
तुम आती हो जाती हो ,
तुम आती हो जाती हो
दिन हो या रात बस
हर पल चलती रहती हो
थक जाती होगी ना ?
आस मे रहती हो की
शायद मै कभी कह दू
तुम्हे की तुम आराम क्यों नहीं कर लेती
मै इतना भी नादाँ नहीं की तुम्हे ये कह दू
हा कह लो मुझे स्वार्थी ,
नहीं कहूँगा तुम्हे रुकने को
तब तक जब तक
मेरी हर ख्वाहिश पूरी ना हो जाती है
अब तुम ही कहो केसे कह दू मै तुम्हे
रुकने को
केसे कह दू की तुम थम जावो
आखिर सांसे हो तुम मेरी
bilkul, ye n hongi to ham bhi to n honge..
जवाब देंहटाएंकैसे कोई भी कह दे....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.
हमेशा की तरह वाह - वाह कहना ही पड़ रहा है आप गायब हो जाती हैं मुझे इस बात की नाराजगी है .
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद आपकी ये पोस्ट दिखाई दी है | सुन्दर और सच्ची बात कही है |
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना | लिखने में नियमितता बनाएं रखें |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव।
जवाब देंहटाएंबधाई।
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देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
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