
डग भरना सिख रही थी,
भटक कर रख दिया था वो कदम
बचपन के आँगन से बाहर ...
जवानी तक तो मै पहुंची भी नहीं थी कि
तुमने झपट्टा मार लिया उस भूखे गिद्ध की मानिंद
नोच लिए मेरे होंसलों के पंख
मेरे सीने का तो मांस भी भरा नहीं था कि
तुमको मांसाहारी समझ के छोड़ दूं
टुकड़ों मे काट दिया है तुमने मेरी जिंदगी को
अब ना समेट पाऊँगी
अपनी नन्ही हथेलियों से
मेरे मुंह पर रख के हाथ जितना जोर से दबाया था
काश एक हाथ मेरे गले पे होता तुम्हारा
तो ये अनगिनित निगाहे यूं ना करती आज मेरा
बलात्कार के बाद का बलात्कार .
हमेशा की तरह शानदार रचना
जवाब देंहटाएंकुछ कहा ही नहीं जा रहा है, लिखा ही ऐसा है, बेहद मार्मिक
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक अभिव्यक्ति | शानदार |
जवाब देंहटाएंबाद में तो आत्मा की हत्या कर दी जाती है..
जवाब देंहटाएंbilkul satya .....
जवाब देंहटाएंkyaa is kavita ko naari kavita blog par dae saktee hun
जवाब देंहटाएंemail sae swikrtit dae
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंचिट्ठे आपके , चर्चा हमारी
मार्मिक अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंनहीं कहना कुछ ... कुछ भी नहीं
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करती रचना ... और दृश्य जैसे आँखों में तैर गया हो
जवाब देंहटाएंvrtmaan bigdti sanskrti ko darshati ye kavita....kabile tarif....hkm
जवाब देंहटाएंबलात्कार के बाद की त्रासदी क यथार्थ चित्रण |
जवाब देंहटाएंयही तो त्रासदी है …………कुछ कहने को बचा ही नही…………बेहद मार्मिक्।
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करते भाव ......
जवाब देंहटाएंकाश एसी बातें उन तक पहुँच पाती जो इसके जिम्मेदार होते हैं पर फिर सोचती हूँ जिन्हें किसी के एहसास का कोई इल्म ही न हो वो इस दर्द को कहां जान पाएंगे |
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना |
बेहद उम्दा चित्रण किया है आपने |
जवाब देंहटाएंसमाज का एक सत्य व्यक्त करती दमदार रचना।
जवाब देंहटाएंबलात्कार जैसे जघन्य अपराध समाज के लिए कलंक हैं।
जवाब देंहटाएंशव्द नही हे.... मार्मिक....
जवाब देंहटाएंकाश एक हाथ मेरे गले पे होता तुम्हारा
जवाब देंहटाएंतो ये अनगिनित निगाहे यूं ना करती आज मेरा
बलात्कार के बाद का बलात्कार
उषा, तुमने समाज के एक कटु सत्य को उजागर करने का प्रयत्न किया है|
तुम्हारी यह चेष्टा अत्यंत प्रभावकारी है एवं इसके लिए तुम बधाई की पात्रा हो|
इसमें कुछ ऐसा भी जोड़ा जा सकता है:-
और यदि मैं ले लेती निर्णय
कोर्ट कचहरी का दरवाजा खटखटाने का
तो वहाँ शुरू होता बलात्कार का तीसरा दौर|
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जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi kavita hai
जवाब देंहटाएंकमाल की कविता है। एक पीडिता का पूरा दर्द इन पंक्तियों में जिस शैली में रखा गया है,वह अद्भुत है।
जवाब देंहटाएंVery heartrending poem Usha Baisa!! Touching.....
जवाब देंहटाएं,......वर्तमान हालात पे चोट करती हुई बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति...उषा जी..
जवाब देंहटाएंआपकी प्रभावशाली कलम से निकली हुई अदिव्दित्य और असाधारण अभिवयक्ति !! पीड़िता के क्षत विक्षत अवचेतन की मार्मिक चित्कार .......
जवाब देंहटाएंआपकी प्रभावशाली कलम से निकली हुई अदिव्दित्य और असाधारण अभिवयक्ति !! पीड़िता के क्षत विक्षत अवचेतन की मार्मिक चित्कार .......
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