वीरता का प्रतीक समझा जाता था गणगौर लूटना

Gyan Darpan
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राजस्थान में गणगौर पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता रहा है| रियासत काल में गणगौर रियासत व शासक की प्रतिष्ठा से जुड़ी रही है, तो दूसरे की गणगौर को लूट लाना वीरों का शगल रहा है| वीर गणगौर को लूट कर लाने में अपनी आन, बान, शान व वीरता का प्रतीक समझते थे और जिसकी लूटी जाती थी उसकी प्रतिष्ठा को आघात लगता था| जोबनेर के सिंघपुरी का रामसिंह खंगारोत मेड़ता की गणगौर उठा लाया था, तो बलुन्दा ठिकाने के स्वामी राव चांदा बूंदी की गणगौर लूट लाये थे| उस काल में छोटे-मोटे ठिकाने की गणगौर लूटने की घटना होना आम बात थी, इसलिए 16 दिन चलने वाले गणगौर पर्व  पर पूजन कार्यक्रम उपरांत गणगौर को कड़ी सुरक्षा के मध्य रखा जाता था|
गणगौर ही नहीं सोलह दिन तक गणगौर पूजने के लिए —-लाने के लिए खेतों में जाने वाली स्त्रियों की रक्षा का भी ख्याल रखना होता था| मालाणी के शासक जगमाल के समय उसकी अनुपस्थिति में अहमदाबाद का सूबेदार गणगौर पूजने गई स्त्रियों को उठा ले गया था| अगले वर्ष गणगौर के समय ही जगमाल के आदमी बदले की कार्यवाही करते हुए अहमदाबाद के बादशाह की पुत्री गिंदोली को उठा लाये| गणगौर पर्व के एक दिन पहले जब जगमाल स्त्रियों की सुरक्षा में तैनात था तभी उसके आदमियों ने आकर उसे गिंदोली भेंट की, जिसे जगमाल ने पत्नी के रूप में स्वीकार किया और उसके स्वागत में उपस्थित महिलाओं ने गीत गाये जो आज भी पर्व के एक दिन पहले गाकर महिलाएं गिंदोली को याद करती है|

एक बार बूंदी के राव जो मेड़ता के जवाई थे, सुसराल आये तो उन्होंने वहां बलुन्दा के राव चांदा की बहादुरी के किस्से सुने, जो उन्हें रास नहीं और अपने हाडा वंश पर घमंड करते हुए कह दिया कि राव चांदा जैसे तो मेरे दरबार में कई है, यदि चांदा ऐसा ही बहादुर है राव चांदा तो बूंदी की गणगौर लूट के दिखाए|”

राव चांदा को जब ये बात पता चली तो उन्होंने वेश बदलकर अपने अपने 24 घुड़सवारों के साथ गणगौर पर्व पर गणगौर पर्व की सवारी से पहले बूंदी में आ कर छुप गए, अपने साथियों से गणगौर की सवारी निकलने वाले मार्ग की अच्छे से छान- बीन कर योजना लूटने की बनाई|

नियत समय पर गणगौर की सवारी निकली, गणगौर माता को सोने के गहनों से सजाया हुआ था| सुरक्षा के लिए भारी भरकम सैन्य दल साथ था| सो चांदा ने भांप लिया कि रास्ते में गणगौर लूटना आसान नहीं है| चूँकि चांदा को पहले ही पता चल गया था कि गणगौर की सवारी को शहर के दूसरे हिस्से में ले जाने के लिए नाव के जरिये नदी पार कर ले जाया जायेगा| अत: राव चांदा अपने चुनिन्दा साथियों के साथ नदी में छुप कर बैठ गए और गणगौर पर्व की सवारी का इंतजार करने लगे|

जैसे ही गणगौर की नाव बीच नदी में आई, नदी में पहले से तैनात चांदा ने नाव पर हमला कर गणगौर लूट ली, और तैर कर नदी के अगले पड़ाव पर तैयार खड़े अपने घोड़ो पर सवार हो कर बूंदी से निकल लिए| इस तरह बूंदी के शासक द्वारा अपने ही एक वीर रिश्तेदार पर व्यंग्य कसना भारी पड़ा| एक व्यंग्य ने बूंदी के शासक की प्रतिष्ठा धूल में मिला दी और बलुन्दा के राव चांदा ने बूंदी के शक्तिशाली हाडाओं की गणगौर लूटकर अपनी वीरता का प्रदर्शन कर साबित कर दिया कि वह एक श्रेष्ठ वीर है|

बूंदी से लूटी वह गणगौर आज भी बलुन्दा ठिकाने में है| राव चंदाजी द्वारा बूंदी राज्य की गणगौर लूट लेने के प्रसंग पर आज भी एक कहावत प्रचलन में है- “हाडा ले डूब्या गणगौर”

इस घटना के बाद बूँदी से जुड़े सभी ठिकानों मे पूरी गणगौर न बनाकर केवल माता जी का चेहरा प्रतिक बनाकर पूजन किया जाता हैं क्योंकि बूँदी की गणगौर तो राव चांदा के महलों में पहुँच गई|
ये राव चांदा का समय 1516 to 1585 AD रहा है, इस घटना का सही समय तो उपलब्ध नहीं है पर ये इसी समय के मध्य की घटना है, उस वक़्त बूंदी के शासक राव राजा सुरजन सिंह थे|

नोट : बलुन्दा ठिकाने के कुंवर राघवेन्द्र सिंह द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर.

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