राजस्थान में शेखावाटी राज्य की जागीर बठोठ-पटोदा के ठाकुर बलजी शेखावत दिनभर अपनी जागीर के कार्य निपटाते,लगान की वसूली करते,लोगों के झगड़े निपटाकर न्याय करते,किसी गरीब की जरुरत के हिसाब से आर्थिक सहायता करते हुए अपने बठोठ के किले में शान से रहते ,पर रात को सोते हुए उन्हें नींद नहीं आती,बिस्तर पर पड़े पड़े वे फिरंगियों के बारे में सोचते कि कैसे वे व्यापार करने के बहाने यहाँ आये और पुरे देश को उन्होंने गुलाम बना डाला | ज्यादा दुःख तो उन्हें इस बात का होता कि जिन गरीब किसानों से वे लगान की रकम वसूल कर सीकर के राजा को भेजते है उसका थोड़ा हिस्सा अंग्रेजों के खजाने में भी जाता | रह रह कर उन्हें फिरंगियों पर गुस्सा आता और साथ में उन राजाओं पर भी जिन्होंने अंग्रेजों की दासता स्वीकार करली थी | पर वे अपना दुःख किसे सुनाये,अकेले अंग्रेजों का मुकाबला भी कैसे करें सभी राजा तो अंग्रेजों की गोद में जा बैठे थे |

आज भी बलजी को नींद नहीं आ रही थी वे आधी रात तक इन्ही फिरंगियों व राजस्थान के सेठ साहूकारों द्वारा गरीबों से सूद वसूली पर सोचते हुए चिंतित थे तभी उन्हें अपने छोटे भाई भूरजी की आवाज सुनाई दी |

आज आधी रात में बलजी को उनकी (भूरजी) आवाज सुनाई दी तो वे चौंके,तुरंत दरवाजा खोल भूरजी को किले के अन्दर ले गले लगाया,दोनों भाइयों ने कुछ क्षण आपसी विचार विमर्श किया और तुरंत ऊँटों पर सवार हो अपने हथियार ले बागी जिन्दगी जीने के लिए किले से बाहर निकल गए उनके साथ बलजी का वफादार नौकर गणेश नाई भी साथ हो लिया |

लूटे गए धन से किसी गरीब की बेटी की शादी करवाते तो किसी गरीब बहन के भाई बनकर उसके बच्चों की शादी में भात भरने जाते | हर जरुरत मंद की वे सहायता करते जोधपुर,आगरा, बीकानेर,मालवा,अजमेर,पटियाला,जयपुर रियासतों में उनके नाम से धनी व सेठ साहूकार कांपने लग गए थे | साहूकारों के यहाँ डाके डालते वक्त सबसे पहले बलजी-भूरजी उनकी बहियाँ जला डालते थे ताकि वे गरीबों को दिए कर्ज का तकादा नहीं कर सके |

कई लोग उनके नाम से भी वारदात करने लगे ,पता चलने पर बलजी-भूरजी उन्हें पकड़कर दंड देते और आगे से हिदायत भी देते कि उनके नाम से कभी किसी ने किसी गरीब को लुटा या सताया तो उसकी खैर नहीं होगी | उनके दल में काफी लोग शामिल हो गए थे पर जो लोग उनके दल के लिए बनाये कठोर नियमों का पालन नहीं करते बलजी उन्हें निकाल देते थे | उनके नियम थे -किसी गरीब को नहीं सताना,किसी औरत पर कुदृष्टि नहीं डालना,डाका डालते वक्त भी उस घर की औरतों को पूरा सम्मान देना आदि व डाके में मिला धन गरीबों व जरुरत मंदों के बीच बाँट देना |

जोधपुर रियासत ने बलजी-भूरजी को पकड़ने हेतु अपने एक जांबाज पुलिस अधिकारी पुलिस सुपरिडेंट बख्तावरसिंह के नेतृत्व में तीन सौ सिपाहियों का एक विशेष दल बनाया | बख्तावरसिंह ने अपने दल के कुछ सदस्यों को उन इलाकों में ग्रामीण वेशभूषा में तैनात किया जिन इलाकों में बलजी-भूरजी घुमा करते थे इस तरह उनका पीछा करते हुए बख्तावरसिंह को तीन साल लग गए,तीन साल बाद 29 अक्तूबर 1926 को कालूखां नामक एक मुखबिर ने बख्तावरसिंह को बलजी-भूरजी के रामगढ सेठान Ramgarh Shekhawati के पास बैरास गांव में होने की सुचना दी | कालूखां भी पहले बलजी-भूरजी के दल में था पर किसी विवाद के चलते वह उनका दल छोड़ गया था |
सुचना मिलते ही बख्तावरसिंह अपने हथियारों से सुसज्जित विशेष दल के तीन सौ सिपाहियों सहित ऊँटों व घोड़ों पर सवार हो बैरास गांव की और चल दिया | बख्तावरसिंह के आने की खबर ग्रामीणों से मिलते ही बलजी-भूरजी ने भी मौर्चा संभालने की तैयारी कर ली | उन्होंने बैरास गांव को छोड़ने का निश्चय किया क्योंकि बैरास गांव की भूमि कभी उनके पुरखों ने चारणों को दान में दी थी इसलिए वे दान में दी गयी भूमि पर रक्तपात करना उचित नहीं समझ रहे थे अत : वे बैरास गांव छोड़कर उसी दिशा में सहनुसर गांव की भूमि की और बढे जिधर से बख्तावर भी अपनी फ़ोर्स के साथ आ रहा था | रात्री का समय था बलजी-भूरजी ने एक बड़े रेतीले टीले पर मोर्चा जमा लिया उधर बख्तावर की फ़ोर्स ने भी उन्हें तीन और से घेर लिया | बलजी ने अपने सभी साथियों को जान बचाकर भाग जाने की छुट दे दी थी सो उनके दल के सभी सदस्य भाग चुके थे ,अब दोनों भाइयों के साथ सिर्फ उनका स्वामिभक्त नौकर गणेश ही शेष रह गया था |

भूरजी के पास भी कारतूस ख़त्म हो चुके थे तभी गणेश रेंगता हुआ बलजी की मृत देह के पास गया और उनके पास रखी बन्दुक व कारतूस लेकर भूरजी की और बढ़ने लगा तभी उसको भी गोली लग गयी पर मरते मरते उसने हथियार भूरजी तक पहुंचा दिए | भूरजी ने कोई डेढ़ घंटे तक मुकाबला किया | बख्तावर सिंह की फ़ोर्स के कई सिपाहियों को उसने मौत के घाट उतार दिया और उसे कब गोली लगी और कब वह मृत्यु को प्राप्त हो गया किसी को पता ही नहीं चला ,जब भूरजी की और से गोलियां चलनी बंद हो गयी तब भी बख्तावरसिंह को भरोसा नहीं था कि भूरजी मारा गया है कई घंटो तक उसकी देह के पास जाने की किसी की हिम्मत तक नहीं हुई |
आखिर बख्तावर ने दूरबीन से देखकर भूरजी के मरने की पुष्टि की जब उनके शव के पास जाया गया |

उनके दाह संस्कार के लिए सहनुसर गांव के ग्रामीण तीन पीपे घी के लाये,उसी गांव के गोमजी माली व मोहनजी सहारण (जाट) अपने खेतों से चिता के लिए लकड़ी लेकर आये और तीनों का उसी स्थान पर दाह संस्कार किया गया जहाँ वे शहीद हुए थे | उनकी चिता को मुखाग्नि बिसाऊ के जागीरदार ठाकुर बिशनसिंह जी ने दी | अस्थि संचय व बाकी के क्रियाक्रम उनके पुत्रों ने आकर किया | आस पास के गांव वालों ने उनके दाह संस्कार के स्थान पर ईंटों का कच्चा चबूतरा बनवा दिया | सीकर के राजा कल्याणसिंघजी ने बलजी-भूरजी के नाम पर दाह संस्कार स्थान की ४० बीघा भूमि गोचर के रूप में आवंटित की | जिसमे से ३० बीघा भूमि तो पंचायतों ने बाद में भूमिहीनों को आवंटित कर दी अब शेष बची १० बीघा भूमि को "बलजी-भूरजी स्मृति संस्थान" ने सुरक्षित रखने का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया ये भूमि बलजी-भूरजी की बणी के रूप में जानी जाती है | कच्चे चबूतरे की जगह अब उनके स्मारक के रूप में छतरियां बना दी गयी है ,जहाँ उनकी पुण्य तिथि पर हजारों लोग उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने इकट्ठा होते है | जो बलजी-भूरजी अंग्रेज सरकार व जोधपुर रियासत के लिए सिरदर्द बने हुए थे मृत्यु के बाद लोग उन्हें भोमियाजी(लोकदेवता) मानकर उनकी पूजा करने लगे | आज भी आस-पास के लोग अपनी शादी के बाद गठ्जोड़े की जात देने उनके स्मारक पर शीश नवाते है,अपने बच्चों का जडुला (मुंडन संस्कार) चढाते है | रोगी अपने रोग ठीक होने के लिए मन्नत मांगते है तो कोई अपनी मन्नत पूरी होने पर वहां रतजगा करने आता है | भोपों ने उनकी वीरता के लिए गीत गाये तो कवियों ने उनकी वीरता,साहस व जन कल्याण के कार्यों पर कविताएँ ,दोहे रचे |
जोधपुर रियासत में उनके द्वारा डाले गए धाड़ों पर एक कवि ने यूँ कहा -
मारवाड़ नै करदी रीति |
राजाओं द्वारा अंग्रेजों की दासता स्वीकार करने से दुखी बलजी अपने भाव इस प्रकार व्यक्त किया करते -
रजवाड़ा भिसळया अठै ,चढ्यो गुलामी रंग |
राजपूतों के रजपूती गुण खोने (डूबने) के कारण ही ये फिरंगी राज पनपा है | राजपुताना के रजवाड़ों ने अपना कर्तव्य मार्ग खो दिया है और उनके ऊपर गुलामी का रंग चढ़ गया है |
आजादी नै कायरां,दई अडानै मेल ||
राजपूतों में रजपूती गुणों की कमी के चलते ही सारा खेल बिगड़ गया है | कायरों ने आजादी को गिरवी रख दिया है |
डाकू या क्रांतिवीर :
बलजी-भूरजी को यधपि लोग "धाड़ायति" (डाकू) ही कहते आये है कारण अंग्रेजी राज में जिसने भी बगावत की उसे कानूनद्रोही या डाकू कह दिया गया | जबकि बलजी-भूरजी डाके में लुटी रकम गरीबों में बाँट दिया करते थे उन्हें तो सिर्फ अपने ऊँटो को घी पिलाने जितने ही रुपयों की जरुरत पड़ती थी |

भूरजी भी भारतीय सेना में सीधे सूबेदार के पद पर पहुँच गया था यदि उसके मन में भी अंग्रेजों के प्रति नफरत नहीं होती तो वो भी आसानी से सेना में तरक्की पाकर बागी जीवन जीने की अपेक्षा आसानी से अपना जीवन यापन कर सकता था पर दोनों भाइयों के मन में अंग्रेज सरकार के विरोध के अंकुर बचपन में ही प्रस्फुटित हो गए थे और उनकी परिणित हुई कि वे अपना विलासितापूर्ण जीवन छोड़कर बागी बन गए |
बेशक जोधपुर स्टेट में उन्हें कानूनद्रोही माना पर शेखावाटी व उन स्थानों की जनता ने जिनके बीच वे गए क्रांतिवीर व जन-हितेषी ही माना |
Balji Bhurji The Shekhawati's Fanous Freedom Fighter known as daket balji bhurji, dhadayati balji bhurji
सुंदर कथा से हमे इतिहास से परिचित करबाने के लिये कोटी कोटी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमुझे इतिहास कि किताबो में इनके बारे में कुछ भी लिखा हुआ नहीं मिला और ना ही मैंने ढूँढने का यत्न किया | आपके द्वारा आज ये पोस्ट पढकर मुझे भी पुँरानी बाते स्मरण हो आयी जो मुझे मेरी दादीजी ने बताई थी | ये बाते तब की है जब दादाजी जवान थे ,हमारा परिवार ज्यादा साधन संपन्न नहीं था | दादाजी ऊँट के सहारे अपनी गुजर बसर चलाते थे | वे यंहा के स्थानीय सेठ रूंगटा गौत्र के बनियों के लिए काम करते थे | उन के जो भी जिम्मेदारी वाले काम थे वे दादाजी करते थे | खास कर उनकी धनदौलत को एक स्थान से दुसरे स्थान पर लाने ले जाने का काम दादाजी के जिम्मे था | इसी सीलसिले में एक बार वे नारनौल से चांदी के सिक्के बोरो में भरकर अपने ऊँट पर लाद कर ला रहे थे रास्ते में उन्हें बलजी ,भूरजी धाडेती मिल गए | बलजी भूरजी ने उन्हें कहा कि ठाकुर साहब आप ये काम बंद करदो क्यों कि आप एक गरीब राजपूत है और जो काम हम लोग कर रहे है उसमे आप अपने वफादारी की वजह से बाधा बनेगे और राजपूतो का आपस में ही बैर पडेगा सो आज पहली बार आप मिले है आज तो आप जाओ लेकिन आगे भविष्य में आपका और हमारा सामना नही हो तो अच्छा है | दादाजी ने वापस आकर सेठजी से काम छोड ने के लिए कह दिया और अपनी छोटी सी खेती बाडी से बड़े से परिवार का पालन पोषण करने लगे | दादी जी हमेशा कहती थी कि बलजी भूरजी ने कभी भी किसी गरीब को नहीं लूटा और ना ही किसी बच्चे या औरत पर अत्याचार किया ,वे सचमुच में शेखावाटी के वीर थे | कहने वाले तो यंहा तक कहते है कि जिस झूपडे में उनका शव पड़ा था उसमे उनकी मृत्यु के कई घंटे बाद तक पुलिस अंदर झाकने की हिम्मत नहीं कर पाई थी |
जवाब देंहटाएंऐसे वीरों की सौर्य गाथाएं सुनकर दिल भर आता है.... बलजी-भूरजी और गणेश जी को कोटि-कोटि नमन.....
हटाएंmain bhanwarsingh chauhan patoda sikar mera nanihal hain maine year 1973-75 6th to 8th padai patoda main ki thi balaji bhuraji ke bare main jo aapane likha bilakul hi sahi hain gaon ke bicho bich eak open kuwa hain usako usa samay angrago ne bad karwa diya tha ki eshaka pani pinewala dharwi ban ja ta hain balaji bhuraji dungaji jawarji ki chatriya patoda main bahut hi sundar bani hui hain eanki gatha eshathaniye bhope bahut hi achi gate h uanake shatha lotiya jat aur karana meana ne unako bhut hi acha sath diya tha shri ratan singhji shekhawat shahib ke ham aabhari hain
जवाब देंहटाएंmain bhanwarsingh chauhan patoda sikar mera nanihal hain maine year 1973-75 6th to 8th padai patoda main ki thi balaji bhuraji ke bare main jo aapane likha bilakul hi sahi hain gaon ke bicho bich eak open kuwa hain usako usa samay angrago ne bad karwa diya tha ki eshaka pani pinewala dharwi ban ja ta hain balaji bhuraji dungaji jawarji ki chatriya patoda main bahut hi sundar bani hui hain eanki gatha eshathaniye bhope bahut hi achi gate h uanake shatha lotiya jat aur karana meana ne unako bhut hi acha sath diya tha shri ratan singhji shekhawat shahib ke ham aabhari hain
जवाब देंहटाएंइनकी वीर गाथाएँ हमने भी बचपन में बहुत सुनी है , यह भी सुना है कि इनके स्मारक पर झाड़ू चढाने से शरीर के मस्से ठीक हो जाते है | कितना सही है नहीं पता ,पर लोगों की जुबान से अक्सर सुनने को मिलता है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वीर कथा जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट। मेरे लिए तो आप का ब्लाग राजस्थान के इतिहास का खजाना है।
जवाब देंहटाएंएक उत्तम लेख
जवाब देंहटाएंयह पढ़ने के बाद कोई रॉबिनहुड के बारे में क्यों पढ़े।
जवाब देंहटाएंआपकी इन कथाओं से राजस्थान पर रिसर्च की जा सकने लायक सामग्री है ! मुझे लगता है विकिपीडिया से आपके ब्लॉग का परिचय अथवा लिंक होना चाहिए ! यह कार्य और शैली दुर्लभ है ! भारतीय संस्कृति की यह झांकी, और हिस्सों से भी लिपिबद्ध हो तो एक विशेष योगदान होगा !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
@ सतीश जी
जवाब देंहटाएंहिंदी विकी पर भी काफी लेख जोड़े है और कई सारे जोड़ने है पर एक तो टाइपिंग की स्पीड धीरे है दूसरा विकी पर लिखने व ब्लॉग पर लिखने की शैली में फर्क होता है , विकी पर मेहनत बहुत करनी होती है इसलिए अभी ज्यादा जोड़ नहीं पाया हूँ . हिंदी विकी में जोड़ने के लिए मेरे पास इतिहास के बहुत पात्र है |
Bahut badhiya ji dhanyavad
जवाब देंहटाएंaaj fir se yade taja ki
जवाब देंहटाएंlaajwaab bahut sundar.. balji bhurji ki abhi bahut awashyaktaa hai...
जवाब देंहटाएंSahee wa sateek janakaree ke liye aapka abhar !!!
जवाब देंहटाएंnice to see this lovely true story.
जवाब देंहटाएंDeendayal sharma Indian Navy
मुझे ज्यादा ज्ञानी न समझे , माफ़ करना छोटे मुँह बड़ी बात कहूँगा राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है।कुछ राजपुतवन्श अपने को भगवान श्री राम के वन्शज बताते है।राजस्थान का अशिकन्श भाग ब्रिटिश काल मे राजपुताना के नाम से जाना जाता था।
जवाब देंहटाएंहमारे देश का इतिहास आदिकाल से गौरवमय रहा है, आन बान शान की रक्षा केवल वीर पुरुषों ने ही नही की बल्कि हमारे देश की वीरांगनायें भी किसी से पीछे नही रहीं। आज से लगभग एक हजार साल पुरानी बात है,गुजरात में जयसिंह सिद्धराज नामक राजा राज्य करता था,जो सोलंकी राजा था,उसकी राजधानी पाटन थी,सोलंकी राजाओं ने लगभग तीन सौ साल गुजरात में शासन किया,सोलंकियों का यह युग गुजरात राज्य का स्वर्णयुग कहलाया। दुख की यह बात है,कि सिद्धराज अपुत्र था,वह अपने चचेरे भाई के नाती को बहुत प्यार करता था। लेकिन एक जैन मुनि हेमचन्द ने यह भविष्यवाणी की थी,कि राजा सिद्धराज जयसिंह के बाद यह नाती कुमारपाल इस राज्य का शासक बनेगा। जब यहबात राजा सिद्धराज जयसिंह को पता लगी तो वह कुमारपाल से घृणा करने लगा। और उसे मरवाने की विभिन्न युक्तियां प्रयोग मे लाने लगा। परन्तु क्मारपाल सोलंकी बनावटी भेष में अपनी जीवन रक्षा के लिये घूमता रहा। और अन्त में जैन मुनि की बात सत्य हुयी। कुमारपाल सोलंकी पचपन वर्ष की अवस्था में पाटन की गद्दी पर आसीन हुआ। आपको जो भी गलत लगे तो माफ़ करना!
आपका छोटा भाई:---
योगेन्द्र सिंह तिहावली,
तिहावली, फतेहपुर शेखावाटी, सीकर राजस्थान
yogendratihawali@yahoo.com
Whenever i got chance on net i always open this page of our village's great heros. I salute them.
जवाब देंहटाएंDeen dayal sharma
Today once again i salute my home town's real hero.
जवाब देंहटाएंDeendayal sharma
Indian navy
Patoda
मुझे भी अपने है शेखावाटी पर गर्व और वैसे बल जी , भुर जी दादोसा पर अपने राजपूत समाज को इसलिए भी गर्व होता है कि उन्होंने ईमानदारी, निष्पक्षता और न्यायप्रियता के साथ काम किया। उनका जीवनकाल बेदाग रहा। समाज को ऐसे ही लोगों की जरूरत है, जो अपने अच्छे कार्यों से अपना, अपने परिवार, अपने राज्य और देश का नाम रौशन करें। राजपूत समाज तो यह कहकर ही धन्य हो जाएगा कि जिओ सपूतो !!!.......धन्यवाद दादोसा ............................योगेन्द्र सिंह तिहावली
जवाब देंहटाएंSach me bal g bhur ji dado sa hamare Patoda gaav ki shaan h . unko koti koti pranaam.
जवाब देंहटाएंSach me Bal JI bhur JI Dado sa Hamare Patoda Ki Shaan The. Mera unko koti koti pranaam => sunil kumar pareek Patoda sikar.
जवाब देंहटाएंmai chandigarh me rahta hu lekin apni janmbhumi sekhawaty ke bare janane ki tamnnarahti h aaj jo padha h ase lagta h ki m appne ganv hi khara hu bhut man khus huaa
जवाब देंहटाएंSEKHAWATI KE SURMAO KI GATHA PADH KAR MAN PARSANN HO GAYA M CHANDIGARH ME RAHTA HU LEKIN AAJ ASE LAGA KI AAPNE GANV ME HI HUN
जवाब देंहटाएंAAPKA BHUT BHUT DANYWAD
ऐसी वीरगाथाओं को समके समक्ष लाना ही होगा।
जवाब देंहटाएंaapko koti koti dhnywad sir
जवाब देंहटाएंmare mama ki ithas katha suan m gorv se bhar chuka hu ,balji or bhurji ravji ke shekhawat h or m unka bhanja manohar singh
जवाब देंहटाएंbadhiya uplabdhi
जवाब देंहटाएंम्हारी घणी इच्छा है कै बलजी-भूरजी पर फ़िल्म लिखूं. पण कोई निर्माता ई नीं मिल रैयो है. घणै दुख री बात है कै फ़ैशन रै नांव पर भद्दी-भद्दी अश्लीलता परोसी जा रैयी है, पण बलजी-भूरजी, हाड़ीराणी, रूपकंवर, डूंगजी-जवारजी री जीवनी पर कोई फ़िल्मकार काम करणो चावै ई नीं..
जवाब देंहटाएंfilam bani huvi ha
हटाएंfilm ban gayi ha
हटाएंAAP SAB KE PYAR OR SAHYOG SE IN PAR PAHLA VIDEO MENE BANAYA H OR AB SERIAL BANANE JA RHA HU MY NAME IS GAJANAND DADHICH MO.09784734033
हटाएंAAP SAB KE PYAR OR SAHYOG SE IN PAR PAHLA VIDEO MENE HI BANAYA H AB ME IN PAR SERIAL BANA RHA HU MY NAME IS GAJANAND DADHICH MO 09784734033
हटाएंAAP SAB KE PYAR OR SAHYOG SE IN PAR PAHLA VIDEO MENE BANAYA H OR AB SERIAL BANANE JA RHA HU MY NAME IS GAJANAND DADHICH MO.09784734033
हटाएंthey are real freedom fighters not daket.I really salute them
जवाब देंहटाएंसुन्दर नमन माँ के सच्चे लाल को
जवाब देंहटाएंबीकानेर की स्थापना यों हुई http://raajputanaculture.blogspot.com/2015/11/blog-post_4.html
विक्रम जी हर कमेन्ट में कृपया लिंक ना लगाया ना करें.
हटाएंratansingh ji namskar aaj yun hi search karte karte post deekh gai film banane ki soch upji hai asha kartaa hu baaki ki jaanaakri jarurt hone par aap batayenge
जवाब देंहटाएंpahle hi padh liya thaa aaaj dobara mere dost director me link bheja
जवाब देंहटाएं