फैशन की दुनियां में कपड़ों के रंग और उन पर छपी डिजाइंस का महत्व कौन नहीं जनता पर क्या कभी आपको यह जानने की उत्सुकता हुई है कि आखिर कपड़ों पर छपाई किस तरह और कौन कौन सी तकनीकी से की जाती है आईये आज चर्चा करते है कपड़ों पर छपाई के लिए प्रयोग की जाने वाली तकनीकी विधियों के सफर पर-
१.हाथ से चित्रकारी- यह तकनीकी सबसे पुरानी है जब कपड़ों पर छपाई शुरू हुई तो सबसे पहले इस विधि से कपड़ों पर हाथ से चित्रकारी कर छपाई की जाती थी| और कपड़ा छपाई के लिए नयी नयी तकनीक आने के बावजूद आज तक इस विधि का प्रयोग जारी है आज भी आपको कई घर में महिलाओं द्वारा चित्रकारी किये तकिये,चद्दरें या परदे दिख जायेंगे|यही नहीं आज भी कई लोगों ने हाथ से कपड़ों पर छपाई करने का व्यवसाय अब भी अपना रखा है और उनके द्वारा हाथ से छापे वस्त्रों की देश-विदेश तक बहुत मांग है| कई परिधान निर्यात कंपनियां हाथ से छपाई किये परिधान विदेशों में निर्यात करती है|
२.ब्लोक प्रिंटिंग- कपड़ा छपाई की इस विधि में लकड़े के टुकड़ों पर विभिन्न डिजाइंस बनाकर उन पर रंग लगाकर कपड़े पर ठप्पा लगाकर छपाई की जाती है यह ठीक उसी तरह से होता है जैसे हम किसी कागद पर रबड़ मोहर लगाते है| इस विधि में कारीगर एक बड़े लकड़ी के पट्टे पर कपड़ा फैलाकर उस पर लकड़ी के ब्लोक्स पर बार बार रंग लगाकर ठप्पे लगाते हुए छपाई करता है यह विधि भी कपड़ा छपाई की आधुनिक मशीने आने के बावजूद आज तक सुचारू रूप से प्रयोग की जा रही है| 
राजस्थान में जयपुर के पास सांगानेर,बगरू व कई गांवों के अलावा बाड़मेर,जोधपुर आदि शहरों व उनके आस-पास के गांव में आज भी कई लोगों ने इसे व्यवसाय के रूप में अपना रखा है| ब्लोक्स द्वारा छपाई किये हुए परिधानों की विदेशों में भी बहुत अच्छी मांग है दिल्ली के ज्यादातर परिधान निर्यातक इस विधि से कपड़ा छपवाने जयपुर जाते है| इस विधि से छपाई कर बनाई गयी बाड़मेर की चद्दरों का भी बहुत बड़ा बाजार है जोधपुर के बाजार में उपलब्ध ज्यादातर चद्दरें बाड़मेर में इसी विधि से छपाई कर तैयार की जाती है|
३.टेबल पर छपाई(टेबल प्रिंटिंग)-चूँकि हाथ से और उसके बाद लकड़े के बने ठप्पों से ज्यादा मात्रा में कपड़े की छपाई नहीं की जा सकती| अत:बाज़ार में छपे कपड़े की मांग बढ़ने पर उस विधि की आवश्यकता महसूस हुई जिसके द्वारा ज्यादा मात्रा में कपड़े की छपाई कर मांग की पूर्ति की जा सके अत:ठप्पा छपाई विधि की तरह ही टेबल पर स्क्रीन बनाकर छपाई करने की विधि विकसित हुई| इस विधि में लकड़ी या पत्थरों की लंबी लंबी(लगभग ४० मीटर)टेबलें बनाई जाती है|टेबलों की उपरी सतहों पर मोम लगा दिया जाता है जिससे उस पर कपड़ा आसानी से चिपक जाये| इन टेबलों पर कपड़ा चिपका कर दो कारीगर मिलकर लोहे के फ्रेम से बनी स्क्रीन में रंग डालकर छपाई करते है|डिजाइन के अनुसार जितने रंग होते है उनकी उतनी ही अलग अलग स्क्रीन बनाई जाती है|पर ज्यादा जगह घेरने की वजह से बड़े शहरों में इस विधि का आजकल प्रयोग नहीं किया जाता|राजस्थान में जोधपुर,पाली,बालोतरा आदि जगह हजारों कारखाने है जो आज भी इस विधि से कपड़ा छापने के लिए मशहूर है जोधपुर स्थित टेबल छपाई के कारखाने आज भी देश के परिधान निर्यातकों के लिए पहली पसंद बने हुए है क्योंकि जो छपाई मशीनें नहीं कर सकती उसे करने में वे लोग माहिर है|
4.स्क्रीन प्रिंटिंग मशीन द्वारा छपाई- बाज़ार में छपे छपाए कपड़े की मांग और ज्यादा बढ़ने व छपाई करने वाले कारीगरों की कमी के कारण उपरोक्त तीनों विधियों से छपाई कर कपड़े की मांग पूरी नहीं की जा सकती थी अत:उत्पादन बढाने और कारीगरों की कमी की समस्या से निजात पाने के लिए छपाई से जुड़े लोगों ने एक मशीन ईजाद की जिससे कम कारीगरों से ही ज्यादा मात्रा में कपड़े की छपाई की जा सकती थी|साथ ही यह मशीन टेबलों के बजाय जगह भी कम घेरती है|इस मशीन को फ्लेटबेड मशीन कहा जाता है इसके एक और कपड़े को एक बड़े रोळ में लिपटाकर लगा दिया जाता है जो लगातार छपकर दूसरी और निकलता रहता है|इस मशीन में भी छपाई के लिए टेबल प्रिंटिंग की तरह ही अलग अलग रंगों के लिए अलग अलग स्क्रीन का इस्तेमाल किया जाता है यह मशीन एक तरह टेबल प्रिंटिंग का ही परिष्कृत रूप है इस पर छपाई का तरीका भी टेबल वाला ही है|



राजस्थान में जयपुर के पास सांगानेर,बगरू व कई गांवों के अलावा बाड़मेर,जोधपुर आदि शहरों व उनके आस-पास के गांव में आज भी कई लोगों ने इसे व्यवसाय के रूप में अपना रखा है| ब्लोक्स द्वारा छपाई किये हुए परिधानों की विदेशों में भी बहुत अच्छी मांग है दिल्ली के ज्यादातर परिधान निर्यातक इस विधि से कपड़ा छपवाने जयपुर जाते है| इस विधि से छपाई कर बनाई गयी बाड़मेर की चद्दरों का भी बहुत बड़ा बाजार है जोधपुर के बाजार में उपलब्ध ज्यादातर चद्दरें बाड़मेर में इसी विधि से छपाई कर तैयार की जाती है|







इस विधि में छपाई के लिए कंप्यूटर व एक बड़े प्रिंटर का इस्तेमाल किया जाता है इस विधि में कपड़ा ठीक वैसे ही छपता है जैसे हम अपने कंप्यूटर से प्रिंट निकालते है| हालाँकि इस विधि में उत्पादकता न के बराबर है साथ ही यह बहुत महंगा है इसलिए व्यवसायिक तौर पर इसका प्रयोग सिर्फ सेम्पल बनाने के लिए थोड़ा सा कपड़ा छापने तक ही सीमित है|
कपड़ा छपाई तकनीकी ने अपने सफर में भले ही छपाई की नई-नई विधियों व मशीनों का अविष्कार कर लिया हो पर एक बात सुखद है कि इस उद्योग ने अपनी पुरानी विधियों को आजतक नहीं छोड़ा|छपाई की एक भी विधि आजतक कभी विलुप्त नहीं हुई सभी विधियों की अपनी अपनी प्रसांगिक बनी हुई है|
उत्तरप्रदेश के सिकन्दरा औधोगिक क्षेत्र में एक कपड़ा छपाई कारखाने में रोटरी मशीन पर कपड़ा छापते हुए|
wah, padhkar achchha laga...
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत जानकारी है। छपाई तकनीकों को जानकर प्रसन्नता हूई।
जवाब देंहटाएंजानते हैं सच तभी तो मौन हैं वो,
जवाब देंहटाएंऔर ज्यादा क्या कहें हम कौन हैं वो।
जो हमारे दिल में रहते थे हमेशा-
हरकतों से हो गए अब गौण हैं वो।१।
Good .
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंगंभीर लेखा-जोखा, शोध की गहराई लिए लेकिन सहज.
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी भरी पोस्ट
जवाब देंहटाएंकपडे पर छपाई पर इस शोध परख लेख से अच्छी ज्ञानवृद्धि हुई. बड़े विस्तार से आपने समझाया है. संग्रह करने योग्य आलेख. बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया जानकारी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंछपाई के विषय में अभी तक इतनी बढ़िया पोस्ट पढ़ने नही मिली है. आभार
जवाब देंहटाएंratan singh ji
जवाब देंहटाएंbahhot achha likha hai.....are u textile expert ??
मन की कल्पनाओं को सामने लाने का यत्न मनुष्य सदा ही करता रहा है।
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