जलाल - बूबना : प्रेम कहानी

Gyan Darpan
5
सिंध के नबाब के दो बेटियां थी| मुमना और बूबना| मुमना सीधी सादी और गृह कार्य में उलझी रहे| बूबना तेज व चंचल, रूप के साथ गुणों का भी खान|सब तरफ उसके रूप और गुणों के चर्चे| नबाब को दोनों बेटियों की शादी की चिंता| पर नबाब चाहता था कि बूबना की शादी उसके माफिक वर से ही होनी चाहिए सो उसने अपने आदमी बुलाये और उन्हें बूबना का चित्र देकर आदेश दिया-
"किसी भी देश जाओ,परदेश जाओं,समुद्र पार करो या रेगिस्तान पार कर एक एक राज्य छान मारो पर बूबना जैसी हूर है उसके लिए वैसा ही छबीला वर तलाशो|

नबाब के आदमी बूबना का चित्र लिए एक राज्य से दूसरे राज्य भटकते भटकते आखिर थटाभखर नामक राज्य में पहुंचे और वहां के बादशाह मृगतामायची के भांजे जलाल को देखा| देखते ही नबाब के आदमियों को पहली ही नजर में जलाल बूबना के लायक लगा उन्होंने जलाल को एक तरफ लेकर बूबना का चित्र दिखा अपनी मंशा जाहिर की जलाल भी बूबना का चित्र देख बूबना के रूप और लावण्य पर लट्टू हो गया और उसे लगा जैसे बूबना उसी के लिए बनी है|
नबाब के आदमी वापस सिंध लौटे और नबाब को जलाल के बारे में बताया|
काछ दृढ, कर बरसणा, मन चंगा मुख मिट्ठ |
रण सूरा जग वल्लभा, सो हम बिरला दीटठ ||

चरित्रवान,दानी,साफ दिलवाला,मीठे वचन बोलने वाला, युद्धों में जीतने वाला, लोगों का प्यारा ऐसे गुण वाला है जलाल| ऐसे गुण वाले व्यक्ति कम ही मिलते है|

जलाल के बारे सुन व उसकी तस्वीर देख सिंध का नबाब भी बहुत खुश हुआ और उसने काजी को बुलाकर थटाभखर जलाल और बूबना की शादी तय करने रवाना कर दिया| उधर बूबना ने भी जलाल का चित्र देख उसे उसी वक्त अपना पति मान लिया आखिर वह छबीला था ही ऐसा|
काजी थटाभखर पहुँच बादशाह मृगतामायची को बूबना का चित्र दिखा जलाल से शादी तय करने हेतु बात की पर मृगतामायची का मन बूबना का खूबसूरत चित्र देखते ही फिसल गया बोला-
'बूबना से तो शादी हम करेंगे काजी साहब|"
साठ साल का बूढा जिसके मुंह में दांत नहीं, पैर कब्र में लटके, और शादी बूबना जैसी जवान और खूबसूरत हूर से करने की मन में| बेचारा काजी घबराया| बादशाह मृगतामायची को उसने बहुत समझाया पर वह कहाँ मानने वाला था और कुछ धन दे काजी को अपनी तरफ कर लिया| काजी ने बूबना की बादशाह से व मुमना की जलाल से शादी तय करदी| जलाल को इस बात का पता चला तो वह भी बहुत दुखी हुआ पर कर भी क्या सकता था आखिर बादशाह का हुक्म भी मानना ही पड़ेगा|

थटाभखर से बारात सिंध आई| लोगों ने देखा एक हाथी पर एक जवान दूल्हा बैठा है और दूसरे हाथी के होदे में एक तलवार रखी है| नबाब ने भी देखा तो उसने काजी को बुलाकर पुछा -
"जलाल मियां हाथी पर बैठे है ठीक है पर दूसरे हाथी के होदे पर रखी इस तलवार का क्या मतलब ?"
तब काजी ने बताया-"कि जलाल की शादी मुमना से व बूबना की शादी बादशाह मृगतामायची से तय की है सो बादशाह ने खांडा विवाह परम्परा से शादी करने हेतु अपनी तलवार भेजी है|"

नबाब को इस बात का पता लगते ही काजी पर बहुत गुस्सा आया वह उसे जो चाहे दंड दे सकता था पर बादशाह मृगतामायची का खांडा बिना बूबना से लौटना आसान नहीं था| मृगतामायची बहुत शक्तिशाली था सिंध का नबाब उससे पंगा ले ही नहीं सकता था| सो उसने मज़बूरी में ही बूबना का निकाह मृगतामायची से कराना मान लिया|
बूबना को जब इस बात पता चला तो उसके बदन में मानों आग लग गयी हो|वह इस खबर से तिलमिला उठी और निश्चय किया कि वह निकाह जलाल से ही करेगी और उसने अपनी एक खास दासी को बुलाकर जलाल के पास संदेश भेज दिया कि वह उसी की है और उसी की होकर रहेगी साथ ही जलाल की तलवार मंगा बादशाह की तलवार की जगह उससे निकाह की रस्म पुरी करली|

लोगों की नजर में मुमना का निकाह जलाल से व बूबना का निकाह बदशाह मृगतामायची से हो गया पर हकीकत कुछ ओर ही थी| मुमना बूबना निकाह होकर थटाभखर पहुंची| बूबना बादशाह के महल में और मुमना जलाल के महल में| दोनों को अलग अलग नौकरानियां अलग-अलग महल और पुरे ठाठ बाट पर मन से बूबना और जलाल दोनों दुखी|
बादशाह मृगतामायची बूबना के महल में कई बार आया पर हर बार बूबना ने कोई न कोई बहाना बनाकर उसे टाल दिया| क्योंकि वह तो अपना पति जलाल को मान चुकी थी और शादी भी जलाल के खांडे (तलवार) से ही की थी सो उस हिसाब से तो वह जलाल की ही बेगम थी| पर दोनों अलग-अलग ,आपस में मिलना तो दूर एक दूसरे को देखना भी ना हो|

उधर जलाल भी बूबना से मिलने को बैचेन उधर बूबना जलाल से मिलने को| आखिर बूबना की दासियों के सहयोग से जलाल छुपकर बूबना के महल में जाने लगा और दोनों आपस में प्रेम मिलन करने लगे| धीरे धीरे ये बात बादशाह की दूसरी बेगमों तक पहुंची और उसके बाद बादशाह तक| एक दिन जलाल बूबना के कक्ष में था और बादशाह अचानक वहां आ गया| बूबना ने अपनी दासी के सहयोग से जलाल को पास ही रखे फूलों के ढेर में छुपा दिया| बादशाह महल में नजर डाल निरिक्षण कर रहा था और फूलों के ढेर में छुपे जलाल की डर के मारे सांसे तेज चलने लगी जिससे फूल हिलने लगे| यह देख बूबना की दासी से रहा नहीं गया और उसने जलाल को ताना देते हुए दोहा कहा---

भंवरा कलि लपेटियो, कायर कंपै कांह |
जो जीयो तो जुग समो, मुवो तो मोटी ठांह ||

"कि भंवरा कलि में फंस गया है, लेकिन बुजदिल काँप क्यों रहा है| अरे डर मत, जिन्दा रहा तो कली का आनंद लेगा, मर गया तो क्या हुआ| प्यारी जगह तो मरेगा|"
दोहा सुनकर जहाँ बूबना मुस्कराई वही बादशाह बोला-" ये दोहा किसको देखकर या किसके लिए था ?"
दासी ने बहाना बनाते हुए बोला-"हुजूर ! कल रात को एक भंवरा बेगम के गजरे के फूलों में बैठ गया था, रात को कली बंद हुई तो बेचारा फंस गया, बस मैं तो उसी का जिक्र कर रही थी|"

यों चोरी छिपे दोनों को मिलते महीनों गुजर गए| उनकी हरकतें बादशाह तक जाती रही पर बादशाह कभी दोनों को एक साथ नहीं पकड़ सका| बादशाह ने जलाल को बूबना से दूर रखने को बहुत पापड़ बेले, कभी शिकार पर साथ ले जाए तो कभी किसी युद्ध अभियान में भेज दे पर दोनों का प्यार कम ना हुआ| शिकार से रात को बादशाह के सोते ही जलाल घोड़ा दौड़ाकर बूबना के महल में आ जाये और सुबह वापस शिकारगाह में| युद्ध अभियान में भी भेजे तो जलाल युद्ध जल्द जीतकर बूबना के लिए जल्द लौट आये|

बादशाह मृगतामायची ने दोनों पर नजर रखने के लिए बूबना को से महल में रखा जिसके चारों तरफ पानी था और पानी के तालाब के बाहर पहरा लगा दिया| पर जलाल तो पहरेदारों को धमकाता हुआ पानी में कूद पड़ा उधर से बूबना उसके लिए नाव ले लायी और अपने महल में ले गयी| अब ये बातें भी बादशाह को पता चलनी थी|
एक दिन बादशाह ने अपनी बड़ी बेगम से चर्चा करते हुए कहा-"जलाल बूबना के किस्से सुनते सुनते मैं तंग आ गया हूँ! ये जलाल मर जाए तो ही इससे पीछा छूटे|"
बेगम ने सलाह देते हुए बादशाह को एक उपाय बताया जिससे काम भी हो जाए और बदनामी भी ना हो|
योजना के अनुसार बादशाह मृगतामायची जलाल को शिकार खेलने के लिए ले गया और उधर अपने आदमी भेजकर महल में खबर फैला दी कि शिकार खेलते खेलते जलाल मियाँ घोड़े से गिर कर मर गए|
पुरे महल में रोना धोना शुरू हो गया| बूबना को भी पता चला तो उसके मुंह से सिर्फ यही निकला-
"हाय जलाल|" और बूबना के प्राण पखेरू उड़ गए|
बादशाह के आदमियों ने आकार बादशाह को बूबना की इस तरह हुई मौत की सुचना दी, जलाल भी वहीँ खड़ा था| सुनकर बोला -
" मेरी मौत की खबर सुनते ही बूबना मर गयी| वाकई वो मुझसे बहुत व सच्चा प्यार करती थी|" इतना कह जलाल भी पछाड़ खाकर गिर पड़ा और पड़ते ही उसके भी प्राण पखेरू उड़ गए|

बादशाह मृगतामायची को अब समझ आया कि प्यार क्या होता है ? उसने हुक्म दिया-----
"ये दोनों सच्चे प्रेमी थे| इन्हें एक कब्र में दफनाया जाय|
कब्र तैयार हुई| बादशाह मृगतामायची कब्र पर फूलों की चादर चढाने आया और घुटने टेक कर उसने खुदा से माफ़ी मांगी- " हे ! परवरदिगार, मैंने इन दोनों सच्चे प्रेमियों के बीच आकार बहुत बड़ा गुनाह किया है, मुझे माफ़ कर देना|"


कहानी की मूल लेखिका डा. लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत है|

एक टिप्पणी भेजें

5टिप्पणियाँ

  1. शेखावत जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'ज्ञान दर्पण' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 24 जुलाई को 'जलाल-बूबना की प्रेम कहानी' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें