्रहण की और इहलोक से परलोक की यात्रा पर निकल गए।  

पूज्य महंत  श्री तेजपुरी जी महाराज के बाद पुरुषार्थ एवं परोपकार के प्रतीक पूज्य महंत धर्मपुरी जी महाराज तारातरा मठ के महंत बने।  आपका अवतरण जालौर जिले सुराचंद सूतड़ी  ग्राम के प्रभुभक्त हेमाराम जी राईका के घर हुआ था।  

संवत 2017 में गुढ़ामालानी के मेहलू ग्राम में भयंकर महामारी फैली थी, जिसमें रोजाना आठ - दस व्यक्ति बीमारी से ग्रस्त हो रहे थे। कोई उपाय न देख ग्रामीणों ने  महंत धर्मपुरी जी महाराज को बुलाया। महाराज ने गांव में पहुँच कर गांव के श्मशान में बैठकर ध्यान किया और उपस्थित ग्रामीणों से कहा कि  जब मैं यहाँ योग ध्यान में रहूं तब तक कोई मुझे स्पर्श नहीं करें और वे ध्यान साधना में बैठ गए, कुछ समय बाद एक व्यक्ति आया और प्रणाम करने हेतु उनके चरण स्पर्श कर लिए। 

महाराज जब ध्यान से उठे तो उन्होंने कहा कि अब गांव में इस बीमारी से तो कोई नहीं मरेगा, पर मेरा शरीर स्पर्श करने के कारण मुझे अपना शरीर त्यागना पड़ेगा।  उसके बाद उन्होंने धर्मोपदेश देकर वहीं  समाधिस्थ हो गए यानी अपने प्राण त्याग दिए।  

पूज्य महंत धर्मपुरी जी महाराज के बाद अध्यात्म के कीर्ति स्तम्भ पूज्य श्री मोहनपुरी जी महाराज तारातरा मठ के महंत के रूप में अभिषिक्त हुए।  आपका अवतरण चुतरा राम जी देवासी की धर्मपरायण पत्नी रम्भादेवी की कोख से सन 1935 को हुआ था।  आप चार वर्ष की आयु में ही गुरुवर की छत्रछाया में रहने लग गए थे। गुरु के सानिध्य में ही आपने प्रारंभिक शिक्षा के साथ ही अध्यात्म और योग के गूढ़तम रहस्यों को जाना।  योग की चारों प्रवर्तियों  ज्योतिष्मती, रसवती, स्वर्षवती और गंधवती से आप भिज्ञ थे। 

आपने भारत भ्रमण करते हुए हिमालय की नैसर्गिक वादियों में गुफाओं के प्रकाश में योग साधना की।  आपने कई लोगों के असाध्य रोग ठीक किये। संतान विहीन कई लोगों को आशीर्वाद देकर संतान दी और अपने योग एवं साधना के बल पर कई चमत्कार दिखाए तभी तो क्षेत्र की जनता आपको आज भी मालाणी के महादेव के नाम से सम्बोधित करती है।  

आपके जीवन की क्षेत्र में इतनी कहानियां प्रचलित है जिनकी जानकारी हम आपको अलग वीडियो में देंगे क्योंकि पूज्य श्री मोहनपुरी जी महाराज का व्यक्तित्व और कार्य क्षेत्र इतना विशाल है जिस पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। आपके बाद तारातरा मठ की महंत की गद्दी पर अभिषिक्त हुए पूज्य महंत प्रतापपुरी जी महाराज के मठ में आगमन की घटना की कहानी भी आपके चमत्कार से जुडी है। 

पूज्य श्री मोहनपुरी जी महाराज के समाधिस्थ होने के बाद धर्म, संस्कृति एवं राष्ट्र के अनन्य उपासक पूज्य महंत श्री प्रतापपुरी जी महाराज तारातरा मठ के महंत पद पर अभिषिक्त हुए।  वर्तमान में आप पोकरण विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर विधायक का चुनाव भारी मतों से जीत कर विधायक है। 

आप बाल्यावस्था में ही पूज्य महंत श्री मोहनपुरी जी महाराज के पावन सानिध्य में चले आये थे। आप बाल्यकाल से ही मेधावी छात्र रहे।  अपनी मेधाशक्ति का परिचय आपने विद्यालय में सदैव अव्वल रहकर दिया।  बाल्यकाल से ही आप स्वामी विवेकानंद, लाल बहादुर शास्त्री, भगत सिंह आदि के जीवन से प्रभावित रहे इसलिए आप पर राष्ट्रवादी विचारों का जबरदस्त प्रभाव रहा।  इसी दरम्यान आपने राष्ट्रीय स्वयं सेवक की कार्यप्रणाली को देखा और उससे प्रभावित होकर मठ में शाखा लगानी शुरू की। 

गुरु कृपा से आपने भी कई सिद्धियां प्राप्त की और आपके दिए आशीर्वाद फलीभूत हुए जिनके वीडियो पहले ही हमारे चैनल पर उपलब्ध है।  आपने सनातन धर्म और गौ संरक्षण के लिए अद्भुत कार्य एवं संघर्ष किया है आपने नेतृत्व क्षमता और त्वरित निर्णय की अद्भुत शक्ति है शायद यही कारण है कि पोकरण की जनता ने आपको अपना विधायक चुना। 

पूज्य  महंत श्री प्रतापपुरी जी महाराज के जीवन पर हम एक अलग लेख  में विस्तार से जानकारी देंगे तब तक बने रहे हमारे साथ। ..



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