रावल दूदा भाटी (1319 ई. से 1331 ई.)

Gyan Darpan
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“इण गढ़ हिन्दू बाँकड़ो”
रावल दूदा भाटी (1319 ई. से 1331 ई.)
जैसलमेर का साका (धर्म युद्ध) और जैौहर


जैसलमेर के प्रथम साके में रावल मूलराज और राणा रतनसी ने अलाउद्दीन खिलजी की सेना का सामना किया था इस साके में जौहर हुआ और तत्पश्चात् जैसलमेर पर मुस्लिम राज हुआ। पाँच वर्ष बाद रावल दूदा भाटी वहाँ का शासक हुआ और उसने भी दिल्ली के मुसलमान तुगलक सुल्तानों से जबरदस्त लोहा दिया।
रावल के भाई त्रिलोकसी ने सुल्तान के क्षेत्र में धाड़ा और लूट आरम्भ करा दी और सुल्तान के एक सामन्त काँगड़ बलोच को मार डाला और उसके बहुत से घोड़े ले आए। इसी प्रकार सुल्तान के लिए उन्नत नसल के घोड़े जा रहे थे सो वे भी रावल ने लूट लिए। इसके अतिरिक्त रावल दूदा ने तुगलक के राज्य में इतने बिगाड़ किए कि जिनकी गिनती नहीं।
इस पर मोहम्मद तुगलक ने एक बड़ी सेना को जैसलमेर दुर्ग पर भेजा जिसने गढ़ का घेरा डाला। रावल दूदा ने जौहर और साका करने का निश्चय तो बहुत पहले ही कर रखा था। अब वह मुस्लिम सेना पर रोज धावे करने लगा। बहुत दिनों तक घेरा पड़ा रहा परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। एक दिन दुर्ग के भीतर गन्दे सुअरों के दूध से पत्तले भर के दुर्ग के बाहर फेंकी। इससे मुसलमानों को महसूस हुआ कि अभी तो दुर्ग में दूध दही बहुत है। अतः वे घेरा उठा कर चल दिए। परन्तु देशद्रोही भीमदेव ने शहनाई बजाकर संकेत भेजा कि दुर्ग में रसद समाप्त होने को है। ऐसा भी कहते है कि उसने संदेश कहलवाया था। अतः मुसलमानों ने पुनः दुर्ग पर घेरा डाला।
"रावल जमहर राचियो’’
इस प्रकार रावल ने साका करने का समय जानकर रानी सोढ़ी को जौहर करने की तिथि बताई। रानी ने स्वर्ग में पहचान करने के लिए रावल से शरीर का चिन्ह मांगा तब रावल ने पैर का अंगूठा काट कर दिया। दशमी के दिन जौहर हुआ। रानी ने तुलसीदल की माला धारण की तथा त्रिलोचन, त्रिवदन लिए और 1600 हिन्दू सतियों ने अग्नि में प्रवेश किया। अगले दिन एकादशी को रावल ने साका करने का विचार किया था सो सभी योद्धा मिल रहे थे। एक युवक राजपूत धाडू जो 15 वर्ष का था सो जूंझार होने वालों में से था। उसने सुना था कि कुंआरे की सद्गति नहीं होती है। अतः वह दु:खी हुआ। यह जानकर रावल ने अपनी एक मात्र राज कन्या जो नौ वर्ष की थी से धाडू का विवाह दशमी की आधी रात गए कर दिया। प्रभात होने पर उस राजकन्या ने जौहर में प्रवेश किया।
अब एकादशी की दुर्ग के कपाट खोले गए और 25 नेमणीयात (नियम धर्म से बन्धे) जूझारों के साथ सैकड़ों हिन्दू वीर शत्रु पर टूट पड़े। रावल दूदा के भाई वीर त्रिलोकसी के सम्मुख पाँजू नामक मुस्लिम सेना नायक आया। यह अपने शरीर को सिमटा कर तलवार के वार से बचाने में माहिर था। परन्तु त्रिलोकसी के एक झटके से सारा शरीर नौ भाग होकर गिर पड़ा। इस पर रावल दूदा ने त्रिलोकसी की बहुत प्रशंसा की। कहा इस शौर्य पर मेरी नजर लगती है।

कहते है तभी त्रिलोक सी का प्राणान्त हो गया। इस भयंकर युद्ध के अन्त में 1700 वीरों के साथ रावल दूदा अपने 100 चुने हुए अंग रक्षक योद्धाओं के साथ रणखेत रहे। भारत माता की रक्षा में रावल दूदा ने अपना क्षत्रित्व निभाया और हिन्दुत्व के लिए आशा का संचार किया। रावल दूदा सदा ही अपने को “सरग रा हेडाऊ” अर्थात् स्वर्ग जाने के लिए धर्म रक्षार्थ युद्ध में रणखेत रहने को तत्पर रहते थे। 1. त्रिलोकसी भाटी, रावल के भाई 2. माधव खडहड़ भाटी 3. दूसल (दुजनशाल) 4. अनय देवराज 5. अनुपाल चारण 6. हरा चौहान 7. घारू इस प्रकार जैसलमेर ने 'उत्तर भड़किवाड़' अर्थात् देश के उत्तरी द्वार कपाटों के रक्षक के अपने विरुद को चरितार्थ किया और भारत के प्रहरी का काम किया।

संदर्भ : 1 नैणसी री ख्यात द्वितीय 2- Rajasthan Through the Ages I, Dr. Dashrath Sharma,
लेखक : राजेंद्र सिंह राठौड़, बीदासर
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