दरअसल मेरे द्वारा पंडावाद, कर्म-कांड, ढोंगी बाबा, साधुओं, पंडितों की आलोचना व इन्हीं ढोंगियों द्वारा लिखी गई धार्मिक पुस्तकों (वेदों के अलावा) की आलोचना के चलते मुझे मेरे नजदीकी मित्र व पारिवारिक सदस्य नास्तिक समझते है और इन्हीं सब कारणों के चलते श्रीमती जी को ओम बना धाम पर चलने का सुन आश्चर्य होना लाजिमी था|
करीब ४५ मिनट में हम बाइक की सवारी आराम से करते हुए ओम बना धाम पहुंचे इस बार वहां का दृश्य पूरी तरह से बदला हुआ था, सड़क के पास बना ओम बना का चबूतरा जहाँ २४ घंटे उनकी फोटो व प्रतिमा के आगे हवन चलता रहता था वह चबूतरा ही गायब था उसकी जगह पेड़ के नीचे एक बोर्ड लगा था कि ओम बना का स्थान यहाँ से पास ही स्थान्तरित कर दिया गया अत: पूजा पाठ के इच्छुक भक्तगण वहां पधारें, यही नहीं चबूतरे के पीछे प्रसाद की दुकानों की लगी लाइन भी गायब थी उनकी जगह वहां पेड़ों के नीचे बैठने की व पार्किंग की सुविधाएँ बनी नजर आ रही थी और एक होम गार्ड का सिपाही वाहनों को सही पार्किंग करवाता दिखाई दे रहा था| पूर्व में ओम बना का स्थान सड़क के किनारे सटा होने के चलते वाहनों की आवाजाही में अड़चन होती थी सो उसे वहां से स्थान्तरित कर व्यवस्थापकों ने बहुत अच्छा कार्य किया इससे उधर से गुजर रहे वाहनों को जाम नहीं लगने से निजात तो मिलेगी ही साथ ही सड़क से दूर होने पर भक्तगणों के भी किसी वाहन की चपेट में आने का खतरा टल गया साथ ही सुविधाओं के लिए जगह भी निकल आई|
हमने भी बाइक एक पेड़ की छायां में पार्क कर इधर-उधर नजर दौड़ाई तो सामने ओम बना का नया चबूतरा नजर आया जिस पर उनकी एक बड़ी फोटो व कुछ प्रतिमाएं लगी थी, व उनके सामने पहले की ही तरह ज्योति जल रही थी व हाथ जोड़े लोगों की भीड़ मन्नत मांगते नजर आ रही थी, सड़क के दूसरी और जहाँ पहले से ही एक होटल था के साथ ही प्रसाद आदि की दुकानें स्थान्तरित की हुई नजर आई, पार्किंग स्थल में जगह जगह पीने के पानी के लिए ओम बना के भक्तों द्वारा कोई दस के लगभग वाटर कूलर भी लाइन से लगे दिख रहे थे जिन पर भक्तगण अपनी प्यास बुझाते नजर आये पर पास जाने के बाद पता चला कि किसी भी वाटर कूलर्स में बिजली का कनेक्शन नहीं है शायद अभी वहां बिजली की कोई समस्या हो, हालाँकि कुछ वाटर कूलर्स पर सोलर पैनल जरुर नजर आये| पीने की पानी की ऐसी बढ़िया सुविधा धार्मिक स्थलों पर कम ही जगह उपलब्ध होती है| कुल मिलाकर यात्रियों के लिए पार्किंग, बैठने व पीने के पानी की मूलभूत सुविधाएँ देख मन हर्षित हुआ क्योंकि ज्यादातर धार्मिक स्थलों पर यात्रियों को लुटने पर ज्यादा ध्यान व सुविधाओं पर न के बराबर ध्यान दिया जाता है|
सामने की होटल के पास बनी प्रसाद की दुकानों से प्रसाद लेकर श्रीमती जी के साथ ओम बना के चबूतरे के पास पहुंचे तो देखा रास्ते में एक व्यक्ति राजस्थानी पगड़ी पहने हाथ में थाली लिए आगुन्तकों के तिलक लगाने में लगा था उसकी थाली में रखे दस दस के नोटों का ढेर देखकर हम समझ गए कि ये जनाब भी लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन करने अपनी दूकान लगाये खड़े है वह हमें भी लपेटने के चक्कर था पर वह हमें देखकर ही ताड़ गया कि हम उसके चक्कर में आने वाले नहीं|
श्रीमती जी ओम बना की बाइक जो चबूतरे के पीछे शीशे के फ्रेम में रखी थी पर माल्यार्पण कर हाथ जोड़ अपने आपको धन्य समझ रही थी और हम अपने केमरे में उनके ये यादगार क्षण संजोने में तन्मयता से लगे थे| बाइक की पूजा अर्चना कर श्रीमती जी ओम बना के चबूतरे के चारों और परिक्रमा कर रही भीड़ में शामिल हो गयी साथ ही फोटोग्राफी के लिए उनके पीछे पीछे चलते हमारी भी ओम बना की परिक्रमा पूरी हुई| परिक्रमा कर रही भीड़ में कई नए जोड़े भी हाथों में गठ्जोड़े पकडे परिक्रमा करते व मन्नत मांगते नजर आये|
वापसी में पार्किंग में लगी बैंच पर बैठ सड़क पर आते जाते वाहनों पर नजर डाली तो देखा हर वाहन चालक वहां वाहन धीरे कर ओम बना को प्रणाम करता हुआ अपने गंतव्य की और बढ़ रहा था तो बस चालक पार्किंग में बस खड़ी कर यात्रियों को ओम बना के दर्शन लाभ देने का अवसर देकर अपने आपको धन्य मानते दिखाई दे रहे थे|
हमने अपनी बाइक उठाई और वापस चल दिए जोधपुर की और पर बाइक का स्टेंड ऊँचा कर नियत स्थान पर करना भूल गए पीछे से आ रहे एक छोटे ट्रक वाले ने हमें ओवर टेक करते हुए खिड़की से झांककर ऊँची आवाज में बाइक का स्टेंड ठीक करने की सलाह दी| श्रीमती को उस ट्रक वाले में ओम बना की छवि नजर आई बोली- देखा ना ओम बना ने इस ट्रक वाले के रूप में आकर आपको स्टेंड ठीक करने की चेतावनी देकर आपको इसकी वजह से होने वाली संभावित दुर्घटना से बचा लिया|
ख़राब स्वस्थ्य की वजह से बाइक पर दस किलोमीटर के सफ़र में ही थक चुकी श्रीमती जी ओम बना की आस्था के सैलाब में बाइक पर १३० किलोमीटर की यात्रा पूरी करने में ऐसे सफल रही मानों वे एकदम स्वस्थ हो !!
नोट : अगली जोधपुर यात्रा के बाद ओम बना के एक ऐसे भक्त से परिचय कराया जायेगा जो किसी मामले में अरब देश में गिरफ्तार हुआ, उसके हिसाब से उसके बचने के कोई चांस नहीं थे आखिर उसने ओम बना को याद किया और दो दिन बाद वह अप्रत्याशित तरीके से बरी हो भारत आ गया| जोधपुर में अतिक्रमण हटाने वाला दस्ता अतिक्रमण हटा रहा था उसके आगे लगी सभी थड़ीयां हटाई जा चुकी थी अब उसी की हटाने की बारी थी वह कहता है मैं ओम बना को याद कर रहा था कि उसकी रोजी रोटी बचा ले, तोड़ फोड़ दस्ता उसकी थड़ी तक आया ही था कि जोधपुर की एक विधायिका सूर्यकांता व्यास मौके पर विरोध करने आ गयी और उसकी एक मात्र थड़ी बच गई| इसे कोई आस्था की शक्ति कहे या कुछ और पर वह व्यक्ति इन सब के लिए ओम बना का आभारी है|
राम राम सा...वाकई इस भारत भूमि का कण कण शंकर हैं मानो तो गंगा जी ना मानो तो बहता पानी, और आस्था तो पत्थर में भी प्राण फूंक देती हैं..जय भरत माता, वन्देमातरम...
जवाब देंहटाएंकाफ़ी कुछ सुना है इस बारे में, आस्था श्रद्धा को जन्म देती है और श्रद्धा से काम भी बन जाते हैं, यह मूल थ्योरी मानी गई है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Jai Ho Om Banna Ham Sab Bakhto Ka Saat Dena
जवाब देंहटाएंआस्था ही मन की शक्ति होती है ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: दीदार होता है,
दुनिया में समय का ग्राफ , चाहे वो उम्र भर को हो महीने या दो चार दिनों या फिर चार छह घंटे का , ऊपर नीचे आता रहता है ---
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन के ठीक पहले जो सामने आ जाए उसे हम अच्छा या बुरा मान लेते हैं .. आस्था तक तो ठीक है , अंधविश्वास की उत्पत्ति भी खतरनाक होती है !!
सही कह रही है संगीता जी आप !
हटाएंप्रगाढ़ आस्था होने पर देवीय शक्तियां मन स्तथी में संबल ,आत्मविश्वास व् सकारात्मकता के भाव उत्पन्न करती है ।ॐ बन्ना के दर्शन लाभ करने का सौभाग्य अभी प्राप्त नहीं हुआ ।
जवाब देंहटाएंरोचक तथ्य..
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंहमारी समझ नहीं आया भाई जी ...
जवाब देंहटाएंहाँ श्रद्धा का सम्मान अवश्य करता हूँ !
शुभकामनायें !
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (06-05-2013) के एक ही गुज़ारिश :चर्चा मंच 1236 पर अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें ,आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ
चोटिला के राजा कि बात ही निराली है
जवाब देंहटाएंजय हो ओम बन्ना सा की
jay om bana sa
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