चालो खेत सुवावणा, झिल्ली री झणकार |
बाजरियो झाला दिवै, मारगियो मनवार ||२७४||
सुहावने खेतों में चलो जहाँ झींगुर की झंकार गूंज रही है | बाजरे के सिट्टे हिल हिल कर संकेतों से बुला रहे है तथा खेत का मार्ग आने की मनुहार कर रहा है |
हींड़ो लूमै होड सूँ, तीज तणों त्युंहार |
सखियाँ मारै कोरड़ा, पिव रो नाम पुकार ||२७५||
तीज के त्यौंहार पर सखियाँ होड से झुला झूल रही है तथा एक दूसरे को अपने अपने पति का नामोच्च्चारण कराने हेतु कोड़े मार रही है |
बजै नगारा पीर नभ, मुख बीजल मुस्कान |
रिम झिम आभै उतरी, बिरखा बहु समान ||२७६||
आकाश जिसका पीहर है ,वहां गर्जना रूपी नगारे बज रहे है व् जिसकी मुस्कान से बिजली चमकती है ऐसी दुल्हन वर्षा आकाश से रिम-झिम करती हुई धरती पर उतर रही है |
डर मत बिरखा बिनणी, सासरियो सरताह |
कोमल रज कांटा नथी, धरती पग धरताह ||२७७||
हे वर्षा बहू ! तुम धरती पर उतरते हुए डरो नहीं | तुम्हारी ससुराल सब प्रकार से संपन्न है | यहाँ की मिटटी कोमल है और कहीं कांटे नहीं है |
काली कांठल घोर रव, सज धज बिरखा साज |
जाणे गढ़ गिरनार सूँ, उतरी कामण आज ||२७८||
उमड़ते -घुमड़ते काले बादलों के रूप में प्रचंड गर्जना के साथ सज-धज कर वर्षा वधू आई है | ऐसा लगता है ,जैसे गढ़ गिरनार से कोई कामिनी उतरी हो |
मटमैली सासू धरा, रुखा सूखा केस |
आई बिरखा बिनणी, लाई नूतन बेस ||२७९||
पृथ्वी रूपी सास, बिरखा -बिनणी (वर्षा वधू) के आगमन से पूर्व मटमैली और रुक्ष केशों वाली थी | अब वर्षा वधू उसके लिए नया परिधान लायी है |(वर्षा धरती को हरियाली से आच्छादित कर देती है )
लेखक : स्व.आयुवानसिंह शेखावत