राव राजा कल्याण सिंह का जन्म आषाढ वदि 4 सं. 1943 (20जून 1886) को दीपपुरा में हुआ। माधोसिंह के बाद आषाढ सुदि 15, सं. 1979 (1 जुलाई 1922) को सीकर की गद्दी पर बैठे। शासन पर आने के बाद राव राजा ने अपने शासन प्रबन्ध में जन कल्याणकारी कार्यों में विशेष ध्यान दिया। प्रशासन व्यवस्था के लिये अलग अलग कार्यो के लिए अलग अलग विभाग कायम किये गये। गरीबी और बेकारी मिटाने के लिए आर्थिक सुधार किये। स्थान स्थान पर लघु उद्योग धन्धे खोलने का प्रयास किया गया। हाथ करघा, रेशम के कीड़े पालना, सड़कों का निर्माण भूगर्भ की खोज कर धातु आदि का पता लगाना, भवन निर्माण यातायात के साधनों का विकास करना इनके मुख्य कार्य थे। सर्व सुलभ न्याय के लिये अपने इलाके में तहसीलों की स्थापना कर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के न्यायालयों की स्थापना कर और केंद्र में प्रथम श्रेणी के न्यायधीशों की नियुक्ति कर सर्व साधारण के लिये न्याय का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जनरक्षा के लिए पुलिस विभाग की स्थापना की। केंद्र में एक पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट की नियुक्ति की गई। मुख्य क्षेत्रों में पुलिस स्टेशन बनवाकर थानेदारों की नियुक्तियाँ दी गई। इससे जनता में सुरक्षा की भावना बढी।
कृषकों की भलाई के लिए भूमि सुधार किया। भूमिकर के रूप में ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर निश्चित लगान तय किया गया। प्रत्येक कस्बे में कानून विशेषज्ञ, तहसीलदारों की नियुक्तियाँ की गई। इसके नीचे नायब, तहसील, गिरदावर, पटवारी, घुड़सवार, सिपाही आदि रखे गये। पैमाइश विभाग की स्थापना की गई। 7-8 लाख रूपये व्यय कर सारी भूमि की पैमाइश की गई। एक निश्चित अवधि को ध्यान में रखकर किसान को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया। निर्माण विभाग की स्थापना भी की गई। यह विभाग सुन्दर भवनों का निर्माण एवं पुरातत्व अन्वेषण का कार्य करता था। हर्षदेव के मंदिर की खंडित मूर्तियों का संग्रह इसी विभाग की देन हैं। रावराजा ने ग्राम पंचायत और नगरपालिकाओं के निर्माण का कार्य भी किया। अलग से स्वास्थ्य विभाग की स्थापना भी की। आम जनता की चिकित्सा के लिये सीकर में आधुनिक सुविधाओं से युक्त अस्पताल भवन का निर्माण करवाया। जो कल्याण अस्पताल के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। इस अस्पताल में एम. बी. बी. एस. मेडिकल अफसर इन्डोर रोगियों के लिए स्थान, भोजन औषधि आदि का प्रबन्ध करवाया। प्रयोगशाला, एक्स रे आदि सुविधाओं से अस्पताल को सुसज्जित किया।
यहाँ धनाढय सेठों को भी इन कामों को करने के लिये प्रोत्साहित किया गया। पशु चिकित्सा के कार्य भी रावराजा ने करवाये।
शिक्षा के क्षेत्र में भी स्वयं ने स्कूल खुलवाये एवं धनी लोगों को भी इस ओर ध्यान दिलाने का प्रयास किया। ऐसे समय जब रावराजा अपने ठिकाने की प्रशासन व्यवस्था सुधारने और जनकल्याण कारी कार्यों में लगा हुआ था। जयपुर महाराजा ने सीकर तथा अन्य शेखावत शासकों के अधिकार छीनने का कार्य शुरु किया। सीकर राव राजा कल्याण सिंह पर निराधार आरोप लगाये और सीकर के सीनियर अफसर के स्थान पर मिस्टर बूल को सीनियर अफसर बनाकर सीकर भेजा। राव राजा ने इसे स्वीकार नहीं किया। बाद में मिस्टर फोक्स को थोपे जाने की चेष्टा की। पर बाद में ए, डब्ल्यु. टी. वेब को भेजा गया जिसने 14 मई 1934 (वि. 1891) को अपना कार्य भार संभाला। वेब अर्थ का लालची था। पहले राव राजा से कुछ धन का संग्रह किया पर फिर राव राजा सचेत हो गये तो वह रावराजा के विरूद्ध हो गया और जयपुर के अधिकारी वर्ग को सीकर के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिये उकसाता रहा। जयपुर राजा और वेब के अनुचित हस्तक्षेप के कारण सीकर राव राजा व जयपुर राजा के मध्य सम्बन्ध कटु हो गये। वि. 1990 ई. 1933 में मिस्टर विल्स को शेखावाटी के ठिकानेदारो की स्थिति का अध्ययन करने के लिये आयुक्त नियुक्त किया। उसने शेखावाटी के ठिकानेदारों के अधिकारों पर रिपोर्ट दी उसने ठिकानों के अधिकारों के संबन्ध में एक तरफा निर्णय किया। वेब ने इसी आधार पर ऐलान किया कि जयपुर को सीकर में जकात लगाने का अधिकार है। बेव ने अच्छी न्याय व्यवस्था की दुहाई देते हुए दीवानी और फौजदारी अधिकार भी सीकर से छीनकर जयपुर को दिलाने की कोशिश की। परन्तु राव राजा इसके लिये राजी नहीं हुए। जयपुर ने 12 अप्रेल 1937 के आज्ञा पत्र द्वारा सीकर के अधिकार छीन लेने का प्रयास किया। सीकर पर अस्वामिभक्ति का आरोप भी लगाया गया। इन सब कार्य कलापों से सीकर रावराजा व जयपुर राजा के मध्य कटुता और भी बढ़ गई।
इनके अतिरिक्त जयपुर ने सीकर के घरेलु मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। जयपुर ने राजपूत हितकारिणी सभा के नियमों का बहाना बनाकर राव राजा से अपनी सौतेली माँ के अंतिम संस्कार व लड़की के विवाह के व्यय का हिसाब भी मांगा। वि. 1990 में राजकुमार हरदयाल सिंह की सगाई ध्रागध्रा की राजकुमारी के साथ की गई जिसमें रावराजा ने वचन दिया था कि विवाह से पूर्व राजकुमार हरदयाल सिंह को विदेश नहीं भेजा जायेगा। पर वि.सं. 1994, ई. 1937 में वेब हरदयालसिंह को परीक्षा के पूर्व ही मेयों कालेज से जयपुर ले आये। राव राजा को सहन नहीं हुआ। वेब की हरदयाल सिंह के प्रति यह नीति देखकर राव राजा की ठकुराणी साहिबा को बड़ा दुख हुआ और आमरण अनशन शुरू कर दिया। रावराजा ने स्थिति सुधारने का प्रयास किया। पर स्थिति सुधरती नहीं देखी तो रावराजा व राणी के प्रति प्रजा का प्रेम उमड़ पड़ा और हजारों की संख्या में लोग सीकर पंहुच गये। बेब ने उल्टी रिपोर्ट भेजी कि यहां की जनता पुलिस के काबू में नहीं है। जयपुर से शीघ्र सेना भेजी जाये। जयपुर की सेना आई और नगर के बाहर डेरा डाल दिया। जयपुर के अधिकारी रावराजा को जयपुर ले जाना चाहते थे परन्तु प्रजा ने ऐसा नहीं होने दिया क्योंकि प्रजा को जयपुर से भय था कि हमारे राव राजा के साथ अनहोनी घटना न घट जावे। इसके बाद इन्सपेक्टर जनरल पुलिस यंग जयपुर से आ धमके तो स्थिति और बिगडी क्योंकि यंग उनको जयपुर ले जाने के लिये आये थे। ये सब घटनाए सुन सुन कर जनता का अगाध समुद्र उमड़ पड़ा। राव राजा आश्वासन मिलने पर जयपुर जाना भी चाहते थे पर जनता उनकी कार के आगे लेट जाती थी और अनहोनी न हो जाय इस लिये राव राजा को जयपुर नहीं भेजना चाहती थी। अन्त में राजपूताना के रेजीडेण्ट ए.जी.लोथियन के प्रयास से एवं जयपुर के प्रधानमंत्री द्वारा राव राजा की सुरक्षा व सम्मान संबन्धी शर्ते मान लेने के बाद ही राव राजा को अजमेर भेजा गया, वहाँ रेजीडेण्ट ने सुझाव दिया कि वे जयपुर जाकर महाराजा से मिलें। उनका नजर भेंट करें और क्षमा मांगें कि विशेष परिस्थितियों वश वे महाराजा से विलम्ब से मिल सके। वे जयपुर गये पर महाराजा जयपुर ने रावराजा को लिखित आदेश दिया कि वे बिना उसकी लिखित अनुमति के जयपुर राज्य में न रहे। रावराजा आबू पंहुचकर रेजीडेण्ट से मिले। रावराजा इसके बाद अधिकतर दिल्ली में रहे। जयपुर के इस कार्य से सीकर की जनता बड़ी क्षुब्ध हुई। इसके बाद जयपुर महाराजा ने 5 मई, 1938 को एक विज्ञप्ति प्रकाशित की जिसमें कोर्ट ऑफ वार्डस एक्ट धारा 7 के क्लाज बी के सब क्लाज (1) के अन्तर्गत राव राजा को मानसिक दौर्बल्य के कारण असक्षम घोषित किया और 6 मई की विज्ञप्ति के अनुसार सीकर को कोर्ट ऑफ वार्डस के तहत ले लिया गया। जनता मन मसोस कर रह गई। महाराजा तीन वर्ष सीकर से बाहर रहे। इन्होंने एक प्रार्थना पत्र वायसराय के पास भेजा जिसमें लिखा गया था कि मेरे मानसिक दौर्बल्य की सक्षम चिकित्साधिकारी से जांच करवाकर निर्णय देने की कृपा करें। निर्णय राव राजा के पक्ष में होता जानकर जयपुर राजा चिन्तातुर हो उठे और निर्णय से पूर्व ही विज्ञप्ति 5 व 6 को वापस ले लिया। रावराजा भादवा वदि 8 वि. 1998 को सीकर आये तो जनता को अपार हर्ष हुआ। जनता ने राव राजा का बड़ा सम्मान किया। 20 जुलाई 1948 का राव राजा ने उत्साह के साथ सिल्वर जुबली मनाई।
राजकुमार हरदयाल सिंह की पढाई छुट गई थी। कुछ समय सवाई मान गार्ड में रहे। राणा बहादुर शमसेर जंग बहादुर नेपाल की पुत्री से हरदयाल सिंह का संबन्ध तय हो गया और शादी हो गई लेकिन उनकी पत्नी का निधन हो गया। अतः दूसरी शादी त्रिभुवन वीर विक्रमशाह नेपाल की पुत्री के साथ सम्पन्न हुई । राजकुमार हरदयाल सिंह की मृत्यु माघ वदि 13 वि. 2015 को राव राजा कल्याण सिंह के जीवन काल में ही हुई। इनके कोई पुत्र नहीं था। इनकी कंवराणी सीकर रही और सरवड़ी के नारायण सिंह के पुत्र विक्रमसिंह को भादवा सुदि 15 वि. 2016 को गोद ले लिया। राव राजा के दो पुत्रियां थीं। बडी पुत्री फलकंवर का विवाह उम्मेदसिंह नीमाज के साथ व छोटी पुत्री का विवाह चाणोद के कंवर चिमन सिंह के साथ हुआ। राव राजा कल्याण सिंह लोकप्रिय राव राजा थे। इसके साथ वे धार्मिक प्रवृति के शासक थे। वे कल्याण जी के भक्त थे। प्रतिदिन निश्चित समय पर कल्याणजी के मंदिर पंहुचते थे ऐसे धर्म शील व कर्तव्य परायण राव राजा का नवम्बर 1967 वि. 2024 में देहान्त हो गया। इनकी मृत्यु के बाद विक्रमदेव सिंह सीकर की संपत्ति के स्वामी हुए।