कौन था चितौड़ का बणवीर ?

Gyan Darpan
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पन्नाधाय द्वारा बणवीर (Banveer) से चितौड़ के भावी शासक उदयसिंह (Maharana Udaisingh) की रक्षा के लिए अपने पुत्र के बलिदान की कथा देश का लगभग हर नागरिक जानता है| चितौड़ के शासक राणा विक्रमादित्य की हत्या कर बणवीर चितौड़ का शासक बन बैठा था| विक्रमादित्य की हत्या के बाद बणवीर ने उसके छोटे भाई 15 वर्षीय उदयसिंह की रात को सोते समय हत्या का षडयंत्र रचा| इस षडयंत्र का पता चितौड़ राज्य की स्वामिभक्त पन्नाधाय (Pannadhay) जिसने उदयसिंह का पुत्रवत लालन-पालन किया था को चला तो उसने रात में उदयसिंह को अपने सहयोगियों के माध्यम से चितौड़ के किले से बाहर भिजवा दिया और उसकी जगह अपने पुत्र को सुला दिया| बणवीर ने पन्नाधाय के पुत्र को उदयसिंह समझकर रात्री में सोते हुए मार दिया|

इतिहास के पन्नों पर दासी पुत्र के नाम से जाना जाने वाला बणवीर चितौड़ के राणा रायमल के सुप्रसिद्ध कुंवर पृथ्वीराज की एक पासवान का पुत्र था| कुंवर पृथ्वीराज महाराणा सांगा (Maharana Sanga) के बड़े भाई थे, जिनका निधन उनके बहनोई द्वारा विष दिये जाने से हो गया था| उनके इसी पासवानिये पुत्र बणवीर ने चितौड़ में महाराणा विक्रमादित्य की हत्या, उदयसिंह की हत्या का षडयंत्र और राजगद्दी पर कब्जे का गद्दारी भरा कार्य किया था| दरअसल मेवाड़ के इतिहास में विक्रमादित्य एक अयोग्य शासक के रूप में दर्ज है| बाल्यावस्था से ही बुरी संगत के चलते उसका चालचलन मेवाड़ के देशभक्त सामंतों के प्रति ठीक नहीं था| उसके व्यवहार से आहत होकर मेवाड़ के ज्यादातर सामंत अपने अपने ठिकानों पर चले गये थे और नाम मात्र के अपने अपने प्रतिनिधि छोड़ गये थे| विक्रमादित्य के पास सिर्फ चाटुकार और स्वार्थी लोग ही बचे हुए थे| ऐसी हालात में मौके का फायदा उठाने को कुंवर पृथ्वीराज का यह अनौरस (पासवानिया) पुत्र चितौड़ चला आया और महाराणा के प्रितिपात्रों से मिलकर उसका मुसाहिब बन गया| वि.स. 1593 में एक दिन मौका पाकर 19 वर्षीय महाराणा विक्रमादित्य की उसने हत्या कर दी और अपना शासन निष्कंटक करने के लिए उदयसिंह की हत्या के लिए चला लेकिन उदयसिंह को उसके पहुँचने से पहले पन्नाधाय ने चितौड़ किले से बाहर भिजवा दिया|

चितौड़ का राज्य मिलने के बाद बणवीर का घमंड बहुत बढ़ गया और वह मेवाड़ के सामंतों पर अपनी धाक ज़माने लगा| वह उन सामंतों, सरदारों को ज्यादा अपमानित करने लगा जो उसे अकुलीन समझ कर घृणा करते थे| बणवीर के अकुलीन (पासवान पुत्र) होने के चलते उससे घृणा करने वाले सामंतों को उदयसिंह के जीवित होने का पता चलते ही वे बणवीर को चितौड़ की राजगद्दी से हटाने के प्रयासों में जुट गये|

वि.स.1597 में उदयसिंह मेवाड़ के देशभक्त सामंतों, पाली के अखैराज सोनगरा, कुंपा महाराजोत व कई अन्य मारवाड़ के राठौड़ सरदारों का साथ पाकर एक बड़ी सेना के साथ कुम्भलगढ़ से चितौड़ पर चढ़ाई के लिए चला| बणवीर को इस चढ़ाई का समाचार मिलते ही उसने भी अपनी एकत्र की व कुंवरसी तंवर के नेतृत्व में उदयसिंह से मुकाबला करने भेजी| महोली (मावली) गांव के आस-पास युद्ध हुआ, कुंवरसी तंवर मारा गया और उसकी सेना हार गई| इस युद्ध में विजयी उदयसिंह अपनी सेना सहित चितौड़ पहुंचे और कुछ दिनों के संघर्ष के बाद वहां भी विजय हासिल कर अपने पैतृक राज्य का स्वामी बन गया| बणवीर इस युद्ध में मारा गया या भाग गया इस पर इतिहासकार एकमत नहीं है| कुछ उसका भागना मानते है तो कुछ मारा जाना|


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