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  1. देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रुपये के प्रतीक को बदलें मोदीजी!
    राजकुमार झाँझरी
    देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वे तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा लागू किये गये रुपये के प्रतीक को तत्काल रद्द करने की पहल करें। दिसंबर २०११ में ही मैंने डॉ. मनमोहन सिंह व तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखकर इस आशय का अनुरोध किया था कि उनकी सरकार ने रुपये के जिस प्रतीक को मंजूरी दी है, वह वास्तु के नजरिये से पूरी तरह दोष पूर्ण है और इस प्रतीक के प्रयेाग से देश की अर्थनीति को काफी नुकशान होने की आशंका है। मेरी इस अपील को डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने कोई महत्व नहीं दिया और देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था से आज मेरी बात पूरी तरह प्रमाणित भी हो चुकी है।
    मैंने जब तत्कालीन प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, तब भारत की वार्षिक विकास दर (जीडीपी) ८.५ प्रतिशत थी तथा सरकार अगले वित्त वर्ष में इसके ९ प्रतिशत होने का दावा कर रही थी। डॉलर के मुकाबले रुपये का विनिमय मूल्य तब ४४-४५ रुपये प्रति डॉलर चल रहा था। लेकिन रुपये के प्रतीक को लागू करने के बाद से ही डॉलर के मुकाबले रुपये का विनिमय मूल्य गिरना प्रारंभ हो गया और एक वक्त ऐसा भी आया, जब यह ७० के पास पहुंच गया और आज भी ६० के आसपास चल रहा है। विदेशी निवेश भी आधा हो गया है और मुद्रा भंडार भी काफी कम हो गया है। वित्त वर्ष २०१३-१४ में देश की जीडीपी ग्रोथ घट कर ४.७ फीसदी रह गई है, जबकि साल २०१२-१३ में यह ४.८६ फीसदी रही थी। वित्त वर्ष २०१३-१४ की जीडीपी ग्रोथ १० साल में सबसे कम है। यही नहीं, लगातार तीन सालों से जीडीपी ग्रोथ की दर ५ फीसदी से नीचे बनी हुई है।
    मैंने दिसंबर २०११ में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में सूचित किया था कि वास्तु शास्त्र में घर के उत्तर-पूर्व को काटकर किया गया निर्माण काफी खतरनाक बताया गया है और ऐसे घरों में रहने वाले पूरी तरह तबाह हो जाते हैं। वास्तु के नियमानुसार वास्तु पुरुष का मस्तक उत्तर-पूर्व की तरफ तथा पांव दक्षिण-पश्चिम की तरफ होते हैं। ऐसे में अगर उत्तर-पूर्व के कोने को काटकर घर का निर्माण किया जाता है तो वो वास्तु पुरुष का गला काट देने सरीखा दोष होता है और ऐसे घरों में रहने वाले पूरी तरह तबाह हो जाते हैं। देवनागरी के 'रू' तथा रोमन के 'आर' को मिलाकर यह प्रतीक बनाया था, लेकिन उसके गले पर इस प्रकार एक अतिरिक्त लाईन डाल दी थी, जो रुपये का गला काटती प्रतीत होती है।
    आपके सूचनार्थ निवेदन करना चाहता हूँ कि देश के पूर्वोत्तर के राज्यों में वास्तु की वजह से ही इतनी अशांति, पिछड़ापन व गरीबी है क्योंकि यहाँ के वाशिंदे पूरी तरह वास्तु के विपरीत गृह निर्माण करते हैं। मुझे जब इस बात का निश्चय हो गया कि इलाके के लोगों को वास्तु की जानकारी न होने की वजह से समूचा पूर्वांचल तबाह हो रहा है और अगर पूर्वांचल के लोग वास्तु के अनुसार घर बनाने लगे तो चंद वर्षों में ही इन राज्यों से उग्रवाद, अशांति, अभावों और पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है तो मैंने वास्तु के प्रचार-प्रसार को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और किसी भी प्रकार का शुल्क लिये बिना ही मैं गांव-गांव जाकर लोगों को वास्तु सलाह देने के काम में जुट गया। विगत १५-१६ सालों से वास्तु अध्ययन, अनुसंधान व प्रयोग करने के दौरान मैंने १४ हजार से ज्यादा परिवारों को नि:शुल्क वास्तु सलाह दी है और मुझे इस बात की खुशी है कि जिन लोगों ने अपने घरों का वास्तु परिवर्तन किया है, उनके परिवार आज हर प्रकार से खुशहाल हैं। वास्तु प्रयोग के दौरान मैंने सैकड़ों ऐसे परिवार देखे हैं, जिनके घरों का उत्तर-पूर्व का कोना कटा होने की वजह से वे पूरी तरह तबाह हो गये थे और उनके घरों का उत्तर-पूर्व का कोना जोड़ देने के बाद उन परिवारों की खोई खुशियां वापस लौट आई हैं।
    सोचने की बात है कि जबकि देश की अर्थव्यवस्था काफी संतोषजनक ढंग से आगे बढ़ रही थी और अचानक ही बिना किसी युद्ध, अकाल अथवा अन्य किसी प्राकृृतिक आपदा के देश की अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर पहुंच गई और केंद्र सरकार लाख कोशिशों के बावजूद उसे पटरी पर नहीं ला पा रही है। इस दौरान जो सबसे महत्वपूर्ण घटना घटी, वह थी रुपये के नये प्रतीक का प्रचलन। देश में ऐसे लाखों परिवार हैं, जो अपना आशियाना बदलने के बाद या तो तबाह हो गये अथवा मालामाल हो गये। और ऐसा सिर्फ वास्तु के कारण से ही होता है। अगर वास्तु दूषित प्रतीक के बजाय वास्तु सम्मत प्रतीक का प्रयोग किया जाता तो आज देश की अर्थव्यवस्था की हालत कुछ और ही होती, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।
    - राजकुमार झाँझरी
    पत्रकार व नि:शुल्क वास्तु सलाहकार
    संपादक, आगमन
    संपादक, सम्मेलन समाचार
    अध्यक्ष, रिबिल्ड नार्थ ईस्ट
    गुवाहाटी
    मो.: 94350 10055

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