इस राजपूत रियासत के राजा का राजतिलक होता है जाट के हाथों

Gyan Darpan
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सोशियल मीडिया में कुछ जाट-राजपूत युवा आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए एक दूसरी जाति के राजाओं के प्रतिकूल टिप्पणियाँ करते अक्सर पढ़े जा सकते है| पर उन्हें मालूम ही नहीं कि कथित आजादी यानी सत्ता हस्तांतरण के बाद ही वोट बैंक की राजनीति ने दोनों जातियों के मध्य कटुता बढ़ाई है| इससे पहले राजपूत काल में दोनों जातियां एक दूसरे पर निर्भर थी, एक दूसरे की पूरक थी| इतिहास में ऐसी अनेक घटनाएँ दर्ज है जो जाट-राजपूत जातियों के मध्य परस्पर मधुर सम्बन्धों की जानकारी देती है| ऐसी ही एक राजपूत राज्य की परम्परा की जानकारी हम देने जा रहे है, जिसे पढने के बाद आपको पता चलेगा कि आजादी पूर्व राजपूत शासनकाल में राजपूत राजा जाटों को कितना महत्त्व देते थे|

जी हाँ ! हम बात कर रहे है बीकानेर राज्य के राजाओं के राजतिलक परम्परा की| बीकानेर रियासत में यह परम्परा रही है कि बीकानेर राज्य की राजगद्दी पर बैठने के लिए किसी भी राजा का राजतिलक गोदारा खांप के जाट के हाथ होगा| यह परम्परा आज भी चली आ रही है| बेशक आज राजाओं का राज नहीं है, पर बीकानेर के पूर्व राजपरिवार में यह परम्परा आज भी निभाई जाती है|

आपको बता दें बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीका राठौड़ ने यह परम्परा शुरू की थी| बीकानेर के आस-पास के बहुत बड़े क्षेत्र में जाट स्वतंत्रतापूर्वक कई कबीलों में रहते थे| उस क्षेत्र पर तब तक किसी शासक की नजर नहीं पड़ी थी| आस-पास के छोटे शासक या पशु लुटेरों से काबिले लोग ही अपनी सुरक्षा करते थे| जब राव बीका ने उस क्षेत्र में राज्य की स्थापना की तब गोदारा जाटों के मुखिया पांडू ने राव बीका को अपना राजा मानते हुए अधीनता स्वीकार की| उसके बाद पांडू गोदारा के साथ अन्य जाट कबीलों के विवाद में एक छोटे से संघर्ष के बाद राव बीका का क्षेत्र सभी जाटों पर अधिपत्य हो गया| जाटों को राव बीका से सुरक्षा की गारंटी मिल गई और राव बीका को बिना खून खराबा किये राज्य मिल गया|

जब जाटों के सब ठिकाने राव बीका को मिल गए तब राव बीका ने गोदारा जाट पांडू को उसकी खैरख्वाही के बदले सम्मान देने हेतु यह अधिकार दिया कि बीकानेर के हर राजा का राजतिलक पांडू गोदारा जाट के वंशजों के हाथों ही होगा| इस तरह राव बीका ने यह परम्परा शुरू की जो आज भी प्रचलित है|

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