निबटने (शौच जाने) का खर्च खाता

Gyan Darpan
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रामगढ़ शेखावाटी कस्बे के पास एक गांव के पनघट पर पानी भरने आई औरतों में एक औरत का दुखी मुरझाया चेहरा देख दूसरी औरतें उससे कारण पूछ रही थी| हालाँकि वह औरत अपना दर्द उनसे बांटना नहीं चाह रही थी फिर भी गांव की एक औरत का चेहरा मुरझाया हो तो दूसरी औरतों को चैन कहाँ ?

एक बोली- “कुछ दिन बाद इसकी बेटी की शादी है शायद बेटी के पराये घर जाने से यह दुखी है|”

दूसरी बोली- “बेटी की शादी है इस बात से तो इसे खुश होना चाहिए कि इसकी बेटी का घर बसने जा रहा है और शादी समारोह में सारे रिश्तेदार आयेंगे, नाच गाना होगा, धुमधडाका होगा|”

तभी एक अनुभवी महिला ने पूछा- “कहीं तूं शादी के खर्च को लेकर तो परेशान नहीं ? तेरा पति शादी के खर्च के लिए रूपये की व्यवस्था कर पाया या नहीं ?”

दुखी महिला ने बताया-“हाँ बहन ! यही तो चिंता खाए जा रही है| शादी के कुछ दिन ही बचे है और रुपयों की कोई व्यवस्था नहीं हुई| उधार लेने के लिए भी गिरवी रखने को कुछ नहीं है| जमीन पहले से सेठ जी के यहाँ गिरवी पड़ी है| अब पता नहीं क्या होगा ? कैसे व्यवस्था होगी ?”

एक अन्य महिला ने रास्ता सुझाते हुए कहा- “अपने गांव के बाहर कल ही बागी बलजी-भूरजी ने डेरा डाला है आज भी यही है| तूं उनके पास जाकर अपनी बेटी की शादी में आई इस समस्या के बारे बता| वे जरुर तेरी बेटी की शादी के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था कर देंगे|

दुखी महिला- “सुना है बलजी-भूरजी तो डाकू है| डाकू भला मेरी सहायता क्यों करेंगे ? इनका काम तो लूटना होता है|

सुझाव देनी वाली महिला फिर बोली- “डाकू होते और लूटना ही उनका काम होता तो आज वे रुके नहीं होते गांव को लूटकर रात में चले गये होते| अरे वे बागी है| गोरों के चमचे सेठों को ही लूटते है और लूटा धन अपने पास नहीं रखते जरुरत मंदों को बाँट देते है| धन की भूख होती तो अपनी जागीर, महल, गढ़ छोड़कर यहाँ रेत के धोरों में पड़े रहने के लिए आते क्या ?

महिला को बात जच गई, वह अपना पानी का मटका घर छोड़ सीधे गांव के बाहर बलजी-भूरजी के डेरे जा पहुंची| बलजी-भूरजी के साथियों ने उसे यथा आदर देते हुए उसे बलजी जी मिलवाया|
बलजी ने उसकी समस्या सुनी और पास ही बैठे भूरजी से कहा- “गांव की बेटी सभी की बेटी होती है उसका घर बस जाए यह हर गांववासी कामना करता है| और कन्या की शादी में कन्या दान करने मौका मिलना तो हम क्षत्रियों का सौभाग्य है| आप तुरंत रामगढ़ के किसी सेठ से शादी के लायक रुपयों की व्यवस्था कर इसके घर पहुंचाएं ताकि ये परिवार अपनी बेटी की शादी धूमधाम से कर सके|”

और दोनों भाइयों ने महिला को आश्वस्त कर घर भेज दिया कि शादी के लिए जरुरी धन उसके घर पहुँच जाएगा वह तो बस धूमधाम से शादी करने की तैयारियों में लग जाए|
दूसरे ही दिन सूरज निकलने से पहले ही बलजी भूरजी दोनों भाई रामगढ़ सेठान पहुंचे तो कस्बे के बाहर ही खेतों के रास्ते में एक बड़ा सेठ लोटा लिए शौच के लिए जाता मिल गया| बलजी ने उसे रोककर उस गरीब महिला की बेटी की शादी के लिए धन की व्यवस्था के लिए कहा| सेठ ने थोड़ी आनाकानी की तो भूरजी ने दुनाली बन्दुक की नाल सेठ की खोपड़ी पर रख दी और बोले-
“अब तो शादी में काम चलाने लायक धन नहीं, धूमधाम से शादी करने लायक धन देना पड़ेगा नहीं तो खोपड़ी उड़ा दूँगा|”

सेठ उन्हें व उनके कारनामे जानता था| सो उनके एक आदमी को साथ ले घर आया और मुनीम को बुलाकर उसे तुरंत रूपये दिलवाए|

मुनीम ने रूपये दे बलजी-भूरजी के आदमी को विदा किया और सेठ जी से पूछा कि- ये रूपये किसके नाम लिखने है ?

सेठ जी ने किसी के नाम नहीं लिखने का कहते हुए कहा कि- इन्हें खर्च खाते में डाल दें|

मुनीम ने पूछा- किस खर्च खाते में लिखूं ?

सेठ जी चुप रहे| मुनीम कई दिन पूछता रहा पर सेठ जी हर बार चुप रह जाते| आखिर एक दिन मुनीम से रहा नहीं गया बोला- “सेठ जी ! आपने आजतक बताया नहीं कि वे रूपये किस खर्च खाते में लिखूं ? अब बहीखाते का काम है पुरा तो करना ही पड़ेगा| इसलिए आज आपको बताना ही होगा|”

सेठ जी मुनीम को टालने की कोशिश करते रहे पर मुनीम के ज्यादा जिद करने पर बोले- “ये रूपये निबटने के खर्च खाते में डाल दे और लिख दे कि- सेठ जी लोटा लेकर खेतों में निबटने (टायलेट, शौच) गये थे उस पर ये खर्च आ गया |”

मुनीम को फिर भी समझ नहीं आया और उसने सेठ जी का मुंह ताकते हुए निबटने (शौच, टायलेट) के खर्च का एक खाता खोला और उसमे रुपयों का इंद्राज कर दिया|

नोट :- राजस्थान में शेखावाटी राज्य की जागीर बठोठ-पटोदा के जागीरदार बलसिंह शेखावत व भूरसिंह शेखावत जिन्हें राजस्थान में बलजी-भूरजी के नाम से जाना जाता है ने अंग्रेजों से बगावत कर दी थी और अंग्रेज समर्थक व्यापारियों को लूटकर धन गरीबों में बाँट देते थे| एक तरह से वे शेखावाटी क्षेत्र के रोबिनहुड थे| शेखावाटी क्षेत्र में उनके द्वारा डाले धाड़ों व लूट में मिले धन को गरीबों में बांटने, गरीब कन्याओं की शादियों करवाने, भाई बनकर भाई विहीन महिलाओं की बेटियों की शादियों में भात (मायरा) लेकर आने के कई किस्से आज भी ग्रामीण अंचलों में सुने जा सकते है| उपरोक्त किस्सा भी उन्हीं में से एक है|

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14टिप्पणियाँ

  1. जी, बलजी भूर जी तो राबिनहुड ही थे, पुराने समय के वाकयों को आप रोचकता से सहेज रहे हैं, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. वाह भाई बहुत खूब इतनी पुराणी दादी और नानियो की कहा नि कहा से खोज खोज कर लाते हो
    मेरे नए ब्लॉग पर आप सभी को आमंत्रित करता हूँ
    khotej.blogspot.in

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  3. पहले मानवता कहीं न कहीं सब के अन्दर थी.

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  4. ये कहानी पढ़कर लगता है कि बलजी भूरजी सच में गरीबों और ज़रुरतमंदों के मसीहा थे। कहानी सच में बहुत अच्छी थी। :)

    नया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर

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  5. बढ़िया कहानी। कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारे :- यश

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  6. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 25-02-2013 को चर्चामंच-1166 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  7. बलजी - भूरजी के इस तरह के बहुत सारे किस्से सुनने को मिल जायेंगे ! वाकई गरीबों के लिए मसीहा थे तो व्यापरियों के लिए डाकू थे !

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  8. सटीक अभिव्यक्ति ।
    बढिया कहानी--
    आभार स्वीकारें ॥

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  9. रोचक कहानी है ,,,मेरे दादाजी भी बलजी भुरजी के बारे में बताया करते थे ,,,,मेरा गाँव "तिहावली" रामगढ़ शेखावाटी के पास ही है ,,,इस प्रकार की पुरानी कहानियों को आप जीवित कर रहे हो , बहुत अच्छी बात है ...

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  10. काश बल-भूरजी जैसे डाकू आज होते। निबटने के खाते का नाम मजेदार रहा।

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