इनका “प्रेम विनोद” नामक एक ग्रंथ प्राप्त है| यह भी निम्बार्क सम्प्रदाय की शिष्या थी| “प्रेम विनोद” की रचना तिथि के आधार पर इनका कार्यकाल विक्रम की १९वीं सदी का पांचवा दशक ठहरता है| छत्रकुंवरी ने प्रेम विनोद काव्य कृति में अपना परिचय इस प्रकार दिया है—
रूपनगर नृप राजसी, जिन सुत नागरिदास|
छत्रकुंवरी मम नाम है कहिबै को जग मांहि|
सरन सलेमाबाद की, पाई तासु प्रताप|
छत्रकुंवरी का वणर्य-विवय कृष्ण और गोपिकाओं की लीला का वर्णन है| श्री कृष्ण के द्वारिका गमन के बाद गोपिकाएँ अपने प्रिय कृष्ण की पूजार्थ सुमन चुनने जाती है, वहां वे कदम्ब तरु शाखाओं से पुष्प चुनती है और प्रिय कृष्ण की स्मृतियों से भाव-विभोर हो जाती है| पुष्प चयन का यह प्रसंग निम्न प्रकार अवलोक्य है-
स्याम सखी हंसि कुंवरिदिस, बोली मधुरे बैन|
यह बिरिया सुख देन, जान मुसकाय चली जब|
नवत सखी करि कुंवरि, संग सहचरि विथुरी सब||
प्रेम भरी सब सुमन चुनत जित तिच सांझी हित|
इसी भाव की चार पंक्तियाँ देखिये-
गरवांही दीने कहूं, इकटक लखन लुभाहिं|
थकित खरी रहि जाहिं, दृगन दृग छूटे ते छूटे|
अंतिम पंक्ति में फूल शब्द श्लेष अलंकार का अच्छा उदाहरण है|
रानीजी की भाषा परिमार्जित और सुष्ठु है| काश! इनकी अन्य रचनाएँ भी मिल जाती तो इनके समग्र कृतित्व से ब्रज भाषा प्रेमी और भक्तजन रसास्वाद का लाभ ले पाते|
राजपूत नारियों की साहित्य साधना श्रंखला की अगली कड़ी में कछवाहों की अलवर रियासत के महाराजा विजयसिंह की रानी आनंद कुंवरि राणावत का परिचय दिया जायेगा|
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बेइंतजामी के कारण न जाने कितने विद्वानों की रचनाओं का लाभ समाज को न मिल सका ..
जवाब देंहटाएंरानी छत्रकुमारी का परिचय अच्छा लगा .. बढिया प्रयास है आपका .. शुभकामनाएं !!
अच्छी शृंखला है.
जवाब देंहटाएंछत्रकुमारी जी के रचनाओं से परिचय करने के लिये आभार,,,
जवाब देंहटाएंआपके इस सराहनीय प्रयास के लिये बधाई,,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
बहुत शानदार शृंखला, आपके सार्थक प्रयास निश्चय ही प्रभावी परिवर्तन पैदा करेंगे।
जवाब देंहटाएंमेरी ओर से ढेरी सारी शुभकामनाएं।