पिछले दिनों आपने ज्ञान दर्पण पर कपड़ा छपाई तकनीक के सफर के बारे में पढ़ा| सामान्य ज्ञानवर्धन के लिए आज इसी श्रंखला में चर्चा करते है कपड़े की रंगाई करने की तकनीक के सफर पर-
1- पतीले में रंगाई :- शुरू में कपड़े की रंगाई एक बड़े पतीले में रंग घोलकर उसमे कपड़ा डुबो कर रंगाई का कार्य शुरू हुआ जो आज तक रंगाई की अत्याधुनिक मशीनें आने के बाद भी बदस्तूर जारी है|आज भी आपको इस विधि से कपड़े की रंगाई करते कई रंगरेज दिखाई पड़ जायेंगे|औरतें अक्सर इसी तरह के रंगरेजों से अपनी चुन्नियाँ आदि अपनी पसंद के रंग से रंगवाती है|
औरतें ही क्यों परिधान निर्माताओं का भी इन पतीले वाले रंगरेजों के बिना काम नहीं चलता|परिधान निर्माता अक्सर सेम्पल के लिए विभिन्न रंगों में इन पतीले वालों से कपड़ा रंगवाते है साथ ही जीप,बटन,धागे व पौशाक में लगने वाली कई एसेसरीज ऐसी होती है जिन्हें रंगवाने के लिए परिधान निर्माताओं को इन्हीं पतीले वाले रंगरेजों की सेवाएँ लेनी पड़ती है|परिधान निर्यातकों का तो इन छोटे रंगरेजों के बिना काम ही नहीं चलता|
इस विधि में जरुरत के अनुसार आकार वाले पतीले में रंग घोलकर रंगाई की जाती है चूँकि रंग को पक्का करने के लिए उसे गर्मी की जरुरत पड़ती है इसलिए रंगरेज पतीले को चूल्हे पर चढाकर पानी में घुले रंग को गर्म कर पक्का करने की कोशिश करता है|
2- रंगाई की जीगर मशीन :- चूँकि पतीले में ज्यादा मात्रा में कपड़ा नहीं रंगा जा सकता है अत: मांग बढ़ने पर उसकी आपूर्ति करने के लिए किसी ऐसे मशीन की आवश्यकता थी जो ज्यादा मात्रा में एक साथ कपड़ा रंगने के कार्य को अंजाम दे सके| इसी उद्देश्य के लिए जीगर मशीन का अविष्कार हुआ|इस मशीन में नीचे एक पेटी बनाई गयी जिसमे रंग का घोल भर दिया जाता है तथा मशीन के ऊपर दो गोल रोलर लगाये गए जिनमे से एक रोलर पर कपड़ा लपेट दिया जाता है फिर उसे रंग में डुबोते हुए दूसरे रोलर पर लपेटा जाता है इस तरह यह प्रक्रिया बार बार जरुरत के हिसाब से दोहराई जाती है|रंग के घोल को गर्म करने के लिए मशीन की पेटी के नीचे चूल्हा बनाकर आग जला दी जाती है|
शुरू में जो जीगर मशीने बनी वे हाथ से चलने वाली थी तथा उनकी कपड़े की मात्रा की क्षमता भी कम थी पर धीरे धीरे इन मशीनों का आकार भी बढ़ता गया और ये हाथ के बजाय बिजली की मोटरों से चलने लगी|कारखानों में बोयलर आने के बाद इन मशीनों में रंग के घोल को गर्म करने के लिए चूल्हे की आग की जगह स्टीम ने ले ली|
आवश्यकता के हिसाब से इन मशीनों की क्षमता बढाने के लिए शुरू में इनका आकार बढ़ाया गया|जीगर के बाद जम्बो जीगर बने,सुपर जम्बो जीगर बने और अब तो ये स्वचालित मशीनों में तब्दील हो गए|पर शुरू में हाथ से चलने वाली जीगर मशीनों का औचित्य अब भी बना हुआ है हाँ हत्थी पर जरुर बिजली की मोटर लग गयी है जिससे अब इसे हाथ से चलाने की जहमत नहीं उठानी पड़ती|

औरतें ही क्यों परिधान निर्माताओं का भी इन पतीले वाले रंगरेजों के बिना काम नहीं चलता|परिधान निर्माता अक्सर सेम्पल के लिए विभिन्न रंगों में इन पतीले वालों से कपड़ा रंगवाते है साथ ही जीप,बटन,धागे व पौशाक में लगने वाली कई एसेसरीज ऐसी होती है जिन्हें रंगवाने के लिए परिधान निर्माताओं को इन्हीं पतीले वाले रंगरेजों की सेवाएँ लेनी पड़ती है|परिधान निर्यातकों का तो इन छोटे रंगरेजों के बिना काम ही नहीं चलता|
इस विधि में जरुरत के अनुसार आकार वाले पतीले में रंग घोलकर रंगाई की जाती है चूँकि रंग को पक्का करने के लिए उसे गर्मी की जरुरत पड़ती है इसलिए रंगरेज पतीले को चूल्हे पर चढाकर पानी में घुले रंग को गर्म कर पक्का करने की कोशिश करता है|


आवश्यकता के हिसाब से इन मशीनों की क्षमता बढाने के लिए शुरू में इनका आकार बढ़ाया गया|जीगर के बाद जम्बो जीगर बने,सुपर जम्बो जीगर बने और अब तो ये स्वचालित मशीनों में तब्दील हो गए|पर शुरू में हाथ से चलने वाली जीगर मशीनों का औचित्य अब भी बना हुआ है हाँ हत्थी पर जरुर बिजली की मोटर लग गयी है जिससे अब इसे हाथ से चलाने की जहमत नहीं उठानी पड़ती|




इन मशीनों में ज्यादातर हौजरी का कपड़ा रंगा जाता है| हौजरी के अलावा जोरजट,वायल,क्रेप,कसीदाकारी किये हुए कपड़े आदि इन मशीनों में बढ़िया तरीके से रंगे जा सकते है| बाजार में उपलब्ध रंगीन बनियाने व रंगीन टीशर्ट के बहुधा कपड़े इन्हीं मशीनों में रंगे होते है|

5-जेट मशीन :-जब पोलिस्टर कपड़े का अविष्कार हुआ तो उसकी रंगाई करने के लिए भी मशीनों की जरुरत हुई|उपरोक्त मशीनों में कोटन,विस्कोस आदि के कपड़े तो आसानी से रंगे जा सकते थे पर पोलिस्टर नहीं|क्योंकि पोलिस्टर को रंगने के लिए मशीन के अंदर अत्यधिक तापमान की आवश्यकता पड़ती है|जितना तापमान व दबाव पोलिस्टर कपड़े की रंगाई के लिए जरुरी होता है उतना तापमान व दबाव सोफ्टफ्लो मशीने बर्दास्त नहीं कर सकती|
इसलिए पोलिस्टर कपड़ा रंगने के लिए जेट मशीनों का अविष्कार हुआ इन मशीनों में पोलिस्टर कपड़े को रंगने के लिए जरुरी तापमान व दबाव सहने की क्षमताओं का निर्माण किया गया|
इन जेट मशीनों में पोलिस्टर के अलावा अन्य दूसरे वो कपड़े भी रंगे जा सकते है जो इसमें बने दबाव को झेलने में सक्षम होते है क्योंकि इस मशीन में रंग के घोल में कपड़ा कम्प्रेसर मशीन से बने हवा के दबाव(प्रेशर)से घुमाया जाता है| अत:जो कपड़े दबाव नहीं सह सकते है उनके इस मशीन में फटने की पूरी आशंका रहती है|
6-कपड़ा रंगाई की कंटीन्यूवस मशीन(CDR):- बाजार में कपड़े की लगातार बढती मांग ने कपड़ा रंगाई करने की नई नई मशीनों का अविष्कार करने का भी रास्ता खोला क्योंकि हर कारखाने का मालिक ऐसी मशीन चाहता है जिससे वह कम समय में ज्यादा से ज्यादा मात्रा में कपड़ा रंगने का कार्य कर सके| इसलिए इसी क्रम में लगातार कपड़ा रंगते जाने वाली मशीन का निर्माण हुआ|




धुलने के बाद कपड़ा सिकुड़ता क्यों है,व कपड़े की रंगाई व छपाई के बाद उसे अच्छी तरह तैयार करने वाली फिनिंग मशीनों के बारे में जानकारी अगले किसी लेख में|
यह जानकारी बड़ी ज्ञानभरी थी।
जवाब देंहटाएंसुंन्दर जानकारी...
जवाब देंहटाएंएक ब्लोगर का सम्मान
http://vijaypalkurdiya.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
agar kisi manufacturer ko jaantae haen jo exporter ko regular supply dae sakae to mera email id dae dae atisheeghr
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी, आपके लेख से ज्ञानरंजन हुआ। आभार
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी
जवाब देंहटाएंबेहद महत्वपूर्ण जानकारी
जवाब देंहटाएंपूरा वस्त्र उद्योग.
जवाब देंहटाएंवाह!ज्ञान दर्पण ज्ञानवर्धक जानकारी|
जवाब देंहटाएंसुंदर जानकारी है
जवाब देंहटाएंjankari kafi acchi hai sir
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