साहित्य साधक शाही राजपूत नारियां

Gyan Darpan
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प्रताप कुंवरी भटियानी
यह महाराजा मानसिंह जोधपुर की भार्या और देवावर ठिकाने के ठाकुर गोविन्ददास भाटी की पुत्री थी| इनका विवाह आषाढ़ सुदी 9वि.स.1889 में हुआ था| इन्होंने कुल 15 ग्रंथो की रचना कर सरस्वती के भण्डार की अभिवृद्धि की थी| उपलब्ध कृतियों की नामावली इस प्रकार है- ज्ञान सागर, ज्ञान प्रकाश, प्रताप पच्चीसी, रघुनाथ जी के कवित्त, प्रताप विनय, श्री रामचंद्र विनय, हरिजस गायन, भजन पद, हरिजस, पत्रिका आदि| यह सुशिक्षित नारी रत्न थी| महाराजा मानसिंह के निधन के बाद अहोराम प्रभु की आराधना, वंदना और पूजा में सलंग्न रहती थी| अपने पति के निधन के पश्चात इनका मानसिक संतुलन बिगड गया था| महाराजा मानसिंह के उतराधिकारी तख्तसिंह को यह पुत्रवत प्यार करती थी| इन्होंने अपने एक पद में महाराजा तख़्त सिंह को पुत्र और महाराज कुमार जसवंतसिंह तथा प्रतापसिंह को पौत्र अभिहित किया है और इनके प्रति अपना स्नेह भाव दर्शाया है| यह महारानी बड़ी उदार थी और साधु संतों को भोजन करवाती थी| इन्होंने अपने उपास्य भगवान श्रीराम मंदिर और शिव मंदिर की प्रतिष्ठा की| इस प्रकार वैष्णव और शैव धर्म के प्रति उन्होंने एकात्म श्रद्धा प्रकट की है| यह बड़ी उदार और साधु-सत सेवी थी| इनकी उदारता का परिचय किसी समकालीन चारण कवि कथित इस दोहे से भी प्रकट होता है-

कुंजर दे जस कारने, लाखां लाख पसाव|
महाराणी नृप मानरी, देरावरि दरियाव||

भगवान पतित पावन राम के गुणकीर्तन में अयोधा का विशिष्ट स्थान है| पावस ऋतू में अयोध्या और सरयू की सुषमा निराली ही लगती है| लेखिका द्वारा अवधपुरी का वर्षाकालीन वर्णन देखिए-

अवधपुरी घुमडी घटा छाय|
चलत सुमंद पवन पुरवाई नभ घनघोर मचाय|
दादुर और पपीहा बोलत दामिनी दमक दुराय||

भूमि निकुंज सघन तरुवर में लता रही लिपटाय|
सरजू उमगत लेत हिलोरें निरखवत सियरघुराय|
कहत प्रताप कुंवरि हरि ऊपर बार बार बलिहार||

प्रताप कुंवारी ने जीवन-जगत के प्रति अपनी उदासनीता अनेक पदों में व्यक्त की है| मानव-शरीर का अंतिम लक्ष्य हरि भजन कर मुक्ति पाना है| उनके एक होरी पद में ऐसा ही कुछ वर्णन है|
जैसाकि पूर्व में कह चुकें है प्रताप कुंवरी विदुषी और सुविचार संपन्न नारी थी| होरी पद में उन्होंने अचेतन मानव को इस प्रकार चेताया है|

होरी खेलण री रितु भारी|
नर तन पाय भजन कर हरि को, है औसर दिन चारी को|
अरे ! अब चेत अनारी||

इरान गुलाल अबीर प्रेम भरि, प्रीत तणी पिचकारी|
सास उसास राम रंग भरि भरि, सुरति सरिखी नारी|
खेल इन संग रचारी||

सुलटो खेल सकल जग खेले, उलटो खेल खेलारी|
सतगुरु सीख धारू सिर ऊपर, सत संगति चलि जारी|
भरम दूर कर गंवारी||

ध्रुव प्रहलाद विभिखन खेले, मीरां करमां नारी|
कहै प्रताप कुंवरि हम खेले सो नहिं आवै हारी||

प्रताप कुंवरी के ग्रंथों और पदों का संकलन उनकी सगी भतीजी और महाराजा प्रतापसिंह,ईडर की प्रथम महाराणी रत्न्कुमारी ने प्रकाशित किया था|

प्रताप कुंवरी का देहांत सत्तर वर्ष की आयु में माघ १२ वि.स.1943 में जोधपुर में हुआ था| महाराणी इंद्रकुंवरी जो महाराजा मानसिंह को ही ब्याही थी और प्रताप कुंवरी की छोटी बहन थी, ने प्रताप कुंवरी की स्मृति में पंच-कुण्ड (जोधपुर) स्थित राजकीय श्मशान स्थल पर वि.स.1957 में एक छत्री बनायीं थी|

रत्न कुंवरी भटियानी


भटियानी रत्न कुंवरी महाराजा मानसिंह की महाराणी प्रताप कुंवरी के भाई ठाकुर लक्ष्मणसिंह जाखाणा की पुत्री थी| जब यह केवल पांच वर्ष की थी तब ही महाराजा तख्तसिंह के पुत्र और फिर ईडर के महाराजा सर प्रतापसिंह के साथ विवाह हो गया था| प्रतापसिंह की उस वक्त आयु नौ वर्ष की थी| यह भी अपनी भुआ की तरह सीताराम की उपासिका थी|रत्न कुंवरी के भजन, पद और हरजस रात्री जागरण पर गाये जाते है| इनकी भाषा सरल और भाव सर्वग्राही है| नीचे की पंक्तियों में दो पद देखिए-

मेरो मन मोहयो रंगीले राम
उनकी छवि निरखत ही मेरो बिसर गयो सब काम||

आठो पहर हृदय विच मेरे आन कियो निजधाम|
रतनकुंवरि कहै बांको पल-पल ध्यान करूँ नित साम||

प्रभु-दर्शन की आकांक्षी रत्नकुंवरि की दर्शनाकांक्षा का एक पद पढ़िए-

रघुवर म्हांरा रे म्हांकू दरस दिखाजारे|
तो देखन की चाह बनी है, रुक इक झलक दिखा जा रे|

लाग रही तेरी केते दिन की मीठे बैन सुना जा रे|
रतन कुंवरि तो सों यह विनती एक बेर ढिग आ जा रे||


रणछोड़ कुंवरि बाघेली


बाघेलीजी रीवां राज्य के महाराजा विश्वनाथ प्रसाद के भ्राता बलभद्रसिंह की पुत्री और जोधपुर के महाराजा तख़्तसिंह को स.1861 में ब्याही थी| इनका जन्म १९४६ वि.में हुआ था| राजस्थान की अधिकांश शिक्षित राजपुत्रियों और महारानियों की तरह यह भी कृष्णोपासक महाराणी थी| रणछोड़ कुंवरि की कव्यबंध कोई स्वतंत्र कृति तो उपलब्ध नहीं है परन्तु भागवत धर्म, कृष्ण चरित्र और भक्ति के पर्याप्त कवित्त, पद तथा छंद प्राप्त है| यहाँ “गोविन्द लाल” के भव कष्टोंद्धार की प्रार्थना का एक उदाहरण दिया जा रहा है---

गोविन्द लाल तुम हमारे,
मोहे दुख में उबारे|
मै सरन हूँ तिहारे, तुम, काल कष्ट टारे||

उनके दृष्ट गोविन्द थे| अपने सर्जित छंदों, कवित्तों में इन्होंने बार-बार गोविन्द का स्मरण किया है-

आभा तो निर्मल होय सूरज किरण उगे से,
चित्त तो प्रसन्न होय गोविन्द गुण गाये सें|

पीतल तो उज्जवल रेती के मांजे से,
हृदय में जोति होय गुरु ज्ञान पाये सें||

भवन में विक्षेप होय दुनियां की संगति से,
आनंद अपार होय गोविन्द के धाये से||

मन को जगावो अरु गोविन्द के सरन आबो,
तिरने के ये उपाय गोविन्द मन भाये सें||


विष्णुप्रसाद कुंवरि बाघेली


कवयित्री विष्णुप्रसाद कुंवरि भी बाघेला वंश की कन्या थी| यह रीवां के महाराज रघुराजसिंह की राजकुमारी और जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह के लघु-भ्राता महाराज किशोरसिंह की रानी थी| इनका जन्म वि.स.१९०३ तथा विवाह तिथि १८२१ विक्रमाब्द है| यह रामानुज सम्प्रदाय की अनुयायी थी और कृष्ण इनके इष्ट देव थे| विष्णुप्रसाद कुंवरि सर्जित निम्नलिखित ग्रन्थ मिलते है-

अवध विलास, कृष्ण विलास और राधारास विलास| काव्य में विष्णुकुमारी अपना अभिधान रखती थी| इनकी भाषा बड़ी सरल और वर्णन सरस होते है| पद लालित्य अभिरास है| पाबस कालीन वृन्दावन की छवि का दृश्य एक पद में इस प्रकार वर्णित है-

ब्रन्दावन पावस छायो|
चहुँ दिसि धार अम्बर छाये, नील मणि प्रिय मुख छायो|
कोयल कूक सुमन कोमल के कालिंदी कल कूल सुहायो|

यमुना तट पर रंग-रास का एक अन्य प्रसंग भी देखिए-

जमना तट रंग की कीच बही|
प्यारेजी के प्रेम लुभानी आनंद रंग सुरंग चही||

फूलन हार गुंथे सब सजनी, युगल मदन आनंद लही|
तन मन सुमरि भरमती विव्हल, विष्णु कुंवरि है लेत सही||


प्रताप कुंवरि जाड़ेची


यह जामनगर के महाराजा (जाम) वीभाजी की पुत्री थी और जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह से इनका परिणय हुआ था| इनका जन्म १७९१ वि. में हुआ था|

अन्य राजपूत नारियों की भांति इनकी कविता भी भक्ति से परिपूर्ण ही है| यह श्रीकृष्ण के चतुर्भुज रूप की उपासिका थी| रचयित्री की अधिकतर कविताएँ चतुर्भुज के वर्णन से ही सम्बन्ध है| इन्होंने विनय और स्तुतिपरक हरजस तथा भजनों का सर्जन किया है| अपने भजनों में यह जाम सुता, जाम दुलारी तथा प्रतापकौंर की छाप लगाती थी|
प्रताप कुंवरि की रचनाओं का एक संकलन “प्रताप कुंवरि पद रत्नावली” शीर्षक से प्रकाशित है| यहाँ रचना के दो उदाहरण प्रस्तुत है—

भुज मन नन्द नन्दन गिरधारी|
सुखसागर करुणा के आगर भक्त-वछल बनवारी||

मीरां करमा कुबरी सबरी तारी गौतम नारि|
जाम सुता को स्याम चतुरभुज लेणा खबर हमारी||

एक अन्य पद भी देखिए-

प्रीतम प्यारो चतुरभुज वारो रे|
हिमते होत ण न्यारो मेरे जीवन नंद दुलारो रे||
जाम सुता को है सुखकारो, सांचो स्याम हमारो रे||

इनके कवित्त भी बड़े सरस और सरल है|
कवित्त की एक पंक्ति उद्धृत है-

कहत प्रतापकौंर जानकी दुलारी है||


लेखक : श्री सौभाग्यसिंह शेखावत, भगतपुरा


नोट- साहित्य साधक शाही राजपूत नारियों के परिचय की इस श्रंखला में अगले लेख में कुछ और साहित्य साधक शाही नारियों और राजाओं की रखैलों, पासवानों व पड़दयातों का परिचय दिया जायेगा|


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4टिप्पणियाँ

  1. रचनाओं को साझा करने के लिये आभार,,,,रतनसिंह जी,,,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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  2. ऐसे ही आप हमें भारत की विदुषी नारियों से परिचय करवाते रहे ताकि हम प्राचीन गौरवशाली भारत को ठीक से जान सके ।

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  3. आज हमे जरूरत है ऐसे दुर्लभ साहित्य को सहेज के रखने की।

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