उदाजी राठौड़ के बाद
उनके पुत्र राव खींवकरण जी जैतारण के शासक हुए, आपको बता दें शेरशाह सूरी और
जोधपुर के राव मालदेव की सेना के मध्य सुमेल गिरी में इतिहास प्रसिद्ध युद्ध लड़ा
गया था, यह युद्ध क्षेत्र राव खींवकरण जी के राज्य में था | इस युद्ध के लिए
जोधपुर की सेना के सात सरदारों के नेतृत्व में अलग अलग भाग बनाये गए, जिनमें एक
सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व राव खींवकरण जी ने किया था | राव खींवकरण जी के बारे में
इतिहास में लिखा है कि उन्होंने अपने पिता के सामने ही वीरता के ऐसे प्रदर्शन किये
थे कि मारवाड़ में उनकी तलवार की धाक जम गई थी |
इतिहास प्रसिद्ध गिरी
सुमेल युद्ध में राव खींवकरण जी ने मारवाड़ की रक्षार्थ अपने प्राणों का बलिदान
किया था | रायपुर गढ़ में संरक्षित यह जिरह बख्तर राव खींवकरण जी का ही बताया जाता
है जिसे पहन कर उन्होंने गिरी सुमेल युद्ध लड़ा था | गिरी युद्ध स्थल
पर शेरशाह सूरी के साथ युद्ध कर अपनी मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने वाले
योद्धाओं के स्मारक बने हैं |
राव खींवकरण के बाद राव रतनसिंह जैतारण के शासक हुए, जिन्होंने मारवाड़ राज्य की ओर से कई युद्धों में भाग लिया | राव रतनसिंह जी के बाद राव कल्याणसिंह जी हुए जिन्हें मारवाड़ राज्य की विशिष्ट सेवाओं के बदले वि.सं. 1642 में रायपुर का पट्टा मिला तब उन्होंने रायपुर में गढ़ बनवाया और अपना ठिकाना कायम | राव कल्याणसिंह जी के बाद समय समय पर हुए यहाँ के शासकों ने इस गढ़ में अलग अलग निर्माण कर इस गढ़ का विस्तार किया इसमें खुबसूरत महल बनवाये |
यहाँ के हर शासक ने मारवाड़ राज्य के लिए अनेक युद्धों में भाग लिया और वीरता प्रदर्शित की और प्राणों की आहुति दी | वि. सं. 1871 में अमीरखां पिण्डारी ने मारवाड़ में लूटमार मचा रखी थी | तब उसका दमन करने के लिए जोधपुर के महाराजा ने रायपुर के ठाकुर रूपसिंह जी उदावत को भेजा, जिन्होंने अमीरखान से ऐसा युद्ध किया कि अमीरखान के हौसले पस्त हो गए और वो युद्ध के मैदान से भाग खड़ा हुआ |
ठाकुर रूपसिंह जी ने अमीरखान का दमन करने के साथ ही वि.सं. 1873 में सिराईयों का भी दमन किया | सिराईयों ने साचोरी पर आक्रमण कर लूटमार मचा रखी थी | एक बार नबाब अमीरखान ने रायपुर गढ़ पर भी घेरा डाला था पर ठाकुर रूपसिंह जी और उनके योद्धाओं ने उसका डट कर मुकाबला किया और रायपुर गढ़ की रक्षा की आखिर अमीरखान हताश होकर घेरा उठाकर चला गया |
इस तरह रायपुर ठिकाने के हर शासक ने अपने अपने समय पर इतने कार्य किये, जिनका वर्णन करना एक लेख में संभव नहीं है |
यहाँ के शासकों ने जनहित में भी कई कार्य किये | ठाकुर गोविन्दसिंह जी और ठाकुर हरिसिंह जी के समय तो इस गढ़ में एक रसोवडा चलता था, जिसमें प्रजा के लिए मुफ्त खाना बनता था |
रायपुर ठिकाना मारवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था और इस ठिकाने को मारवाड़ राज्य की तरफ से कई अधिकार प्राप्त थे |
इस तरह उदाजी के राठौड़ के वंशज जो उदावत राठौड़ कहलाते हैं की कई पीढ़ियों ने यहाँ शासन किया और आज भी यह विरासत उनके अधिकार में है
तो ये थी मारवाड़ रियासत के ठिकाने रायपुर के इतिहास की जानकारी | रायपुर ठिकाने का इतिहास इतना समृद्ध है कि उस पर कई पुस्तकें लिखी जा सकती है जिसे हमने संक्षिप्त रूप से इस लेख में बताने की कोशिश की है उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आयेगी और हाँ इतिहास का कोई विद्यार्थी इस ठिकाने के इतिहास की विस्तृत जानकारी चाहता है तो किशनसिंह उदावत द्वारा लिखित “उदावत राठौड़ इतिहास” नामक पुस्तक में मिल जायेगी |