सदियों से आरक्षण की बात करने वाले उदितराज को जबाब

Gyan Darpan
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आरक्षण पर जब भी टीवी पर बहस होती है, बहस में हिस्सा लेने वाले धनाढ्य व ऊँचे पद पर पहुँच चुके दलित चिन्तक से सामने वाला पक्ष आरक्षण छोड़ने की बात करता है तो वह सदियों से आरक्षण व्यवस्था पर ज्ञान झाड़ने लगता है| हाल ही एक टीवी बहस में भाजपा सांसद उदितराज से कहा गया कि अब वे सक्षम हो चुके हैं तो आरक्षण छोड़ दे ताकि उस पर किसी गरीब दलित को लाभ मिल सके| इसका सही प्रत्युत्तर देने के बजाय उदितराज वर्ण व्यवस्था का नाम लेते हुए सदियों से क्षत्रियों को राज करने का आरक्षण, वैश्यों को व्यापार करने का आरक्षण, ब्राह्मणों को पढने का आरक्षण की बात करते हुए पहले उनसे आरक्षण छोड़ने के बेतूके तर्क देने लगे|

उनके तर्कों को हम बेतुका इसलिए कह रहें है कि पहले तो ऐसी कोई आरक्षण व्यवस्था थी ही नहीं, और यदि दलित चिन्तक मानते हैं कि वर्ण व्यवस्था आरक्षण पर आधारित थी तब भी अब वर्ण व्यवस्था पर बात करना बेमानी है क्योंकि आज वर्णानुसार कोई कार्य नहीं होता| कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़कर शासन कर सकता है, कोई भी व्यापार कर सकता है, कोई भी शिक्षा ग्रहण कर सकता है| खुद उदितराज आज दलित होते हुए सत्ता में भागीदार है| दूसरा वर्ण व्यवस्था में भी ऐसी कोई आरक्षण व्यवस्था नहीं थी, हिन्दू धर्म ग्रन्थों महाभारत में कर्ण को शुद्र कहा गया, पर कर्ण भी शासक था, एक रियासत का राजा था| रामायण में वानरों को शुद्र या आदिवासी माना जाय तो वे भी शासक थे| ऐसे में इन कथित दलित चिंतकों का वर्ण व्यवस्था के आधार पर आरक्षण की बात करना बेतुकी ही है|

यदि शासन करने का अधिकार क्षत्रियों के पास ही होता तो देश में राजपूत राजाओं के साथ ही जाट रियासतें, अहीर रियासत, गौंड रियासतें, भूमिहार ब्राह्मणों की रियासतें, वैश्य रियासतें नहीं होती| आज आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ लेने वाली मीणा जाति कभी आमेर, झोटवाड़ा, सांगानेर, खोह आदि कई छोटे छोटे राज्यों पर शासन करती थी| “दिल्ली सल्तनत” नामक इतिहास पुस्तक में इतिहासकार डा. गणेशप्रसाद बरनवाल लिखते हैं- “ब्राह्मण-क्षत्रिय के अतिरिक्त पिछड़े वर्ग को भी राजनीति में भाग लेने का अथवा अपनी भूमिका निभाने का अवसर था| सैनिक सेवा किसी वर्ण, उप वर्ण के लिए प्रतिबंधित थी, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता|” लेखक की बात को देश में अहीर, जाट, मीणा, गोंड व अन्य जातियों के राज्य होना साबित करता है कि सैनिक सेवा का भार सिर्फ क्षत्रियों पर नहीं था, जब अन्य जातियों का भी शासन था, वे राजा थे, तो फिर किसी भी दलित चिन्तक यह कहना कि शासन का अधिकार केवल क्षत्रियों के पास था, यानी उनको आरक्षण प्राप्त था जो सरासर झूठ है|

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