


देखा होगा सागर किनारे मिट्टी के घरोंदो को टूटते हुए …….
उन पर बच्चो को रोते हुए ……….पर .…….पर …….
देखा है मेने घरो को उजड़ते हुए …….
जवानों को देखा है मैने झोपड़े हटाते हुए ………
बच्चो को चिलाते हुए ….माँ को सहलाते हुए ……….
पास की इमारत के लोग देख रहे है इस नज़ारे को अपनी खिडकियों से ……..
प्यासे के पानी मांगने पर भगा रहे है झिडकियो से ……….
देखा है मैने घरो को उजड़ते हुए …………….
देखा है शान से लोगो को वहाँ खड़े हुए …………..
देख रहे है जो तिनको को बिखरते हुए ,……….
किसी के आशियाने को उजड़ते हुए धुल को उड़ते हुए ……
देखा है मैने घरो को उजड़ते हुए …………..
झोपड़े ही क्यों देखा है मैने दुनिया की ऊँची इमारतों में रहने वालो को भी बिलखते हुए ……
देखा है मैने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से हवाई विमान टकराते हुए ………
देखा है मैने घरो को उजड़ते हुए ……………….
बहुत मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंDua hai Ki Kamyabi ke har sikhar per aap ka naam hoga,Aapke har kadam per duniya ka salaam hoga,Himmat se mushkilon ka saamna karna koi aapse sikhe,Hamari dua hai ki waqt bhi ek din aapka gulam hoga.Well Done Girl Keep Going :-)
जवाब देंहटाएंसमन्वयन तीन हकीकतों का
जवाब देंहटाएंजिनमें घुली मिली हैं
खूब सारी सच्चाईयां।
झोपड़े ही क्यों देखा है मैने दुनिया की ऊँची इमारतों में रहने वालो को भी बिलखते हुए
जवाब देंहटाएं@ ये तो समय चक्र है सभी के साथ आता है कभी झोपड़े में तो कभी महल में |
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति ! दर्द वही महसूस करता है जिसके चोट लगी हो !
मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंbohat badiya .........
जवाब देंहटाएंसही बात है, घर सबके उजड सकते हैं। यह तो समय है।
जवाब देंहटाएंbahut achchhi rachana.......
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha sa
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसच्चाई से रु-ब-रु करवाती हुयी बेहद मार्मिक कविता ।
जवाब देंहटाएंउजडना बसना ये प्रकृति का नियम है | आपकी कविता में एक दर्द की अभिव्यक्ती भी है एक बेबस का दर्द आज कल बहुत कम लोग समझ पाते है |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक और मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आशियाना चले जाने का दुख बड़ा गहरा होता है।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना है बधाई।
जवाब देंहटाएंउजडना बसना ये प्रकृति का नियम है
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
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