राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि में जन्में वीरों की श्रंखला में राव बीका राजस्थान के इतिहास में राजपूती वीरता का एक जाज्वल्यमान उदाहरण है. राव बीका का नाम इतिहास में उत्कृष्ट वीरता, पितृभक्ति, उदारता एवं सत्यवादिता के रूप में विख्यात है. जोधपुर के स्वामी राव जोधा की सांखली राणी नौरंगदे की कोख से वि.स. 1495 श्रावण सुदि 15 (5 अगस्त 1438) मंगलवार को जन्में राव बीका ने अपने बाहुबल से बीकानेर का राज्य स्थापित कर अपने पैतृक राज्य मारवाड़ से सदा के लिए अपना अधिकार त्याग दिया| बीका के इस कार्य की प्रशंसा करते हुए इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा अपनी पुस्तक “बीकानेर राज्य के इतिहास” में लिखते है-“पिता की इच्छा का आभास पाते ही उसने जोधपुर के राज्य की आकांक्षा छोड़ दी और अपने बाहुबल से अपने लिए एक नया राज्य कायम कर लिया. पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर बड़ा होने पर भी, उसने अपने पैतृक राज्य से सदा के लिए स्वत्व त्याग दिया. ऐसी अनन्य पितृभक्ति बहत कम लोगों में प्रस्फुटित होती है. पिता को दिया हुआ वचन उसने पूर्ण रूप से निभाया और कभी छल या कपट से अपना स्वार्थ सिद्ध न किया.” पितृभक्त होने के साथ बीका को अपने भाइयों से भी असीम प्यार था, जब भी भाइयों को उसकी सहायता की आवश्यकता हुई बीका ने उनकी हरसंभव सहायता की.
बीकानेर राज्य की स्थापना
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है “बीका ने अपने बाहुबल से जांगलू देश पर अधिकार कर नया राज्य स्थापित किया और अपने नाम से बीकानेर नगर की स्थापना कर अपनी राजधानी बनाया. इतिहासकारों के अनुसार एक दिन जब राव जोधा अपने दरबार में बैठा था, तब बीका दरबार में आया और अपने काका कांधल के पास बैठ गया, थोड़ी देर बाद राव जोधा ने देखा कि दोनों कान लगाकर आपस में कुछ बात कर रहे तब राव जोधा ने उनसे पूछा-“आज काका भतीजे में क्या सलाह हो रही है? कहीं कोई नया राज्य जीतने की योजना तो नहीं बन रही?” तब कांधल ने जबाब दिया-“आपके प्रताप से यह भी हो जायेगा.” तब बीका ने कहा-“जांगलू परगना बिलोचों के आक्रमण से कमजोर हो चूका है और सांखले उसका परित्याग कर अन्यत्र चले गए है. यदि आप चाहें तो वहां सरलता से अधिकार किया जा सकता है. राव जोधा को पुत्र बीका की बात पसंद आई और उसने तुरंत बीका को काका कांधल व जांगलू देश से जोधपुर आये हुए नापा सांखला को साथ लेकर नया राज्य स्थापित करने की आज्ञा दे दी.
पिता की आज्ञा प्राप्त कर बीका काका कांधल, नापा सांखला व अपने कई खास सहयोगियों को साथ लेकर मंडोर से देशनोक पहुंचा. जहाँ उसने माता करणी जी के दर्शन कर सफलता का आशीर्वाद माँगा. माता करणी ने भी उसे आशीर्वाद दिया-“तेरा प्रताप जोधा से सवाया बढेगा और बहुत से भूपति तेरे चाकर होंगे.”
बीका ने माता का आशीर्वाद ग्रहण कर अपना अभियान शुरू किया और कई स्थानों पर कब्ज़ा करते हुए कोड़मदेसर में जाकर अपना ठिकाना बनाया. 1478 ई. में जब बीका ने कोड़मदेसर में गढ़ बनवाना आरम्भ किया तो भाटियों ने उस पर आक्रमण किया. हालाँकि इस आक्रमण में भाटियों को हारना पड़ा पर वे बीका को तंग करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे. तब बीका ने किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर गढ़ बनवाने की सोच अपने सहयोगियों से सलाह कर रातीघाटी पर वि.स. 1542 (ई.स. 1485) में किले की नींव रखी और वि.स.1545 वैसाख सुदि 2 (12 अप्रेल 1488) को उस गढ़ के आस-पास अपने नाम से बीकानेर नामक नगर बसाया.
जनश्रुतियों में बीका को यह स्थान करणी माता ने यह कहते हुए बताया था कि-“जब तक तेरी राजधानी इस स्थान पर रहेगी तब तक तेरा राज्य कायम रहेगा.” कहते है आजादी से कुछ पहले बीकानेर की राजधानी उस किले से थोड़ा दूर बने महलों में बदली और कुछ समय बाद देश आजाद हो गया और देशी रियासतों का विलय होने से राजाओं का राज चला गया|
जाटों को अधीन करना
उन दिनों बीकानेर के आस-पास के काफी क्षेत्र पर जाटों का अधिकार था. शेखसर का इलाका गोदारा जाट पांडू व भाडंग का इलाका सारण जाट पूला के अधीन था. इन दोनों में आपस में बनती नहीं थी. पूला सारण की पत्नी ने अपने पति के किसी ताने से आहात होकर पांडू गोदारा को उसे ले जाने को आमंत्रित किया तब पांडू जाट के कहने पर उसका पुत्र नकोदर पूला की पत्नी मल्कि को उठा लाया. जब घटना का पूला को पता चला तो उसने आस-पास के जाटों को पांडू पर चढ़ाई के लिए आमंत्रित किया पर पांडू द्वारा पहले ही राव बीका की अधीनता स्वीकार कर उसकी सुरक्षा हासिल करने के चलते किसी की पांडू पर आक्रमण की हिम्मत नहीं पड़ी फिर भी पूला सिवाणी के नरसिंह जाट को साथ लेकर पांडू पर चढ़ा. लेकिन जैसे ही बीका को इसकी सूचना मिली उसने इस जाट को घेर लिया और नरसिंह जाट को मार दिया. नरसिंह जाट के मरते ही अन्य जाट भाग खड़े हुए और पूला आदि कई जाटों ने बीका से क्षमा याचना करते हुए उसकी अधीनता स्वीकार कर ली. इस तरह बिना ज्यादा रक्त-पात बहाये राव बीका ने जाटों के अधीन इस भूमि को अपने राज्य में मिला लिया और गोदारा पांडू को उसकी खैरख्वाही के बदले बीका ने यह अधिकार दिया कि बीकानेर के राजा का राजतिलक पांडू गोदारा के ही वंशजों के हाथ से हुआ करेगा और यह प्रथा अब तक प्रचलित है.
अन्य सैनिक अभियान
बीका ने सिंघाने पर चढ़ाई कर उसके जोइया स्वामी को अपने अधीन किया तो खीचीवाड़े के स्वामी देवराज खींची को मारकर उसका राज्य अपने राज्य में शामिल किया. पूंगल के भाटी शेखा को अपने अधीन करने के साथ खड़लां के ईसरोत को मारकर उसके इलाके को अपने राज्य में मिलाने के साथ ही बीका ने धीरे-धीरे जांगलू प्रदेश के लगभग पुरे क्षेत्र पर अधिकार कर लिया. बाघोड़ों, भूटों, बिलोचों को पराजित किया व हिसार के पठानों की भूमि छीनकर बीकानेर में मिलाई. ख्यातों के अनुसार बीका ने देरावर, मुम्मण-वाहण, सिरसा, भटिंडा, भटनेर, नागड़, नरहड़ आदि स्थानों पर आक्रमण कर उनका अधिग्रहण किया साथ ही नागौर पर चढ़ाई कर उसे दो बार जीता. कहते है उस काल बीका की आन 3000 गांवों में चलती थी. पंजाब तक पहुंचे उसके राज्य की सीमओं का चालीस हजार वर्ग मील में फैले होने का इतिहासकार अनुमान लगाते है.
मृत्यु
बीका के मृत्यु स्मारक शिलालेख पर अंकित तिथि के अनुसार बीका का निधन आषाढ़ सुदि 5 वि.स. 1561 (17 जून 1504) को हुआ.
संतति
बीका के दस पुत्र हुए-1. नरा, 2. लूणकर्ण, 3. घडसी, 4. राजसी, 5. मेघराज, 6. केलण, 7. देवसी, 8. विजयसिंह, 9. अमरसिंह, 10. वीसा
राव बीका के निधन के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र नरा बीकानेर की गद्दी पर बैठा पर कुछ माह बाद ही उसका देहांत होने के बाद राव लूणकर्ण बीकानेर की राजगद्दी पर आसीन हुआ.
Rao Bika History in Hindi, Bikaner History in Hindi