राजा मानसिंह आमेर को बेहद लगाव था इस किले से

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अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित होने के कारण राजा मानसिंह को रोहतासगढ़ किले से बेहद लगाव था। अतः मुगल शासन में उस क्षेत्र की सूबेदारी मिलने पर उन्होंने अपना मुख्यालय रोहतासगढ़ को ही बनाया और स्वयं अपनी सेना सहित वहां रहने लगे। दुर्ग के सामरिक महत्त्व को देखते हुए उन्होंने दुर्ग की सुदृढ़ किलबंदी करवाई। चार मंजिला राजमहल बनवाया। पत्थरों पर मोहक पलस्तर और चित्रांकन करवाया। प्रवेश द्वार पर दो सुन्दर गवाक्ष के साथ ही पत्थर के हाथी, प्रहरियों के कक्ष व चबूतरे बनवाये। द्वार पर हाथी बनवाने के चलते द्वार को हाथीपोल के नाम से जाना जाने लगा। 1598 में राजा मानसिंह ने चपटी गुम्बद की छत से बना एक कक्ष बनवाया। किले के तालाबों को गहरा करवाया, उनकी मरम्मत करवाई। राज घाट तथा कठौतिया के पास सुन्दर, सुदृढ़, बेमिसाल बुर्जें बनवाई। उनके काल में दुर्ग का सुनहरा काल था। दुर्ग में कई झीलें व तालाब थे। दुर्ग में ऊपर आबादी रहती थी। यही नहीं इतनी आबादी के लिए संकट में पानी व खाद्य सामग्री की कमी ना हो उसकी व्यवस्था रहती थी। आईने अकबरी में रोहतासगढ़ के बारे उल्लेख है कि परकोटे के भीतर खेती होती थी। इस दुर्ग में जितने महल, बगीचे, शहरपनाह आदि राजा मानसिंह के काल में बने, शायद ही किसी राजा ने बनाये हों।

किले के एक महल की ऊपरी मंजिल में दीर्घा और 17 मीटर लम्बा और पांच मीटर चौड़ा सभाकक्ष है, जिसे तख्त-बादशाही कहा जाता है। इसी तख्त-बादशाही को राजा मानसिंह दीवान-ए-खास के रूप में प्रयोग करते थे। फुलवारी या खान बाग के मध्य दो मंजिला भवन जिसे आइना महल या शीश महल के नाम से जाना जाता है, काफी बड़े बने इस महल में राजा मानसिंह की रानियां रहती थी। इन महलों में हम्माम फारसी शैली पर बने है। यहाँ बने शीश महल की तुलना आमेर किले में बने शीश महल से की जाती है। राजा मानसिंह के आवासीय महल में मुस्लिम शैली के कटावदार आकर्षक मेहराब बने है व शानदार चित्रांकन किया गया है।

ज्ञात हो कि आमेर, अलवर व शेखावाटी के विभिन्न ठिकानों पर कछवाह वंश की राजावत, शेखावत, नरुका, कुम्भावत आदि विभिन्न शाखाओं का देश की आजादी के पूर्व तक अधिकार था। राजस्थान के इन कछवाह शासकों के पूर्वज अयोध्या से रोहतासगढ़, ग्वालियर, नरवर होते हुए राजस्थान आये थे। नरवर के शासक सोढदेव के पुत्र दूल्हेराय ने नरवर से आकर राजस्थान के दौसा, खोह आदि कई छोटे छोटे राज्यों पर अधिकार कर कछवाह साम्राज्य की नींव रखी थी। दुल्हेराय के पुत्र काकिलदेव ने सुसावत जाति के मीणों से आमेर छीनकर आमेर को अपनी राजधानी बनाया। यही कारण था कि आमेर के कछवाहा राजा मानसिंह को रोहतासगढ़ से भावनात्मक लगाव था।

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