राव विरमदेव, मेड़ता

Gyan Darpan
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राव विरमदेव ने 38 वर्ष की आयु में 1515 ई. में अपने पिता राव दुदा के निधन के बाद मेड़ता का शासन संभाला | व्यक्तित्व और वीरता की द्रष्टि से वे अपने पिता के ही समान थे और उन्होंने भी पिता की भांति जोधपुर राज्य से सहयोग और सामंजस्य रखा |
इसीलिए सारंग खां व मल्लू खां जैसे बलवानों को परास्त करने में विरमदेव सफल रहे | विरमदेव चित्तोड़ के महाराणा सांगा के विश्वासपात्र व्यक्ति थे | उन्होंने सांगा द्वारा गुजरात के बादशाह मुज्जफरशाह के विरुद्ध,सांगा के ईडर अभियान के अलावा मालवा और दिल्ली के सुल्तानों से सांगा के युधों में अपने शोर्य का डंका बजाया था |
लेकिन राव सुजा के पश्चात् जोधपुर की राजगद्दी के लिए जो उठापटक हुयी उसके चलते जोधपुर और मेड़ता के बीच वैमनस्य के बीज बो दिए | और दोनों राज्यों के बीच विरोध की खाई अधिक गहरी हो गई | जो सोहार्दपूर्ण सम्बन्ध मेड़ता और मेवाड़ के बीच रहे उसी प्रकार के संबंध जोधपुर के साथ भी रहते तो आज इतिहास कुछ और ही होता | 12 मई 1531 को राव गंगा के निधन के बाद राव मालदेव जोधपुर के शासक बनें जो अपने समय के राजपुताना के सबसे शक्तिशाली शासक माने जाते थे उनके मन में विरमदेव के प्रति घृणा के बीज पहले से ही मौजूद थे अतः शासक बनते ही उन्होंने मेड़ता पर आक्रमण शुरू कर दिए | पराकर्मी विरमदेव ने अजमेर में मालवा के सुल्तान के सूबेदार को भगाकर अजमेर पर भी कब्जा कर लिया जो मालदेव को सहन नहीं हुआ और उसने अपने पराकर्मी सेनापति जैता और कुंपा के नेतृत्व में विशाल सेना भेज कर मेड़ता और अजमेर पर हमला कर विरमदेव को हरा खदेड़ दिया लेकिन साहसी विरमदेव ने डीडवाना पर अधिकार जा जमाया | किन्तु मालदेव की विशाल सेना ने वहां भी विरमदेव को जा घेरा जहाँ विरमदेव ने मालदेव की सेना से युद्ध में जमकर तलवार बजायी |
उनकी वीरता से प्रभावित होकर सेनापति जैता ने विरमदेव की वीरता की प्रशंसा करते हुए कहा कि आप जैसे वीर से यदि मालदेव का मेल हो जाये तो मालदेव पुरे हिन्दुस्थान पर विजय पा सकतें है | डीडवाना भी हाथ से निकलने के बाद विरमदेव अमरसर राव रायमल जी के पास आ गए जहाँ वे एक वर्ष तक रहे और आखिर वे शेरशाह सूरी के पास जा पहुंचे | मालदेव कि विरमदेव के साथ अनबन का फायदा शेरशाह ने उठाया,चूँकि मालदेव की हुमायूँ को शरण देने की कोशिश ने शेरशाह को क्रोधित कर दिया था जिसके चलते शेरशाह ने अपनी सेना मालदेव की महत्त्वाकांक्षा के मारे राव विरमदेव व बीकानेर के कल्याणमल के साथ भेजकर जोधपुर पर चढाई कर दी |
मालदेव भी अपनी सेना सहित सामना करने हेतु आ डटे लेकिन युद्ध की शुरुआत से पहले ही विरमदेव की वजह से अपने सामंतों की स्वामिभक्ति से आशंकित हो मालदेव युद्ध क्षेत्र से खिसक लिए | इस सुमैलगिरी युद्ध के नाम से प्रसिद्ध युद्ध में शेरशाह की फौज से मालदेव के सेनापति जैता और कुंपा ने भयंकर युद्ध कर भारी नुकसान पहुँचाया, विजय के बाद अपनी सेना के भारी नुकसान को देखकर शेरशाह ने कहा " मुट्ठी भर बाजरे की खातिर मै दिल्ली की सल्तनत खो बैठता | " इस युद्ध विजय के बाद शेरशाह ने विरमदेव व कल्याणमल के साथ सेना भेजकर जोधपुर पर अधिकार करने के बाद मेड़ता पर विरमदेव का पुनः अधिकार कराया | इस प्रकार छह वर्ष तक कष्ट सहन करने के बाद विरमदेव मेड़ता पर अधिकार करने में कामयाब हुए लेकिन इसके बाद वे ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सके और फरवरी 1544 में 66 वर्ष की अवस्था में उनका स्वर्गवास हो गया |

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8टिप्पणियाँ

  1. ये बताती है कि किस प्रकार हम आपस में बटें थे.. और शायद इसलिये मुग्ल और अंग्रेज.. हम पर शासन कर पाये..

    "जो सोहार्दपूर्ण सम्बन्ध मेड़ता और मेवाड़ के बीच रहे उसी प्रकार के संबंध जोधपुर के साथ भी रहते तो आज इतिहास कुछ और ही होता"

    सही कहा..

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  2. इतिहास में ही नही वरन वर्तमान मे भी आपसी कलह ही हमारी कमजोरी कि जङ रही है

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  3. मेडता और जोधपुर के बीच अच्छे संबंध रहे होते तो शेरशाह की क्या जुर्रत? अब तो खैर इतिहास बन गयी. अब आज जो हम लोगों में आपसी विभेद बनाए जा रहे हैं, वह भी एक नया इतिहास रचाएगा! हम इतिहास से सीख नहीं लेना चाहते! सुंदर आलेख के लिए आभार.

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  4. आप लोगों ने सटीक टिप्पणी की है | मेरा यहाँ एतिहासिक लेख लिखने का मकसद ही यही है की हम इन वीर योधाओं के देश प्रेम,शोर्य और बलिदान से प्रेरणा लेने के साथ उनके द्वारा की गई गलतियों से भी सबक लेकर वर्तमान समय में आपसी सोहार्द और एकता बनाये रखे वरना दुसरे तो फायदा उठाएंगे ही |

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  5. हमेशा की तरह बहुत इतिहास की जानकारी दी आपने ! बहुत धन्यवाद !

    राम राम !

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  6. If we are support to our samaj then no body bite to us

    Surendra Singh Rathore
    Thikana Khindas( Nagour)

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  7. where songara chauhan Ratansingh had established new kingdom of his own named Ratanpur NAGAR in the year 1082 (vikram)? Who is his successor? today this kingdom is known in what name? As muni Gyansunderji says and as stated in Ratanpuriya gachh ,where RAMSENA are residing today ?

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