चतुर नार

Gyan Darpan
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एक राजा के एक कुंवर था जो बिलकुल अनपढ़ व मुर्ख था | मां-बाप के लाड प्यार ने उसे पूरी तरह बिगाड़ रखा था | ऊपर से उस बिगडैल कुंवर ने प्रण कर रखा था कि- "वह जिस लड़की के साथ शादी करेगा उसके सिर पर रोज दो जूते मारने के बाद ही खाना खायेगा | जिसने भी ये सुनी उसने अपनी कन्या उसे देने की हिम्मत नहीं की और जो कोई अनजाने में उसकी सगाई का नारियल लेकर आ गया वह शर्त सुनते ही वापस लौट गया | ऐसे महामूर्ख कुंवर को अपनी लड़की देकर कौन बाप अपनी लड़की का जीवन नरक करना चाहता |
एक दुसरे राजा के एक राजकुमारी थी सुन्दर,सुशील,चतुर ,गुणों की खान बोले तो बत्तीस लक्षणी | राजकुमारी ने उस बावले कुंवर का प्रण सुना तो अपनी सहेलियों से बोला -
"यदि कोई चतुर नार हो तो एक दिन भी जूते ना खाए | कुंवर जी अपना प्रण ले बैठे ही रहे |"
सुन राजकुमारी की एक सहेली ने मजाक किया -" ऐसी चतुर तो आप ही है राजकुमारी साहिबा | उस बावले कुंवर से शादी कर यह चतुराई तो आप ही दिखाएँ |"
सहेली की बात राजकुमारी को चुभ गयी | और राजकुमारी ने अपनी पिता को कहला भेजा कि - "उस बावले कुंवर से मेरी सगाई का नारियल भेजा जाय |"
राजा ने अपनी राजकुमारी को खूब समझाया कि वह बावला कुंवर रोज तुझे जूते मरेगा,क्या तूं पगला गई है जो उस महामूर्ख से शादी का प्रस्ताव भेजने को कह रही है | पर राजकुमारी ने तो निश्चय कर लिया था बोली-
" मुझे अपने गुणों व अपनी चतुराई पर पूरा भरोसा है एक दिन भी उस कुंवर से जूते नहीं खाऊँगी |"
आखिर राजकुमारी की उस बावले कुंवर के साथ सगाई हो गयी | शादी तय हो गयी | और कुंवर राजकुमारी से शादी के लिए बारात लेकर आ गया | कुंवर जैसे तौरण मारकर अन्दर रावले में गया उसने तो जूता निकाल लिया और पूछा - "कहाँ है राजकुमारी ! जूता मारना है |"
राजकुमारी बोली -"कुंवर जी ! अभी तक फेरे नहीं हुए है | हमारी शादी फेरों के बाद ही सम्पन्न होगी और शादी संपन्न होने के बाद ही आप जूते मार सकते है |"
फेरे हो गए | शादी संपन्न हो गयी | शादी की रस्म संपन्न होते ही कुंवर जी ने तो जूता निकाल लिया | तभी राजकुमारी बोली-
" कुंवर जी ! अभी मैं तो अपने बाप के घर हूँ | जब आप अपने घर ले जाये तब जूता निकलना |"
कुंवर जी का हाथ रुक गया | वे विदाई लेकर राजकुमारी सहित अपने घर आये और आते ही उन्होंने तो जूता फिर निकाल लिया अपना प्रण पूरा करने हेतु |
राजकुमारी ने कुंवर का हाथ पकड़ते हुए बोला - "अभी तो मैं अपने ससुर का कमाया खा रही हूँ जब आप अपनी कमाई से खाना खिलाएंगे तब जूते मारना | अभी आपको मुझे जूते मारने का कोई हक़ नहीं है |"
कुंवर जी को बात चुभ गई और पिता के पास जाकर उन्होंने कमाने के उद्देश्य से परदेस जाने की इजाजत मांगी | पिता ने खूब मना किया पर वह बावला कुंवर कहाँ मानने वाला था | सो बाप ने उसके साथ बहुत सी सोने की मोहरें बाँध दी | आखिर सोने की मोहरों से भरे तोबड़े घोड़े पर लादकर कुंवर जी कमाने के लिए निकले और चलते चलते एक ठगों के गांव में पहुँच गए |
ठगों ने कुंवर जी के ठाठ देख समझ लिया कि ये परदेसी है तो मालदार | झट से एक ठग ने कुंवर जी के पास जाकर मनुहार की कि- " आप भले घर के दिखते है थक गए होंगे मेरे घर चलिए और थोड़ा आराम कर लीजिये | आप भोजन आदि करेंगे तब तक आपके घोड़े को भी आराम मिल जायेगा |"
कुंवर जी मान गए और ठग के घर चले आये | ठग ने कुंवर जी के सम्मान में बड़े भोज का आयोजन किया | गांव के सभी ठग भोज में शरीक हुए | भोज चल रहा था सभी लोग स्वादिष्ट व्यंजनों का रसास्वाद कर रहे थे तभी ठग बोला - " किसी ने मेरा एक सोने का कटोरा चुरा लिया है |"
कटोरे की तलाश करते करते ठग ने कुंवर पर ही चोरी का आरोप लगा दिया | कुंवर ने इस आरोप का खंडन किया तभी एक ठग गांव के पंचों को बुला लाया | पंचों ने फैसला सुनाया कि -"यदि सोने का कटोरा कुंवर जी से बरामद हो जाये तो कुंवर जी का सारा माल ठग का हो जायेगा और कटोरा उस ठग के पास मिला तो उसका सारा माल कुंवर जी का हो जायेगा |"
दोनों पक्षों ने बात मान ली | जब तलाशी ली गयी तो सोने का कटोरा कुंवर जी के घोड़े के जीन में बंधा पाया गया | अब कुंवर जी का सारा माल उस ठग का हो गया | कुंवर जी के पास कुछ नहीं बचा | अपनी भूख मिटाने को कुंवर जी जंगल से लकड़ी काट कर लाते और उसे बेचकर अपना पेट भरते | उधर राजकुमारी ने अपना एक आदमी कुंवर जी के पीछे लगा रखा था उसने जाकर राजकुमारी को कुंवर जी के साथ जो घटना घटी उसका ब्यौरा दिया |
दुसरे ही दिन राजकुमारी ने अपने ससुर से मायके जाने की इजाजत मांगी | इजाजत ले राजकुमारी ने अपने साथ अपने मायके से आये कुछ भरोसेमंद आदमियों को साथ लिया | सिर पर साफा बाँधा,मर्दानी वेशभूषा धारण की,हाथ में तलवार ले घोड़े पर सवार हो ठगों के गांव की और अपने काफिले के साथ रवाना हुई |
ठगों के गांव पहुँचते ही ठग तो तैयार ही बैठे थे उन्होंने मर्द बनी राजकुमारी का वैसे ही स्वागत किया जैसे कुंवर जी का | भोज का आयोजन कर उसी तरह सोने के कटोरे की चोरी का आरोप लगा दिया | इस बार फिर पंच आये वही फैसला | पर इस बार राजकुमारी के आदमियों ने ठगों द्वारा उसके घोड़े के जीन में बांधे कटोरे को निकाल चुपके से ठग के घर में वापस छुपा दिया | इस बार कटोरा ठग के घर में बरामद हुआ | सो फैसले के मुताबिक ठग का सारा माल राजकुमारी का हो गया |
उस धन से राजकुमारी उसी गांव में एक बड़ा मकान किराये पर लेकर रहने लगी | राजकुमारी ने अपना रसोड़ा (भोजनशाला) गरीबों के लिए हमेशा के खोल दिया| जो कोई भी भूखा हो वहां आकर भोजन करले | रोज भूखे प्यासे गरीब लोग, राहगीर वहां आते भोजन करते और राजकुमारी को दुवाएं देते| राजकुमारी रोज अपने घर के झरोखे में बैठ वहां आने वाले भूखे प्यासे लोगों को देखती रहती |
एक दिन राजकुमारी ने देखा,खाना खाने वाले भूखों की लाइन में कुंवर जी खड़े है | उनके गंदे कपडे फटकर चीथड़े हो चुके है,दाडी व सिर के बाल बढे हुए है और उनके गंदे बालों में जुएँ पड़ गई है,उनके एक हाथ में एक रस्सी है और दुसरे हाथ में लकड़ी काटने की एक कुल्हाड़ी |
भूखे कुंवर जी ने जब भोजन कर लिया तो मर्दों की पोशाक पहने बैठी राजकुमारी ने कुंवर को अपने पास बुला पूछा -" नौकरी करोगे ?"
कुंवर जी ने हाँ कह दी | राजकुमारी ने नाई को बुला उनके बाल कटवाए,उन्हें नहलवाया,नए कपडे पहनाए और उनके सिर से काटे वे लम्बे लम्बे मैले बालों की लटियों ,फटे पुराने कपड़ों व उनकी रस्सी को लेकर एक संदूक में रख लिया |
कुछ दिन बीतने के बाद राजकुमारी ने कुंवर जी को बुलाकर कहा कि -" हम तो अपने गांव जा रहे है इसलिए यहाँ हमारे पास जो कुछ है वो आपका |"
और वहां का सारा धन देकर राजकुमारी ने अपने मर्दाना कपडे उतारे और ससुराल आ गयी |
राजकुमारी का धन मिलते ही कुंवर जी तो अपनी पुरानी फोरम में आ गए, उन्होंने अपने पिता को सन्देश भिजवाया कि -" अब वे कमाकर लौट रहे है |"
पुरे ठाठ बाट से कुंवर जी घर आये,सीधे राजकुमारी के कक्ष में गए और बिना कुछ बोले सबसे पहले जूता निकाला राजकुमारी के सिर में मारने को |
राजकुमारी बोली - " बहुत अच्छी बात है आप कमाकर आये है अब आपको जूता मारने का पूरा हक़ है पर हे प्राणनाथ ! इस संदूक में रखी कुछ चीजों को देखने के बाद ही जूता मारे |"
और झट से राजकुमारी ने संदूक खोल कुंवरजी के आगे करदी | संदूक में रखे अपने फटे पुराने कपडे,बाल,रस्सी आदि देखकर कुंवरजी के तो होश उड़ गए | जूता लिए उठा उनका हाथ जहाँ था वहीँ आ गया | वे राजकुमारी के पैरों में गिर गए -" किसी को ये बात कहना मत वरना मेरी यहाँ क्या इज्जत रहेगी ? मैं तो किसी को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहूँगा |
और कुंवरजी ने तो जिन्दगी भर जूता मारने का नाम तक नहीं लिया |


(सन्दर्भ- महारानी लक्ष्मीकुमारी की राजस्थानी कहानी पर आधारित )

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12टिप्पणियाँ

  1. जानते है कितनी मेहनत करके अपने व्यूज़ लिखती हूँ और जाने क्यों वो पोस्ट नही होते गायब हो जाते हैं.पिछले तीन दिन से यही हो रहा है और वो भी मात्र आपके ब्लॉग पर.कुछ पट्टी वट्टी पढा दी है क्या इसे? हा हा खेर अब इतना ही कहूँगी 'इंटेलिजेंट राजकुमारी'

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  2. @ इंदुजी
    मैंने तो ब्लॉग को पट्टी पढ़ाई थी कि हर आने वाले से कमेन्ट झटकना है पर लगता है ये इसे आपके साथ ठिठोली करने की सूझ गयी :)

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. आजकल इस प्रकार की चतुर बतीस लक्षणी नारी मिलना बहुत कठिन है | जो भी मिलती है चालाक ही मिलती है | कहानी बहुत बढिया है |

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  5. वाह... बहुत ही बढ़िया कहानी है... कुंवर को सही सीख दी राजकुमारी ने...

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  6. कहानी सुनना अब भी अच्छा लगता है ... कहानी पूरी पढ़ी,अनजाने में एक-दो जगह मात्राओं में शायद चूक हो गई ....
    खुश रहें ! कहानी सुनाते रहें !

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  7. वाह... बहुत ही बढ़िया कहानी है .

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